कोई दर्द के बीज बोता नहीं -----------------

मंगलवार, अक्तूबर 19 By मनवा , In

दोस्तों , कुछ मित्रों को मनवा --- से शिकायत है की मनवा में सिर्फ आंसूं दर्द और उदासी की बात ही होती है हंसी ख़ुशी की कम . इसमे यादें और तन्हाइयां ही क्यों होती है तो इसके जवाब में मैं तो यही कहुगीं की जो दूर तक साथ दे ढूंढे उसी को नजर ---- ख़ुशी और गम दर्द और चैन सब इक दूसरे के ही हिस्सें हैं आप ख़ुशी को पाने जायेगे तो गम खुद ही बिना बुलाये चला आएगा दोनों इक दूसरे के बिना अधूरेंहैं




दरअसल आज , हम सभी सिर्फ खुश होना चाहते हैं हँसना चाहते हैं कोई भी नहीं चाहता की उसका वास्ता आसुओं से पड़े और सारी उम्र खुश होने की तीव्र इच्छा में ना जाने कितनों को दुखी किये जाते हैं


लेकिन यदि हम सभी के हिस्सें में खुशियाँ आ गयी तो बेचारे गम कहाँ जायेगे दुःख कहाँ जाकर अपना बसेरा बनायेगें ?उन्हें भी तो अपने होने का


अहसास होना चाहिए


दोस्तों हम सभी दिल की बगिया में खुशियों के बीज बोते हैं दिल की जमीन पर सपनों के पौधें रोपते हैं फिर क्यों कर उनमे दुःख के कांटें निकल आते हैं ? हमने तो सिर्फ सुख , ख़ुशी और आनन्द को ही न्यौता दिया था ये बिन बुलाया अतिथि गम दर्द दुःख क्यों कर चला आया ?और हम इन्हें देख दिल का दरवाजा बंद करना चाहते हैं नहीं दोस्तों हमें इन्हें गले लगाना चाहिए ये वो मेहमान है जो इक बार आपका हो गया तो जन्मों तक आपका साथ निभाएगा . खुशिया आपसे फ्लर्ट करती हैं और दर्द आपसे सच्ची मोहब्बत- आपके साथ चलते हैं मीलों तक , आपके अकेलेपन के साथी होते हैं आसूं ,,आपकी तन्हाइयों को रोशन करती हैं यादें तो फिर कौन सगा हुआ ? बेशक गम ही अपना है


दोस्तों जिन्दगी इतनी लम्बी है की यहाँ मीलों तक आपका साथ निभाने धूप ही आएगी छांह आएगी भी तो पल दो पल चांदनी दिखेगी तो भी क्षण भर के लिए इसलिए आप गम को देख ना घबराएं और आखरी बात


हर व्यक्ति अपनी जिन्दगी में खुशियों के ही बीज बोता है कोई भी जान बुझ कर दर्द उगाना नहीं चाहता लेकिन ये वो खरपतबार है जो स्वयं ही उगती है किसी ने कहा है की " उसे भूल जाऊं ये होता नहीं कोई वक्त हो दर्द सोता नहीं


ये वो फसल है जो उगे खुद ब खुद कोई दर्द के बीज बोता नहीं "

1 comments:

nandni ने कहा…

aaj aapake blog par dard ke naye rup dekhane ko mile or yaad aai wo pankatiyaan ki "dard jab had se gujar jaye to davaa hota hai "or ye bhi ki jab dard nahin tha sine me kyaa khaak majaa tha jine me abake yaaron ham bhi roye saavan ke mahine me

20 अक्तूबर 2010 को 12:27 pm बजे

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