गम की स्याही दिखती है कहाँ ?------------------------

गुरुवार, मई 19 By मनवा , In

दोस्तों ,कल  मैं कुछ लिखने बैठी  ही थी , कि मेरे शहर में आंधी तूफान  का मौसम  बन गया | ऐसी आंधी चली  कि , टेबल पर रखे सारे कोरे कागज़ उड़ने लगे | मैं उन्हें जितना संभालती  वो उतने दी दूर होते जा रहे थे | मन बहुत उदास था मानों कोई साथी बिछड़  गया हो |आखिर थक हार के मैंने कुछ भी नहीं लिखने का फैसला  कर लिया | तभी इक कोरे कागज का टुकड़ा उड़ते  हुए आया और कहने लगा लिखो ना लिखती क्यों नहीं ?" मनवा "में तो हमेशा रिश्तों कि बात होती है ना आज हम पर ही कुछ कह दो | मैंने कहा कैसे लिखूं फिर से इक नयी दास्तान , गम कि स्याही दिखती है कहाँ ? "
दोस्तों , मैंने उन कागजों को समेटा और सोचने लगी | कितना पुराना  और आत्मीय  रिश्ता है मेरा इन कागजों से | ठीक वैसा ही जैसा किसी बेटी का अपनी माँ  से होता है | जब वो अपने दुखों कि गठरी  माँ के आँचल में छुप कर खोल  देती है और हल्की हो जाती है| जैसे कोई प्रेयसी अपने बरसों के बिछड़े  प्रेमी  से मिलकर  उसके काँधे पर अपना  सर रखकर रोलेती है और उसकी रूह  में अपना दर्द उड़ेल देती हो|
कुछ ऐसा ही पवित्र  रिश्ता है | मेरा इन सफ़ेद  कागजों के साथ |  ये मेरे सच्चे साथी हैं | ये मेरे साथ हमेशा रहते है | इनसे मैंने हमेशा  अपनी अव्यक्त  भावनाएं  बांटी है | वक्त के लम्हों में कैद  वो कोमल भावनाएं आज भी  सोयी हुई है कितनी सुन्दर कितनी अपनी  सी जिन्हें इन कागजों  ने किसी से नहीं कहा बस खुद तक ही रखा |
आप सोच रहे होगें  इतनी बड़ी दुनियाँ में  , रिश्तों की भीड़ में  और संबंधों के ताने बानों के बीच  इन कागजों से क्यों कर रिश्ता बनाया जाए ?
तो चलिए ,मैं बताती हूँ इनसे रिश्ता क्यों  बनाया  जाये | जब सारी दुनियाँ में आप खुद को तनहा महसूस करे | आपकी बात कोई समझे नहीं | जब मन के सागर में दर्द की लहरें उठने लगे | आपकी  दर्द भरी आह  मीलों तक जाकर वापस आ जाये |  दूर  तक खामोशी का सिलसिला  हो| तब आप क्या करेगे ? इन कागजों पर खुद को  उड़ेल दीजिये ना | इन पर गिरे  आंसूं  अपने गहरे निशान  छोड़ते हैं | जिन्हें आप कभी भी स्पर्श करके महसूस कर सकते है|
दोस्तों , कभी कभी ऐसा भी होता है ना , जब दर्द  अपनी  सीमाएं तोड़ने लगता है | उस समय सांसे तो चलती है लेकिन हम ज़िंदा नहीं होते | आखों में हजारों  सपने  जरुर होते है लेकिन टुकड़ों की शक्ल में |होठों पर हजारों सवाल ऐसे होते हैं जिनके जवाव  बने ही नहीं | धड़कने जब भटक कर दिल को तलाशने  लगे जैसे कोई दस्तक किसी  दरवाजे का पता पूछने लगे |
आपकी रूह जब देह से जुदा होने  लगे , कोई आसपास ना हो , तो आप लिख दीजिये ना इक इबारत कोरे कागजों पर | आप इन पर चाहे कितना गुस्सा होले , नाराज होले  , कितने ताने मार ले कटाक्ष  कर ले , ये फिर भी ख़ामोशी से आपको खुद में समा लेगे  | ये आप पर हक़ नहीं जताते , ये आपसे हिसाब नहीं माँगते ये आपके दर्द को जज्ब कर लेते है खुद में | ये आपके सवालों से परेशान नहीं होते बस चुपचाप  सुनते हैं | ये आपके सच्चे साथी है |
तो चलिए फिर आज इक नयी दास्ताँ  लिखे , अरे  --आप क्या सोचने लगे की अपनी भावनाएं  कैसे व्यक्त कर दे सबके सामने  तो यही कहुगीं की आप लिखिए तो सही  आपको  लिखने के लिए किसी स्याही या की बोर्ड की जरुरत नहीं होगी बस आखों वाले पानी से काम चल जाएगा  | हाँ और उसे पढ़ना  हर किसी के बस की बात भी नहीं है | अब वो नजर ही नहीं किसी के पास जो आसुंओं की जुबान  पढ़े | गम की स्याही किसी को नजर नहीं आती दोस्तों उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है |
लो फिर इक कागज के टुकड़े ने आकार मेरे कान में कह दिया की " कैसे लिखोगी इक नयी दास्ताँ ,गम की स्याही दिखती है कहाँ ?

5 comments:

shri naath sharmaa ने कहा…

bahut hi sundar rachana , ikdam alag hat kar darshan hai tumharaa . ye rishtaa kagajon se banaye rakhana ashirvad

19 मई 2011 को 8:33 pm बजे
reply2jaswal ने कहा…

सुन्‍दर

19 मई 2011 को 9:49 pm बजे
बेनामी ने कहा…

TAB gam tha to lagta tha gam hi gam hai
AAJ wah nahi hai to
TO kitna khali khali lagta hai
very nice reading mamtaji
pkmishra

20 मई 2011 को 6:52 am बजे
मंजुला ने कहा…

जब सारी दुनियाँ में आप खुद को तनहा महसूस करे | आपकी बात कोई समझे नहीं | जब मन के सागर में दर्द की लहरें उठने लगे | आपकी दर्द भरी आह मीलों तक जाकर वापस आ जाये | दूर तक खामोशी का सिलसिला हो| तब आप क्या करेगे ? इन कागजों पर खुद को उड़ेल दीजिये ना | इन पर गिरे आंसूं अपने गहरे निशान छोड़ते हैं | जिन्हें आप कभी भी स्पर्श करके महसूस कर सकते है|

bahut samvensil lines hai....
bahut achha likha hai

20 मई 2011 को 12:22 pm बजे
suraj rai suraj ने कहा…

bahut sundar vichaar " ye sach hai aesaa karataa hun to gan kam ho jata hai , main kagaj pe likhata hn to kaagaj nam ho jata hai " likhati raho

20 मई 2011 को 7:43 pm बजे

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