जिन्दगी तेरी इक इक अदा जुर्म है-------------------------------

गुरुवार, दिसंबर 2 By मनवा , In

बहुत दिनों  बाद आज आप से फिर मुखातिब  हूँ  मनवा  के माध्यम से  दोस्तों ,कल अचानक तेज हवा के साथ  मेरे शहर में बरसात  हुई , और मिट्टी  की सौंधी खुशबूं के साथ इक   अहसास  मुझे छू कर गुजरा  मैंने पूछा कौन ? बोला  मैं जिन्दगी हूँ  मैंने कहा  बड़ी जल्दी में हो चंद सवालों के जवाब दे कर चली जाना  मैंने उससे पूछा कल पौधों के पत्तों पर ओंस की बूंदों में;  मैंने तुम्हे देखा था छूना चाहा तो तुम वहां नहीं थी फूलों की खुशबु में छिपी  मुझे तुम अगले मोड़ पर फिर मिल गयी लेकिन जैसे ही फूल को तोडा  तुम वहां से भी खिसक गयी   रात को दिए की बाती में झिलमिलाती हो तो अगले ही पल उसी लौ से हाथ जला  देती हो जब मैं  खुद को तुम्हारे सामने अभिव्यक्त  करना चाहती हूँ तो कहती हो कितना  बोलती हो तुम ? और जब मैंने होठोंपर " चुप " के ताले  लगा लिए तो शिकायत   करती हो की कुछ कहती क्यों नहीं ? जिन्दगी तुम ऐसी क्यों हो ? मैंने जब बेबसी के साथ सबकुछ सहन करना सीख लिया  तो कहती हो उठो हौसला  रखो और जब मैंने हौसले  के साथ बढ़ना चाहा तो साथ छोड़ गयी  तुम  क्यों ?जब किसी की साँसे दर्द से बोझिल होने लगी तो तुम ठंडी  हवा का झोकां बन किसी अजनबी के रूप में आ गयी और जैसे ही खुद को कोई संभाले आखें  खोले की तुम वहां  से गायब .जब  फसलों को रिमझिम फुहारों की प्रतीक्षा  थी तब तुम वहां कभी नहीं थी और जब धुप में पौधे झुलस गए तो सावन बन कर क्यों चली आई तुम ?तुम्हारे कितने अजब रंग है जिन्दगी पहले तो आखों से नींदे चुरा लेती हो और  यादों के वियावानों में भटकते हुए थक के नयन  जब खुदब- खुद बंद हो जाए तो उनमे सपने सजा देती हो जैसे ही मन सपने संजोने लगता है लम्हे बुनने लगता है  तुम इक  झटके में उसे नींद से जगा देती होऔर कहती हो ये तो सपना था हकीकत मैं हूँ  तुम ऐसा क्यों करती हो ? किसी की आँख  किसी के इन्तजार में ताउम्र रोती है और जब वो हमेशा के लिए बंद हो जाती है  तबतुम रोशनी बन वहां पहुंचती  हो लेकिन बहुत देर बाद  जिन्दगी तुम देर क्यों  कर  देती हो हमेशा ?जब दर्द से मन भर जाता है और पलकें आसुओं से तो तुम   कहती  हो  खबरदार जो रोई तो इक आसूं भी नहीं गिराना  और जब हम अपने पर अपने हालात पर खुद ही हँसने लगे तो कहती हो      चुप  रोने की बात पर भी कोई  हंसा जाता है जिन्दगी  तुम्हारी हर बात  निराली है किसी को याद कर लिया तो कहती हो ये  जुर्म  है और भुला देना चाहो  तो कहती हो और बड़ा  जुर्म  है  दुनिया की तरफ से बेखबर  हो जाओ  तो कहती हो दुनिया के रंग देखो और जब इस दुनिया के रंग में खुद को रंग देना चाहो तो कहती हो  हर तरह गौर से देखना  जुर्म है जिन्दगी वाकई तेरी हर इक अदा  मुझे जुर्म ही लगती है  बेबसी जुर्म है हौसला जुर्म है जिन्दगी तेरी इक इक अदा जुर्म है अरे  तुम कहाँ  गयी  फिर गायब ---------------

9 comments:

मंजुला ने कहा…

बहुत बढ़िया..... सच मे बहुत खुबसूरत लिखती हो तुम यार .....

