तू ना पहचाने तो है ये तेरी नज़रों का कसूर --------

शनिवार, फ़रवरी 19 By मनवा , In

आज  बहुत दिनों बाद आप सब से मुखातिब हूँ   प्रेम दिवस  भी चला  गया  और  बसंत  पंचमी  भी , लेकिन मैं आपको  शुभकामनाये  देती हूँ  की आप सभी के जीवन में  हमेशा  बसंत  रहे और प्रेम  भी महकता  रहे  दोस्तों कल इक अहसास  ने मुझे  नींद से उठाया  और कहा  मैं  जा रहा  हूँ  मैंने पूछा कौन हो तुम  और कहाँ  जा रहे हो  ? उसके हाथों  में कुछ  मुरझाये  लाल गुलाब  और कुछ  कार्ड्स  थे  कहने लगा  मैं प्रेम हूँ  वेलेंटाइन  डे के बाद  प्रेमियों ने  ये गुलाब  और कार्ड्स  रास्ते  पर फेंक दिए  है  उन्हें  लगता  है मैं इन कार्ड्स  , गुलाब  और  महंगे  गिफ्ट्स में रहता  हूँ और इक दिन  प्रेम दिवस  मना  कर वे अब मुझे  अगले  साल  ही याद  करेगे  तो मुझे जाना होगा
मैंने  उस मासूम से अहसास  को प्यार से अपने पास  बैठाया  और कहा  तुम  कहीं नहीं जाओगे  तुम इन निर्जीव  कार्ड्स , गुलाब और महंगे  तोहफों  में नहीं रहते  तुम रहते हो  लोगों के मन में साँसों में  धडकनों में  और वे अपने प्रेम को इन माध्यमों  से व्यक्त  करते है  तो अगले ही पल  वो अहसास तपाक से  बोला   जब मैं मन में बसता  हूँ तो प्रेम का इक दिन  ही क्यों ? हर दिन क्यों नहीं ? वो  आगे  कहने  लगा इस धरती की रचना तो इश्वर ने बड़े ही प्यार से  की  थी और  मुझे  इसलिए यहाँ भेजा था  की इंसानों की बस्ती में  प्यार पलता  रहे लेकिन तुम इंसानों  ने दरअसल मुझे  महसूस करना  ही बंद  कर दिया मैं हमेशा से ही तुम्हारे अंतर्मन में था तुम मुझे बाहर  खोजते रहे तुमने मेरी  आवाज सुनना  बंद कर दी मैं हर युग  में था और रहूगां  तुमने  मुझे पहचाना  ही नहीं वो अंतर द्रष्टि  ही तुममे  नहीं है जो मुझे  खोजे  मैं तुम्हारे भीतर भी हूँ और बाहर भी फिर भी तुम मुझसे इतने अनजान क्यों हो ? अछूते क्यों होतुम्हे अब वस्तुओं  से प्रेम हो गया है   मैंने देखा  है लोगों ने अपने अपने  लक्ष्य निर्धारित  कर रखे है किसी  को अपने करियर  से प्रेम है किसी को अपनी कार से किसी को अपने महंगे मोबाईल जान से  ज्यादा  प्यारे हैं  किसी को अपनी  नौकरी  में  राधा  नजर  आती  है  कोई फेसबुक   पर दोस्ती करने  के जूनून  से ग्रस्त  है तुम लोगों ने प्रेम के नए नए खिलौने  खोज  लिए हैं  
तुम लोगों ने  प्यार  को अनुभव करना बंद कर दिया  तो प्यार ने भी तुम्हे छूना बंद कर दिया कोई विरला अगर  प्रेम में  डूबा दिख जाता  है तो तुम समझदार लोग उसे पागल ,  मूर्खया मनोरोगी कहने लगते  हो  कितने खोखले  हो गए है तुम लोगो  के विचार ,तुम्हारी आखों में  किसी पराये के लिए आसूं  क्यों नहीं आते ?तुम्हारा  दिल  क्या  किसी के लिए रोता  है ? नहीं  रोता  , तुम लोगो ने अपनी जरूरतों  अपनी सुविधा  और स्वार्थ  के रिश्ते  बनाए है  और उसे प्रेम  का नाम  दिया  है  बंद कर दो ये पाखंड   प्रेम का अकाल  है इस धरती  पर  लेकिन  तुम लोग  प्यार करते ही नहीं  उसे अनुभव  नहीं करते  किसी के अहसास तुम्हे भिगोते  नहीं कोई अगर भाग्य  से प्यार  करने वाला  मिल जाए तो  तुम  उस पर अविश्वास  करते हो उसे स्वीकार  नहीं करते  यदि  तुम इंसानों  ने प्रेम  को गले  नहीं लगाया  , उसे सम्मान    नहीं दिया उसे सहेजा  नहीं संभाला  नहीं  उसे मनाया  नहीं तो   प्रेम   हमेशा  के लिए  तुम्हारे जीवन  से चले  जाएगा और जब  प्रेम  इक बार चले जाता  है तो रिश्ते  गुलदानों  में रखे उन फूलों  की तरह  हो जाते है जिनसे  खुशबु  उड़  चुकी  हो उस अहसास  ने आगे कहा  की प्रेम की पहचान  जिस दिन  हो जायेगी  उस दिन  प्रेम को किसी  वेलेंटाइन  डे  की  आवश्यकता  नहीं पड़ेगी ना उसे गुलाब  ना कार्ड्स  ना महंगे  तोहफे  ना देह  पर  अपने प्रेमी  का नाम  गुदवाने  की जरुरत  पड़ेगी  प्रेम जब साँसों में धडकनों में  बसता है तो पूरी कायनात   महकती  है  मैं  तुम्हारे  अन्दर ही हूँ   तू ना पहचाने  तो है ये तेरी नज़रों  का कुसूर    दोस्तों   उस अहसास  को मैंने तो  अपने मन  में बसा   लिया   और  उसे  जाने  नहीं दिया   क्या  आपने  अपने  प्रेम को  पहचाना  है ?            

