ओ , छलिये लौट के आने की रीत है की नहीं ------
जन्माष्टमी के अवसर पर आप सभी को शुभकामनाएं | ये रचना मैंने पिछलेवर्ष अपने ब्लॉग परलिखी थी | आज फिर से मैं इसे यहाँ ले आई हूँ |
दोस्तों , कृष्ण की बात हो तो पहले राधा का नाम बरबस आ ही जाता है लेकिन आज मैं राधा नहीं मीरा से बात शुरू करने वाली हूँ . आप सभी मीरा से परिचित हैं और आप सभी ने वो कहानी भी सुन रखी है जो जन जन में लोकप्रिय है ,आज प्रसंगवश उसी कहानी से बात शुरू करती हूँ . चित्तोड़ राजस्थान की मीरा जब छोटी थी तो उनके घर इक साधू आये जो कृष्ण भक्त थे साधू अपने साथ कृष्ण की मूर्ति भी लाये थे जिसे वे बरसों से पूज रहे थे , बालिका मीरा उस मूर्ति को देख मचल उठी और साधू से मूर्ति मांग बैठी साधू ने साफ़ मना कर दिया की वे बरसों से इस मूर्ति को पूज रहे हैं ये साधारण मूर्ति नहीं है इसमे साक्षात् कृष्ण विराजते हैं ये कोई खेलने की वस्तु नहीं जो तुम्हे दे दूँ
मीरा रोती रही और वे चले गए ( संभवत मीरा के रोने बिलखने की शुरुआत यहीं से हो गयी थी )रात को साधू के स्वप्न में कृष्ण आये और कहा -तुम वो मूर्ति मीरा को दे दो साधू ने कहा मैंने जनम भर आपकी पूजा की आपने दर्शन नहीं दिए और आज आये हैं तो उस नादान लड़की को मूर्ति देने को कह रहे हैं -क्या लीला है प्रभु ?-कृष्ण ने कहा साधू ""मूर्ति बस उसी की होती है , जो मूर्ति के लिए दिन रात रोती है ""
दोस्तों , अब मैं अपनी बात इसी छोर से शुरू करती हूँ क्या सचमुच कृष्ण तुम आये थे साधू के स्वप्न में या ये भी तुम्हारा कोई छल था ? ओ छलिया , आज तुम्हारा जन्म दिवस है आज तुमसे कुछ प्रश्न पूछना चाहती हूँ कृष्ण बताओ जब से इस धरती से गए हो क्या इक बार भी इस धरती की सुध ली है ? क्या तुम्हे इस धरती की याद नहीं सताती ? तुम तो वचन देकर गए थे की " मैं लौटूंगा " फिर क्यों नहीं आये ? ओ छलिये तुमने अपनी मोहक मुस्कान से सभी को खूब छला , गोपियों को अपनी बंसी की मधुर तान सुना कर बेसुध किया . राधा को अपने प्रेम में दीवाना कर दिया
राधा के प्रेम में तो तुम भी वावरे थे ना ?तुमने कहा भी है की तुम दो नहीं इक ही हो तुमने राधा संग , गोपियों संग खूब होली खेली , खूब रास रचाया तुम्हारे और राधा के प्रेम गीत आज भी ब्रज में गूंजते हैं मधुवन के महारास में हर गोपी के साथ तुमने रास रचाया हर गोपी यही समझती रही की तुम सिर्फ उसी के साथ हो , लेकिन कृष्ण तुम वहां नहीं थे तुम सिर्फ राधा के पास थे है ना . राधा के प्रेम में आसक्त हो , तुमने खूब छल किया कभी चूड़ी वाले बने कभी स्त्री स्वांग रचा तुमने राधा को भी अपनी दीवानी बनाया
इक बात बताओ कान्हा , ब्रज की गलियों में राधा संग , महलों में रुकमनी संग , सत्यभामा सहित अनगिनत रानी पट रानियों के बीचकभी तुम्हें उस विरहिणी की याद आती थी , जो तुम्हारे प्रेम के नाम की वीणा लिए रेगिस्तान की तपती धुप में खुद को जलाती थी जिसने सिर्फ तुम्हारे कारन अपने महलों के सुख त्यागे और तपती रेत पर अपने आंसुओं से प्रेम की इबारत लिखती रही उसके दिन तुम्हारे वियोग में झुलस गए और रातें तुम्हारी यादमें बंजर हो गयी जिनमे कभी मिलन के फूल नहीं खिला पाए तुम
कृष्ण , आज सच्ची सच्ची बताओ मीरा तुम्हे इतना प्रेम क्यों करती थी ?क्या चाहती थी वो तुमसे ? तुम तो त्रिकालदर्शी हो क्या बता सकोगे की क्यों मीरा ने कहा " ऐ री मैं तो प्रेम दीवानी मेरा दर्द ना जाने कोय " और ये भी कहा की आवन कह गए अजहूँ ना आये ---- क्या तुमने मीरा से भी कोई वादा किया था ? बोलो क्या दुनिया से छुप कर ओ छलिये तुमने अपनी मोहक मुस्कान से उसे भी दीवानी बनाया था न ? बोलो ?
