अबके सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई -------

बुधवार, जुलाई 21 By मनवा , In

मनवा में , आज कुछ बातें मौसम की आप कहेगें की मन की बात करने वाला " मनवा " आज मौसम की क्यों बात करने लगा - दोस्तों बात दरअसल मन की ही है बस शुरू मौसम से करते हैं आप सभी बरसात के इंतजार में है लेकिन बादल ना जाने क्यों रूठे हुए है वो आते तो है किसी आतुर प्रेमी की तरह बरसने के लिए लेकिन ना जाने क्यों इस धरती को अपनी झलक दिखा कर दरवाजे से ही लौट जाते है मानो कह रहे हों आज समय नहीं है ज़रा काम में व्यस्त है फिर कभी देखेगे और धरती फिर इक बार बादलों की इस चतुराई और सयाने पन को समझ कर मुस्कुरा देती है वो जानती है ये बादल जरुर कहीं न कहीं बरसने ही गए है लेकिन धरती के किस टुकड़े को मेघों की कितनी जरुरत है ये बादल कभी जान ही नहीं पाते हैं कवि कुमार विश्वास की कविता है " कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है ,मगर धरती की बैचेनी को बस बादल समझता है -----" विश्वास जी को बादलो पर भरोसा हो सकता है लेकिन मुझे नहीं लगता की बादलों ने कभी धरती की बैचेनी को समझा होगा कोई चलता फिरता दीवाना भला धरती की गहराई को कैसे समझ सकता है ?
इन बादलों का भी कोई ठिकाना हो सकता है क्या ? आज इधर कल - उधर बरसे , बरसे ना बरसे तो ना बरसे अरे ये ना समझ तो ये भी नहीं जानते की धूप में गरमी से जो पौधे झुलस गए , मर गए जो फूल कुम्हला गए अब वो फिर से हरे नहीं होगे - चाहे अब ये बादल कितना भी
बरसे -दोस्तों हमारी जिंदगी भी तो ऐसी ही है ना -जब हमें सबसे अधिक किसी रिश्ते की जरुरत होती है तब यदि वो हमारे पास ना हो तो हमारी भावनाएं भी कुम्हला जाती है फिर चाहे वो कोई भी रिश्ता हो माता पिता भाई बहन या मित्र , और फिर मन का पौधा हरा नहीं होता चाहे कितने ही सावन बरसे
कभी कभी ऐसा भी होता है की , सावन भी आपसे शरारत कर बैठे आपके घर के अलावा सारे शहर में बरसात हो ओर आप तरसे हाँ जिंदगी में भी यही होता है आप के अलावा ईशवर सब को हरा कर रहा हो और आप इक - इक बूंद को तरस रहे हो इसी पीड़ा को कवि नीरज ने क्या खूब बयाँ किया है " अबके सावन में , शरारत ये मेरे साथ हुई मेरा घर छोड़ के , कुल शहर में बरसात हुई "
लेकिन मेरी दुआ है की अबके सावन में आप सब के मन के सभी कोने हरे हो जाए और दर्द की धूप में लगे घावों को ठंडक मिले --आमीन

2 comments:

मनवा ने कहा…

aapaka lekh padh kar vakai man haraa ho gayaa -vivek

21 जुलाई 2010 को 5:15 pm बजे
रौशन जसवाल विक्षिप्त ने कहा…

आपके ब्‍लाग पर आकर अच्‍छा लगा आप हिन्‍दी में बैहद अच्‍छा लिखती है। आपकों आफ लाईन हिन्‍दी लेखन का लिंक भेज रहा हूं इसे इन्‍सटाल कर ले पहले आप आफ लाईन लिखे फिर कापी और पेस्‍ट कर दे यहां डाउन लोड के लिए क्लिक करें आपको दो फाईले दिखेगी दूसरे वाली डाउन लोड कर अपने कम्‍पयूटर में इन्‍सटाल करे और आफ लाईन लिख कर रचनायें पोस्‍ट करें।

24 जुलाई 2010 को 8:30 pm बजे

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