6 comments:

Lalit Kumar ने कहा…

प्रेम की परिभाषा का सुंदर वर्णन

19 फ़रवरी 2011 को 8:36 pm बजे
Mahendra Arya's Hindi Poetry ने कहा…

प्रेम दिवस ? ये पश्चिमी सभ्यता समय का पूरा सदुपयोग करना चाहती है इस लिए वर्ष के ३६५ दिनों के लिए अलग अलग काम नक्की करना चाहती है . उनके लिए प्रेम भी एक काम है - इसलिए प्रेम दिवस ; माता पिता को प्रसन्नता देना भी काम है - इसलिए फादर्स डे और मदर्स डे ; और इसी श्रंखला में बहुत कुछ है - डॉक्टर्स डे, टीचर्स डे, पेट्स डे वैगरह वैगरह ! हम क्या करें , हमारा दिन शुरू होता है माता पिता को प्रणाम करके उनका आशीर्वाद लेकर , बच्चों को मुस्कुरा कर स्कूल के लिए विदा कर के , दफ्तर में सह कर्मचारियों से हंस बोल के , शाम को मित्रों के साथ थोड़ी तफरीह कर के , घर लौटे वक़्त पड़ोसियों के हाल चाल पूछ कर , रात के भोजन पर पूरे परिवार से पूरा दिन शेएर कर के, और सोने के समय पत्नी के दुःख दर्द और दो मीठे बोल सुन कर . अब बताओ कैसे बांटे हमारे जीवन के बिखरे हुए प्रेम को अलग अलग दिनों में .ये फैशन हम हिन्दुस्तानी शायद कभी भी नहीं कर पायेंगे .

21 फ़रवरी 2011 को 5:32 pm बजे
सूर्य गोयल ने कहा…

ममता जी, बहुत दिनों बाद ही सही लेकिन बहुत ही सुन्दर पोस्ट. आपने नींद से उठाने वाले अहसास की कद्र कर जिन शब्दों का इस्तेमाल कर यह पोस्ट लिखी है पढ़ कर मजा आ गया. दो-तिन दिन से पोस्ट पढने के बाद सोच रहा था की कोमेंट करूँ की नहीं लेकिन आज कोमेंट करना ही पड़ा. बधाई.

22 फ़रवरी 2011 को 2:08 pm बजे
Jaan Pehchaan ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत अहसास के माध्यम से हमारे अहसास जगाया है आपने!

3 फ़रवरी 2012 को 7:44 am बजे

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