मैं खाब -खाब जिसे ढूंढता रहा बरसों -----

शनिवार, मई 15 By मनवा

पिछले दिनों । किसी ने मुझे सलाह दी की , अपने ब्लॉग का ये क्या नाम रखा है , तेरा मेरा मनवा ------ की बात क्यों ? समाज की बात करों , देश की बातें करों स्त्री विमर्श की बात करों आदि मैने कहा - आप क्यों परेशान होते है ? समाज की देश की चिंता में कई सारे ब्लॉग घुले जा रहे है आधे तो पुरुषों के खिलाफ मोर्चा खोले खड़ें है तो आधे स्त्रियों के विरुध्द जिंदगी में हर किसी का अपना अपना आसमाँ हर कोई अपने जुनूँ की कह रहा है दास्ताँ वाला हाल है --- दुनिया दारी से दूर ये ब्लॉग मन की बात कहता है वो बात जो अनकही रह गयी वो भावनाएं जिन्हें शब्द नहीं मिले वो संवेदनाएं जो अभिव्यक्त होने को आतुर हैं हमारे आसपास बहुतेरे लोग एसे है जिन्होनें कभी भी खुद को अभिव्यक्त नहीं किया और सारी उम्र इक टीस मन में पाले रहे कई सारे एसे भी है जिन्होनें समय रहते हाले दिल कहा ही नहींकी " हाले दिल हम भी सुनाते लेकिन जब वो रुखसत हुआ तब याद आया ", खेर
तो तेरा मेरा मनवा में एसे लोगो की छोटी छोटी कहानियाँ आपको मिलेगीं जिन्हें पढ़ कर आप भी सहसा कह उठेगें अरे ; यही तो है मेरे मन की बात -- दोस्तों हम ताउम्र लोगो से मिलते है जुलते है लेकिन खुद से खुद का हाल कभी नहीं पूछते है ना - मनवा ---- आपको आपसे रूबरू करवाएगा आप सहसा कह उठेगें " मैं खाब -खाब जिसे खोजता रहा बरसों - वो अश्क - अश्क मेरी आँख में समाया था " आज इतना ही







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