जब दर्द से मन भर जाता है और पलकें आसुओं से तो तुम कहती हो खबरदार जो रोई तो इक आसूं भी नहीं गिराना और जब हम अपने पर अपने हालात पर खुद ही हँसने लगे तो कहती हो चुप रोने की बात पर भी कोई हंसा जाता है जिन्दगी

वह यार कहाँ से लती हो ऐसे शब्द ....

2 दिसंबर 2010 को 3:35 pm बजे
surya goyal ने कहा…

"जिन्दगी तुम ऐसी क्यों हो" वाह ममता जी, क्या खूब लिखा है. पढ़ कर दिल भर आया लेकिन दिल के किसी कोने से आवाज आई की वाकई जिंदगी की सच्चाई यही है. अब मेरे साथ भी ऐसा ही कुछ है की अगर मै आपकी पोस्ट नहीं पढता हूँ तो लगता है की आज कुछ पढ़ना रह गया है और पढता हूँ तो लगता है की बहुत सच लिखती है आप. पुनः बधाई.

3 दिसंबर 2010 को 6:40 pm बजे
Kunwar Kusumesh ने कहा…

ज़िन्दगी का चेहरा इतनी खूबसूरती से किसी ने पहली बार दिखाया. नस्र में भी कविता जैसी बात कहना कोई आप से सीखे. climax में ये शेर कमाल कर गया.
बेबसी जुर्म है हौसला जुर्म है.
जिन्दगी तेरी इक इक अदा जुर्म है.
वाह वाह

3 दिसंबर 2010 को 6:43 pm बजे
अशोक कुमार मिश्र ने कहा…

बहुत अच्छा लगा पढ़ कर ............
kripya word verification hata de setting me jakar tippanni dene me aasani rahe gi....

4 दिसंबर 2010 को 8:13 am बजे
Mahendra Arya ने कहा…

मेरे घर आना जिंदगी ; मेरे घर का सीधा सा इतना पता है ; ये घर जो है चारों तरफ से खुला है; न दस्तक जरूरी, न आवाज देना ; मेरे घर का दरवाजा कोई नहीं है ; मेरे घर आना जिंदगी ..............बहुत मजा आया आपकी जिंदगी के साथ गुफ्तगू पढ़ कर . सचमुच खेल सा खेलती है जिंदगी , हमारे साथ जीवन भर .फिर भी जब तक जिंदगी है इसका साथ तो निभाना ही पड़ता है क्योंकि - मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया ,हर फ़िक्र को धुंए में उडाता चला गया . तो बस देव आनंद के इसी गीत को जीवन का फलसफा बना लीजिये और अपनी जिंदगी को जी लीजिये एक महारानी की तरह .

4 दिसंबर 2010 को 9:30 am बजे
केवल राम ने कहा…

आपकी लेखन शेली पाठक को बांधे रखती है ...लेखन का यह गुण किसी - किसी में होता है ..अच्छा लगा पढ़कर ....शुक्रिया
चलते -चलते पर आपका स्वागत है

4 दिसंबर 2010 को 9:43 am बजे
लाल कलम ने कहा…

भोपाल की शर जमीं से उठ रही सोंधी महक आप के जरिये दिल्ली तक आ गयी
बहुत सुन्दर रचना

13 दिसंबर 2010 को 12:17 pm बजे
Mukul ने कहा…

Very Nice! I am Speechless!

28 फ़रवरी 2011 को 7:22 pm बजे
HARI DHAKAL ने कहा…

तेरी अदा हमेशा निराला हो
तेरी होंठों पे खुशीयोंका प्याला हो
तु जहाँ भी रहे बस सलामत रहे
तेरा चेहरा चाँदनीका पाला हो

4 अप्रैल 2011 को 5:57 pm बजे

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