मीरा तो . राधा की तरह तुमसे प्रेम की मांग भी नहीं करती थी ना रास की ना मिलन की ना राजपाट की न योग की फिर वो तुमसे क्या चाहती थी ? क्यों वो मूर्तियों में , संतों के डेरों पर जा जा कर तुम्हारा पता पूछती थी ?वो पागलों की तरह , मीलों चलती गयी कृष्ण क्या तुम मीरा के लिए दो कदम भी चल सकते थे ?
इक बात बताओ मोहन ? क्या कभी रात के सन्नाटों में जब सारी दुनिया सो रही होती है तब तुम्हे मीरा की सिसकियाँ सुनाई देती थी ?मीरा के मन में जो तुम्हारे प्रेम की लो जल रही थी कभी उसकी उष्मा तुमने महसूस की ?क्या मीरा के प्रेम की अगन से तुम विचलित हुए कभी कृष्ण ?या तुमने उसे जानबूझ कर वियोग के वियावनों में छोड़ दिया क्योंकि तुम उसके ताप से घबराते थे ना मोहन ?तुम कभी भी उसके पास नहीं आये अपने नियमों में बंधे तुम कभी नियम तोड़ ना सके सारे नियम सारे दर्शन सारे आदर्श सिध्दांत मीरा के हिस्से में ही क्यों बंसी धर ? सारे सही गलत के गणित मीरा के समय ही क्यों ? राधा के संग तो तुमने सारे नियम ही भुला दिए , और हर कायदा तोडा इतिहास गवाह है सबसे ज्यादा नियम उसी कालखंड में टूटे --- किसका प्रेम बड़ा ? राधा या मीरा का ? बोलो
आज तो तुम्हें बताना ही होगा की किसका पलड़ा भारी था तुमने आने का वचन दिया फिर भी नहीं लौटे ? जब कभी भी तुम आओगे ना कृष्ण मीरा की रूह आज भी तुम्हे भटकती मिलेगी आज मीरा का प्रेम हरेक प्रेम करने वाले के दिल में समा गया है और उसका दर्द रेगिस्तान की हर रेत के कण कण में छुपा है और मीरा के आंसू ? सागर की हर बूंद में समाहित हैं कैसे समेट सकोगे इतना विस्तृत प्रेम , ये प्रश्न भी तुम्हे भटकते हुए गलियों में मिल जायेगे बोलो छलिया ?
