सिर्फ अहसास हैं ये रूह से महसूस करो -----

सोमवार, जुलाई 19 By मनवा , In

सिर्फ अहसास है ये रूह से महसूस करो --- जब भी मैं इन पंक्तियों को सुनती हूँ या पढ़ती हूँ तो अक्सर सोच में पड़ जाती हूँ कि, क्या इन दिनों सही में अहसास , भावनाओं , यादें तमन्नाओं या संवेदनाओं का कोई मोल रह गया है ? या ये सब बीते दिनों कि बातें हो गयी हैं
क्या अब भी रिश्तों को रूह से महसूस किया जाता है ? हम आदिम युग से होते -होते रोबो युग तक आ पहुचें है खूब विकास किया है हमने हमारा और बड़ी ही चतुराई से हमने अपने रिश्तों को अपनी जरूरत के हिसाब से , अपनी सुविधाओं के अनुसार , अपने हालात के मुताबिक बनाना सीख लिया हमारे रिश्ते अवसरों के मोहताज हो गए और इसी बीच चुपके से अहसास नामक तितली कब पंख लगा कर उड़ गयी हमें पता ही नहीं चला .हमारे रिश्तों से संवेदनाएं , भावनाओं कि खुशबु कहाँ विलीन हो गयी हम जान ही नहीं सके
जब हमारे रिश्तों से ये अनमोल मोती खो गए तो हमारे पास बचा ही क्या ? हम तो कंगाल हो गए रिश्तों के मामलों में हमसे बड़ा मुफलिस कोई नहीं ।
किसी के दर्द से यदि हमारी आँख नहीं भीगती , किसी प्रति हमारे मन में पीर नहीं उठती किसी की याद में अगर हमारी नींदें बंजर नहीं होती तो जरा सोचिये क्या हम जिन्दा हैं?
बेशक हमने कार, बंगलों , पैसों के रिश्ते बना लिए हों लेकिन इन कागज के फूलों में अहसास की सुगंध कहाँ ?हमने रिश्तों को खेल , तमाशे में ढाल दिया , जैसे इक मदारी डमरू बजा कर भालू , बन्दर का नाच दिखाता है ठीक वैसे ही हम भी जरुरत के डमरू पर नाचते हैं जरूरत पूरी हुई की ,रिश्तों कि भी उम्र पूरी हो जाती है
हमने गमलों में अपनी सुविधा के बोनसाई उगाये हैं जब मन किया निहारा खुश हो गए और ये बोनसाई जरा से हवा पानी से मुरझा भी जाते है अब क्या ऐसे रिशतें है हमारे पास जिन्हें गहरे पेड़ों कि तरह रोज रोज सींचने कि आवश्यकता ना हो
क्या हम अपनी वातानुकूलित कमरों , कारों और ऑफिससे बाहर निकल कर कभी डूबते सूरज को देख कर कहते है कि --कहीं दूर जब दिन ढल जाये -----या कभी बरसात कि पहली फुहार हमें किसी अपने की यादों से रोमांचित करती है? ।
या दुनिया के झमेलों और स्वार्थों ने हमें पत्थर कर दिया है क्या कभी हमारी आँख किसी के अहसासों से भर जाती है क्या हमारे पास ऐसा कोई रिश्ता है जिसे हम हाथ से नहीं रूह से महसूस करते हो ? या हमने अपने सभी अहसासों संवेदनाओं को मार दिया और उनके जनाजों को पूरी जिंदगी उठाये फिर रहे है --"" फर्ज , अहसास , यादें तमन्नाएं मैं उठायें फिरता हूँ जनाजे कितने ""--

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