जाने किस आँच में शबनम जलती है ......

रविवार, अप्रैल 21 By मनवा

मेरे एक खास मित्र हैं जो बचपन से नेत्रहीन हैं उन्होंने अपने जीवन में कभी कोई रंग या रूप नहीं देखा । कोई स्त्री कैसी दिखती है वो नहीं जानते । मैं हमेशा उन्हें देख बहुत दुखी होती हूँ और सोचती हूँ कि क्या करू उनके लिए वो ये सुन्दर दुनिया देख सके ...पिछले दिनों उन्हें किसी से प्रेम हुआ सबसे पहले मुझे बताया उन्होंने , मैंने पूछा  लोगों को पहली नजर में प्रेम  होता है या पहली नजर से कोई दिल में उतरता है तुम्हे क्या हुआ  वो बोले पहली आवाज का प्यार हुआ या पहली छुअन का प्यार हुआ मुझे और वो हंस पड़े , फिर गंभीर होकर बोले दरअसल मैंने अपनी प्रिय को आखों से नहीं , कानों से नहीं , छूकर भी नहीं सिर्फ और सिर्फ ह्रदय से अनुभव किया और मैंने उसे पूर्ण रूप से जान लिया । 

सच्ची बात बोली उन्होंने , जब आप आखों की , कानों की ,खुशबु की खिड़की बंद कर देते हैं और स्पर्श की भी तो प्रेम अपने रस्ते खोज लेता है वो सीधे रूह के रस्ते ह्रदय के रस्ते आता है अनुभव होता है और आपको पिघलाता  है  और यक़ीनन ऐसा  प्रेम निर्दोष होगा , पवित्र भी और शाश्वत भी ..
प्रेम को सिर्फ अनुभव किया जा सकता है जैसे बच्चे अनुभव करते हैं निर्दोष भाव से कुछ सोच -विचार नहीं ,उसी माँ से पिटेंगे और रोकर उसके ही गले लंगेगे । सोच विचार और तर्क हम बड़े लोग यानि समझदार (?) लोग करते हैं।  हमारी समझ हमारी बुद्धि संदेह , शंका और शक के प्रपंच रचती है और हम ताउम्र मस्तिष्क में जीते हैं . विचार करते हैं तौल -मौल करते हैं हिसाब -किताब रखते हैं लेकिन इक छोटा बच्चा ह्रदय में जीता है वो अनुभव करता है विचार नहीं । इसीलिए वो निर्दोष है अभी रोया अभी हंसा अभी  रूठा अभी मान गया ..वो हर पल बहता है । 
ओशो ने इस सन्दर्भ में बहुत सुन्दर बात कही वे कहते हैं "जब तुम विचार करते हो तो अलग बने रहते हो जब तुम अनुभव करना सीख जाते हो तो तुम पिघलते हो । अब ये हमें तय करना होता है कि हम विचारों के पहाड़ बने या  भाव की नदी बन जाये , अपने सोच विचार के साथ जड़ किनारे बने रहें या लहरों की तरह बहते रहें ..पिघलते रहें , पिघलने के लिए अनुभव जरुरी है , अनुभव से अलगाव समाप्त होता है जितना हम प्रेम को अनुभव करते हैं , रिश्तों को , चीजों को जितना महसूस करते चलते हैं हम उनके निकट होते जाते हैं , एक समय ऐसा आता है कि दूरी समाप्त हो जाती है क्योकिं भाव उठने लगते हैं , मन में जब भाव उठते  हैं तो दूरी के लिए कोई स्थान नहीं होता , समीपता भी , निकटता भी  दूरी लगने लगती है और ठीक उसी समय उसी क्षण हम पिघलते हैं , विलीन होते हैं । पिघलने से सीमाएं समाप्त होती हैं , बहाब कब सीमाओं में बंधे है सैलाब सीमा रेखाओं की नहीं सुनते , बादल उमड़े तो बरसेगें ही यक़ीनन ....
हम जब तक खुद को या दूसरों को सीमाओं में दायरों में बांधते है तब तक हम प्रेम में विलीन नहीं हो  पाते और जिस दिन पिघलते है उस दिन सभी इंच सेंटीमीटर की सीमा -रेखा  समाप्त हो जाती है । खुशबु जब उठती है चन्दन से तो किसी इशारे से चुप नहीं होती वो बहती है उडती है कोई रोक नहीं , कोई टोक नहीं ।      
लेकिन हम जब विचार करते हैं तो रेखाए खींचते हैं , विचार हमेशा सीमाओं को जनम देते हैं बुद्धि कहती है रुको ....सुनो ..फूंक -फूंक के कदम रखो , कहीं धोखा न हो , छल न हो जाए , जो प्रेम तुम्हे डूबा रहा है इसकी वजह खोजो , परिभाषा खोजो , और बस ,,यही इक जहरीला विचार सैकड़ों सुन्दर भावों को मधुर अहसासों को नष्ट करने के लिए पर्याप्त होता है । हम फिर से अपनी खोल में कैद होते हैं अपने विचारों के साथ ,  पहाड़ से रूखे खुरदुरे जैसे कोई द्वीप हो सागर में अकेला सा गुमसुम सा ...चुप चुप सा ..आसपास की लहरें उस पर कोई असर नहीं डालती । लहरों के पास अपने कोई विचार नहीं , कोई गणित भी नहीं वो ह्रदय में जीती हैं इसीलिए बहती हैं उनका कुछ निश्चित नहीं सबकुछ अस्पष्ट , सरल हैं , तरल हैं रहस्य हैं उनके तभी तो आकर्षण का केंद्र हैं । 