आज तो सच बोल दो ,आज मैं तुम्हारी मोहक मुस्कान में उलझकर हमेशा की तरह अपने प्रश्न नहीं भूलूंगी देखो मैंने आखें बंद कर ली है अब बताओ मीरा तुमसे इतना प्रेम क्यों करती थी आज भी उसकी रूह भटकती हुई कहती है की "तेरे जाने की रुत में जानती थी मुड़के आने की रीत है की नहीं ? कभी आओगे तो पूछूंगी -तेरे मन में भी प्रीत है की नहीं ? ओ , छलिये लौट के आने की रीत है की नहीं ------
दोस्तों , कृष्ण की बात हो तो पहले राधा का नाम बरबस आ ही जाता है लेकिन आज मैं राधा नहीं मीरा से बात शुरू करने वाली हूँ . आप सभी मीरा से परिचित हैं और आप सभी ने वो कहानी भी सुन रखी है जो जन जन में लोकप्रिय है ,आज प्रसंगवश उसी कहानी से बात शुरू करती हूँ . चित्तोड़ राजस्थान की मीरा जब छोटी थी तो उनके घर इक साधू आये जो कृष्ण भक्त थे साधू अपने साथ कृष्ण की मूर्ति भी लाये थे जिसे वे बरसों से पूज रहे थे , बालिका मीरा उस मूर्ति को देख मचल उठी और साधू से मूर्ति मांग बैठी साधू ने साफ़ मना कर दिया की वे बरसों से इस मूर्ति को पूज रहे हैं ये साधारण मूर्ति नहीं है इसमे साक्षात् कृष्ण विराजते हैं ये कोई खेलने की वस्तु नहीं जो तुम्हे दे दूँ
मीरा रोती रही और वे चले गए ( संभवत मीरा के रोने बिलखने की शुरुआत यहीं से हो गयी थी )रात को साधू के स्वप्न में कृष्ण आये और कहा -तुम वो मूर्ति मीरा को दे दो साधू ने कहा मैंने जनम भर आपकी पूजा की आपने दर्शन नहीं दिए और आज आये हैं तो उस नादान लड़की को मूर्ति देने को कह रहे हैं -क्या लीला है प्रभु ?-कृष्ण ने कहा साधू ""मूर्ति बस उसी की होती है , जो मूर्ति के लिए दिन रात रोती है ""
दोस्तों , अब मैं अपनी बात इसी छोर से शुरू करती हूँ क्या सचमुच कृष्ण तुम आये थे साधू के स्वप्न में या ये भी तुम्हारा कोई छल था ? ओ छलिया , आज तुम्हारा जन्म दिवस है आज तुमसे कुछ प्रश्न पूछना चाहती हूँ कृष्ण बताओ जब से इस धरती से गए हो क्या इक बार भी इस धरती की सुध ली है ? क्या तुम्हे इस धरती की याद नहीं सताती ? तुम तो वचन देकर गए थे की " मैं लौटूंगा " फिर क्यों नहीं आये ? ओ छलिये तुमने अपनी मोहक मुस्कान से सभी को खूब छला , गोपियों को अपनी बंसी की मधुर तान सुना कर बेसुध किया . राधा को अपने प्रेम में दीवाना कर दिया
राधा के प्रेम में तो तुम भी वावरे थे ना ?तुमने कहा भी है की तुम दो नहीं इक ही हो तुमने राधा संग , गोपियों संग खूब होली खेली , खूब रास रचाया तुम्हारे और राधा के प्रेम गीत आज भी ब्रज में गूंजते हैं मधुवन के महारास में हर गोपी के साथ तुमने रास रचाया हर गोपी यही समझती रही की तुम सिर्फ उसी के साथ हो , लेकिन कृष्ण तुम वहां नहीं थे तुम सिर्फ राधा के पास थे है ना . राधा के प्रेम में आसक्त हो , तुमने खूब छल किया कभी चूड़ी वाले बने कभी स्त्री स्वांग रचा तुमने राधा को भी अपनी दीवानी बनाया
इक बात बताओ कान्हा , ब्रज की गलियों में राधा संग , महलों में रुकमनी संग , सत्यभामा सहित अनगिनत रानी पट रानियों के बीचकभी तुम्हें उस विरहिणी की याद आती थी , जो तुम्हारे प्रेम के नाम की वीणा लिए रेगिस्तान की तपती धुप में खुद को जलाती थी जिसने सिर्फ तुम्हारे कारन अपने महलों के सुख त्यागे और तपती रेत पर अपने आंसुओं से प्रेम की इबारत लिखती रही उसके दिन तुम्हारे वियोग में झुलस गए और रातें तुम्हारी यादमें बंजर हो गयी जिनमे कभी मिलन के फूल नहीं खिला पाए तुम
कृष्ण , आज सच्ची सच्ची बताओ मीरा तुम्हे इतना प्रेम क्यों करती थी ?क्या चाहती थी वो तुमसे ? तुम तो त्रिकालदर्शी हो क्या बता सकोगे की क्यों मीरा ने कहा " ऐ री मैं तो प्रेम दीवानी मेरा दर्द ना जाने कोय " और ये भी कहा की आवन कह गए अजहूँ ना आये ---- क्या तुमने मीरा से भी कोई वादा किया था ? बोलो क्या दुनिया से छुप कर ओ छलिये तुमने अपनी मोहक मुस्कान से उसे भी दीवानी बनाया था न ? बोलो ?
