तेरा मेरा मनवा कैसे इक होई रे
आज , पहली बार आपसे मुखातिब हूँ , समझ नहीं आ रहा की , बात कहाँ से शुरू करू ? असल में हम सभी अपने मन मर्जी के मालिक है और दूसरा क्या सोचता है इससे हमारा ज्यादा सरोकार नहीं होता है ना, कोई जग देखि कहता है कोई आखन देखि तो इसलिए हमारे मन कभी मिल ही नहीं पाते -- बहुत दुःख और पीड़ा होती है जब हम अपनी बात दूसरे को समझा नहीं पाते --- शायद इसी पीड़ा ने कबीर को ये कहने पर मजबूर कर दिया की तेरा मेरा मनवा कैसे इक होई रे -----आज इतना ही शेष फिर
1 comments:
very good -somi
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