"" मुझको भी तरकीब सिखा दे यार जुलाहे ------
दोस्तों , बहुत दिनों से आपसे बात नहीं हुई , कभी -कभी ऐसा भी होता है कि., हम सिर्फ सोचते ही रह जाते हैं और कह नहीं पाते , विचार दिमाग में और भाव मन में उमड़ते तो हैं लेकिन शब्दों में ढल नहीं पाते , भावों को इक सिरे से पिरोने में कठिनाई होने लगती है
दोस्तों , ऐसी ही स्थिति आज मेरी हो रही है सोचती हूँ रिश्तों पर लिखूं या ,समाज पर . मन पर लिखूं या प्रेम पर , खुद पर लिखूं या ओरों पर इक विचार का सिरा पकड़कर लिखना शुरू करती हूँ तो दूसरा सिरा गुम हो जाता है , फिर उसे पकडू तो बाकी सारे भाव तितलियों के मानिंद फुर्र से उड़ जाते हैं
अब इन चंचल तितलियों को कौन पकड़े चलिए , ऐसा करती हूँ जो सिरा हाथ लगता है उसे ही पकड़ कर बात शुरू करती हूँ देखना दोस्तों बाकी सारे भाव भी चुपचाप इक के पीछे इक धीरे धीरे आकर खुद ही जुड़ते जायेगें
दोस्तों असल जिन्दगीं में भी तो हम कुछ ऐसा ही करते हैं रिश्तों के ताने बाने बुनते है इक सिरा यहाँ से इक वहां से और ताउम्र अपने इस ताने बाने के खेल में हारते जीतते रहते हैं इक सिरा टुटा तो उसे जोड़ने लगे फिर वहां दूसरा टूटा तो उसे बनाने लगे कहीं संतुलन बिगड़ ना जाये इसी होशियारी में अपनी जिन्दगी गुजार देते है लेकिन लाख जतन करने पर भी यही होता है कि "" गाँठ अगर पड़ जाए तो रिश्तें हो या डोरी . लाख करें कोशिश जुड़ने में वक्त तो लगता है ""हम अपनी जरूरतों के हिसाब से रिश्तें तो बुन लेते हैं कभी दोस्ती के रिश्तें , प्रेम के रिश्तें , उजागर रिश्तें , छुपे रिश्तें , दिखावे के रिश्तें , छलावे के रिश्तें और ना जाने कितने बेनाम रिश्तें हम अपनी जिन्दगी में बुनते है और इन में उलझते रहते है लेकिन कोई ऐसी तरकीब हमें नहीं आती कि हम इन्हें टूटने से बचाले
कभी कभी सोचती हूँ , लोहे कि जंजीरों से भी मजबूत रिश्तें ज़रा से बात पे कैसे चट्ट से टूट जाते हैं और पट्ट से हमेशा के लिए दूर हो जाते है क्या कोई ऐसा रसायन नहीं है जो इन रिश्तों को फिर से पहले कि तरह नया कर दे अब आप कहेगे कि प्रेम का रसायन ही रिश्तों कि रिपेयरिंग कर सकता है तो मैं कहुगीं कि जनाब सबसे ज्यादा गाँठ प्रेम में ही पड़ती है और प्रेम के रिश्तों में पड़ी दरारे किसी भी रसायन से नहीं भरती
बहरहाल मैं बात कर रही थी कि कोई ऐसी तरकीब नहीं है क्या जो रिश्तों को टूटने से बचाले , और यदि टूट कर जुड़ जाए तो गाँठ नजर न आये तरकीब से याद आया इस विषय पर गुलजार ने बहुत ही ख़ूबसूरत और गहरी बात कही है वे कहते हैं कि
"मुझको भी तरकीब सिखा दे यार जुलाहे
अक्सर तुझको देखा है कि ताना बुनते
जब कोई तागा टूट गया या ख़तम हुआ
फिर से बाँध के और सिरा कोई जोड़ के उसमे
आगे बुनने लगते हो
तेरे इस ताने में लेकिन इक भी गाँठ गिरह बुन्तर क़ी
देख नहीं सकता कोई
मैंने तो इक बार बुना था
इक ही रिश्ता
लेकिन उसकी सारी गिरहें
साफ़ नजर आती हैं
दोस्तों हैं ना गहरी बात --इससे पहले क़ी कोई रिश्ता हम से जाने अनजाने टूट जाए उसे हम बचाले वरना वो टूटने के बाद फिर से नहीं बन सकेगा और यदि बन भी गया तो उसकी गांठे आपको चैन से जीने नहीं देगीं वे आपको चुभती रहेगी और आप भी कह उठेगे "" मुझको भी तरकीब सिखा दे यार जुलाहे ------
3 comments:
kyaa baat hai kaash ye tarkeeb hame bhi aati bahut achchhi rachnaa
your article is very good
गहरी बात है. बढ़िया है.
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