मीरा तो . राधा की तरह तुमसे प्रेम की मांग भी नहीं करती थी ना रास की ना मिलन की ना राजपाट की न योग की फिर वो तुमसे क्या चाहती थी ? क्यों वो मूर्तियों में , संतों के डेरों पर जा जा कर तुम्हारा पता पूछती थी ?वो पागलों की तरह , मीलों चलती गयी कृष्ण क्या तुम मीरा के लिए दो कदम भी चल सकते थे ?
इक बात बताओ मोहन ? क्या कभी रात के सन्नाटों में जब सारी दुनिया सो रही होती है तब तुम्हे मीरा की सिसकियाँ सुनाई देती थी ?मीरा के मन में जो तुम्हारे प्रेम की लो जल रही थी कभी उसकी उष्मा तुमने महसूस की ?क्या मीरा के प्रेम की अगन से तुम विचलित हुए कभी कृष्ण ?या तुमने उसे जानबूझ कर वियोग के वियावनों में छोड़ दिया क्योंकि तुम उसके ताप से घबराते थे ना मोहन ?तुम कभी भी उसके पास नहीं आये अपने नियमों में बंधे तुम कभी नियम तोड़ ना सके सारे नियम सारे दर्शन सारे आदर्श सिध्दांत मीरा के हिस्से में ही क्यों बंसी धर ? सारे सही गलत के गणित मीरा के समय ही क्यों ? राधा के संग तो तुमने सारे नियम ही भुला दिए , और हर कायदा तोडा इतिहास गवाह है सबसे ज्यादा नियम उसी कालखंड में टूटे --- किसका प्रेम बड़ा ? राधा या मीरा का ? बोलो
आज तो तुम्हें बताना ही होगा की किसका पलड़ा भारी था तुमने आने का वचन दिया फिर भी नहीं लौटे ? जब कभी भी तुम आओगे ना कृष्ण मीरा की रूह आज भी तुम्हे भटकती मिलेगी आज मीरा का प्रेम हरेक प्रेम करने वाले के दिल में समा गया है और उसका दर्द रेगिस्तान की हर रेत के कण कण में छुपा है और मीरा के आंसू ? सागर की हर बूंद में समाहित हैं कैसे समेट सकोगे इतना विस्तृत प्रेम , ये प्रश्न भी तुम्हे भटकते हुए गलियों में मिल जायेगे बोलो छलिया ?
आज तो सच बोल दो ,आज मैं तुम्हारी मोहक मुस्कान में उलझकर हमेशा की तरह अपने प्रश्न नहीं भूलूंगी देखो मैंने आखें बंद कर ली है अब बताओ मीरा तुमसे इतना प्रेम क्यों करती थी आज भी उसकी रूह भटकती हुई कहती है की "तेरे जाने की रुत में जानती थी मुड़के आने की रीत है की नहीं ? कभी आओगे तो पूछूंगी -तेरे मन में भी प्रीत है की नहीं ? ओ , छलिये लौट के आने की रीत है की नहीं ------
1 comments:
" राधा के संग तो तुमने सारे नियम ही भुला दिए , और हर कायदा तोडा इतिहास गवाह है सबसे ज्यादा नियम उसी कालखंड में टूटे --- किसका प्रेम बड़ा ? राधा या मीरा का ? बोलो ........."
वाह, आज तो कृष्ण को ही आड़े हाथों ले लिया .
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