तुम इतना क्यों मुस्कुरा रहे हो ?

शुक्रवार, जून 3 By मनवा , In

दोस्तों , इस बार पोस्ट लिखने की वजह दो खबरें बनी हैं | इन खबरों को पिछले दिनों मैंने पढ़ा आप सभी ने भी जरुर देखा होगा | पहली तो ये की , अभिनेता  राजकिरण अमेरिका के इक शहर अटलांटा  के पागलखाने में मिले हैं |राजकिरण पिछले इक दशक से लापता थे | उनके सच्चे  दोस्तों दीप्ती नवल और ऋषि कपूर  ने उन्हें  ढूंढ़  निकाला है | ऋषि कपूर ने अपने खर्चे पर उन्हें खोजा | ऐसी सच्ची दोस्ती को मेरा नमन | राजकिरण  को आप सभी जानते होगे ये नाम  सुनते ही  जहन में  सबसे पहले इक सुन्दर सा चेहरा आता है|जिसकी बड़ी ही प्यारी और भोली  सी मुस्कान थी | अरे अभी भी याद नहीं आया  ? याद कीजिये  अर्थ फिल्म का वो   मधुर  गीत "तुम इतना जो मुस्कुरा  रहे हो क्या गम है जिसको छुपा  रहे हो ? " जीहाँ  ये वही  राजकिरण हैं जो इस गीत में अपनी  दोस्त से कहते है की बन जायेगे  जहर पीते- पीते जिन   अश्कों को तुम पीये  जा रहे हो |
 ऐसा  क्या हुआ राजकिरण के साथ की उनके अश्क जहर बन गए | कहाँ गए वो रिश्ते जिन्हें  उन्होंने उम्र  भर सहेजा होगा ? वो दोस्त जो उनके सफल दिनों में उनका साथ नहीं छोड़ते  थे| वो दुःख के क्षणों  में कहाँ  गायब हो गए ? क्या राजकिरण अपनी मुस्कराहट  के पीछे  दर्द  को छिपाने का हुनर  जानते थे ? या वे  अपनी हाथ की लकीरों  से ही  मात खा रहे थे ?
दूसरी  खबर , का इस खबर से कोई मेल तो नहीं है लेकिन दर्द और मुस्कराहट का रंग इसमे भी छलकता  है |खबर ये है की जयपुर शहर की १२ वर्षीया नैना इक अजीब सी बीमारी से पीड़ित  है हम सभी जानते है कोई भी बीमारी या कोई दर्द किसीके चेहरे पर हंसी नहीं ला सकता | लेकिन नैना के चेहरे पर हमेशा हंसी रहती है असहनीय  दर्द से जूझती  ये बच्ची विल्सन  नमक बीमारी से ग्रस्त  है | ये आनुवंशिक बीमारी से उसके सभी भाई बहन भी पीड़ित हैं | जयपुर के एस. ऍम. एस. अस्पताल में न्यूरोलोजी वार्ड में भर्ती बच्चों  के इलाज में माता पिता का घर  द्वार  सब बिक गया  लेकिन ना देह को दर्द से छुटकारा  मिलता है ना होठों  को खोखली मुस्कान से निजात मिलती है |
दोनों ही खबरे , मुझे अन्दर तक  द्रवित  करती हैं | इक में , कोई हँसता खिलखिलाता , मुस्कुराता  व्यक्ति , अचानक हमारे बीच से गायब हो जाता है | अपना देश छोड़  परदेश के पागल खाने में पाया जाता है |  उसके पास कोई क्यों नहीं होता ? उसका दर्द कोई क्यों नहीं समझता ? क्या पागलखाने के डॉक्टर , मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक किसी के  मन की अतल   गहराइयों में जाकर दर्द की तलहटी को छू सकते है?
कभी नहीं . वो सिर्फ मन को, भावना को और अहसासों को इक रासायनिक क्रिया  से ज्यादा कुछ नहीं बता सकते | मन की बाते , मन की उलझन , मन के दर्द के कोई मन वाला ही समझ सकता है| क्यों लोग अपने चेहरे पर झूठी मुस्कान चिपकाये घूमते है ? अन्दर अन्दर रो लेना  बाहर बाहर हंस लेना क्या ये तरीका ठीक है ? दुःख है तो भाई ,दुखी हो लो यार . रो लो जी भर कर | क्या जरुरी है दुनिया के सामने इक प्लास्टिक की हंसी चिपकाई जाये ?
दर्द है तो उसे   महसूस किया जाये ना की उसे पाला जाये | प्रेम है तो उसे भी महसूस किया जाये उसे अनदेखा ना किया जाये | हम प्रेम को भी छिपाते हैं और दर्द को भी | दुनिया से डर कर है ना ? जबकि ये बहुत ही सहज है | मौलिक है | गम को छिपा कर क्यों मुस्काए कोई ? और खुश  हो तो क्यों ना हँसे कोई ?  और जब हम मन की नहीं सुनते प्रक्रति  के विपरीत चलते है तो हम दर्द में मुस्काते है और खुश होंने पर ख़ुशी को भी दबा देते है | खुल कर हँसते नहीं| खुल कर रोते नहीं | लोग क्या कहेगे ? इसलिए मन की बात मन से कभी निकलती नहीं और फिर इक दिन वो आसूं जहर बन जाते हैं |
दूसरी खबर में ,कोई मासूम सी बच्ची अपने दो और भाई बहनों के साथ असहनीय  दर्द से गुज़रती है और होठों पर हंसी है |क्या गुज़रती होगी उस बेबस माँ  पर और असहाय  पिता पर वो  रोज खुदा से कहते होगे ये हंसी छीन लो पर दर्द से मुक्ति दो |तो दूसरी और राजकिरण के दोस्त कहते होगे कब आयेगी फिर से उस भले चेहरे पर भोली हंसी | दोनों जगह दर्द है हंसी है| लेकिन नियम नहीं है| इक जगह  बीमारी में होठों से चिपकी हंसी कुदरत का सन्देश देती है की , दर्द में हँसना  सिर्फ बीमारी है और कुछ नहीं | और दूजी तरफ राजकिरण तुम क्यों इतना मुस्कुरा गए की दर्द अपनी पराकाष्टा पर पहुंच गया और तुम्हे इस सुन्दर दुनिया से बेखबर कर दिया | और नैना  अब मुस्कराना  बंद कर दो ,तुम्हारी मुस्कराहट निच्छल  मुस्कान नहीं है वो उन तमाम लोगो को सन्देश देती है चेतावनी  देती है की सुनो, यदि तुमने सच्ची सहज मुस्कान अपने होठों पर नहीं खिलाई  और गम को छुपा कर मुस्काते रहे तो ये प्लास्टिक की हंसी इक दिन बीमारी बन जाएगी | कह उठेगे लोग तुम इतना क्यों मुस्कुरा रहे हो ?

2 comments:

बेनामी ने कहा…

"मन की बाते, मन की उलझन, मन के दर्द के कोई मन वाला ही समझ सकता है" - अक्षरशः सत्य
बहुत सुंदर - प्रभावशाली आलेख

3 जून 2011 को 8:56 pm बजे
संजीव शर्मा/Sanjeev Sharma ने कहा…

कहाँ से तलाशती हो जीवन के इतने गम और गम में भी खुशियाँ...बधाई जीवन के दो विपरीत पहलुओं को एक साथ दिखाने के लिए ...

4 जून 2011 को 9:59 am बजे

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