बुद्धि के पास सब स्पष्ट है , निश्चित है , ठहराव है ,इसलिए दोष भी है । बुद्धि प्रेम नहीं करने देती , अनुभव नहीं करने देती इसलिए पिघलने भी नहीं देती । निर्दोष नहीं रहने देती , पवित्र भी ..
लेकिन जब हम ह्रदय के स्तर परचीजों को , लोगों को  अनुभव करते हैं तो हम नए होते हैं , निर्दोष , बिलकुल बच्चों की तरह निच्छल से ..और हम प्रेम को महसूस कर पाते हैं । जैसे मेरे नेत्रहीन मित्र ने महसूस किया अनुभव किया , जाना नहीं , पहचाना नहीं सिर्फ अनुभव किया और प्रेम किया । जब हम किसी के प्रेम में होते हैं तो उसे टुकड़ों में महसूस नहीं करते कि  उसकी आखें सुन्दर हैं , आवाज , अंदाज , चेहरा या देह ..खूबसूरत  है । हम उसे समग्रता में ही अनुभव करते हैं । बाहर कहीं नहीं वो आपके भीतर ही प्रकट होता है , सर से पैर तक लेकिन प्रेम में बिन उतरे आप महसूस नहीं कर सकते । किसी को जानने के लिए हमें उसे ह्रदय से जानना होता है केवल और केवल प्रेम से ही ये सम्भव है । किसी की आखें , आवाज या अंदाज  चेहरा या देह या व्यवहार से आप किसी के प्रेम में नहीं पड़ते और ना उसे कभी पूर्ण रूप से जान पाते हैं । आप जब ह्रदय से अनुभव करते हैं तब ही पिघलकर विलीन होते हैं दूसरे में ...खुद को भुला देते है , मिटा देते हैं  दूसरे के लिए ..ठीक वैसे जैसे कोई शमा अपने भीतर की आंच से पल-पल पिघलती है और मिटती है , उसे मिटने का अरमान है कोई जबरदस्ती नहीं करता उसके साथ , कोई कहता भी नहीं ,,पत्तियों पर पड़ी ओस की बूंदों को कि तुम सुबह होते ही पिघल जाना । वो शबनम किस आग में जलती है कैसे लम्हा -लम्हा  वो विलीन होती जाती है .कहाँ उड़ जाती है कौन जाने ? 
पवित्र ,शीतल ,अतिकोमल सी बूंदें हरी पत्त्तियों पे कैसे चिपकी रहती हैं ? और किस आग में चुपके से पिघलती जाती है ? क्या इन हरी पत्तियों के भीतर कोई अलाव जलता है ? 
अक्सर मुझे लगता है , ये सारी  कारगुजारियाँ  आसमान की हैं , दिनभर अपने झमेलों में उलझा आसमान रात को समय चुरा कर अपनी धरती को प्रेम -पत्र लिखता होगा । इन हरी पत्तियों और रंगीन फूलों पे हजारों चिठ्ठियाँ लिख जाता होगा । कमाल ये कि जब उसे बिजली गिरानी होती है तो सीधे धरती के सीने पे गिराता   है और अपने अव्यक्त प्रेम को इन प्रेम पत्रों पे लिख कर सरे  बाजार  टांग  देता है । हजारों हजार ख्वाहिशे , हजारो उम्मीदे , हसरते , मनुहार और आभार सब इन प्रेम -पत्रों में व्यक्त होते हैं लेकिन सरे बाजार ..जो चाहे पढ़ ले , समझ ले गुन ले , धरती सब जानती है मन ही मन वो जलती है , उसकी आंच से ही ये शबनम पिघलती है यक़ीनन ...उसके  ह्रदय की भाप से ये शबनम पिघल जाती है । प्रेम आपको घोलता है , पिघलाता है विलीन कर देता है फिर वो आपके भीतर बहता है उस आंच से दूर बहुत दूर आपका दूसरा हिस्सा पिघलता है आप सिर्फ अनुभव करते हैं और दूर कही बहुत दूर कोई ग्लेशियर पिघल जाता है , नदी बन जाता है , ऐसी ही किसी आंच में शबनम जलती है । 

2 comments:

बेनामी ने कहा…

अप्रतिम

21 अप्रैल 2013 को 9:44 pm बजे
Unknown ने कहा…

¨prem ko samajhne, mahsoos karne, aatmsaat karne ke liye itna kuch likha padha gaya, phir bhi yah aboojh bana hua hai. iska praman yahi hai ki ab bhi is per har roz duniya ke har kone me likha ja raha hai...darasal prem apoorn ras hai, jab tak yah apoornta vidyamaan hain, yah kavayad satat chalti rahegi aur shayed chalni bhi chahiye...jinko ko bhi prem poornta me hasil ho gaya ve khamosh ho gaye, maun ho gaye, avyakt ho gaye...
prem ke sach ko kareeb laati mamta ji ki yah post prem ka sarlikaran use samjhane ek behtreen koshish hai...lekhan me bada swabhavik sa pravaah hai jaisa prem me kalpit kiya jaata hai....bina laag lapet ke baate kah dena aapke lekhan ka vishesh gun hai...anekanek badhai mamta ji

shrish

22 अप्रैल 2013 को 3:42 pm बजे

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