अबके सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई -------

इन बादलों का भी कोई ठिकाना हो सकता है क्या ? आज इधर कल - उधर बरसे , बरसे ना बरसे तो ना बरसे अरे ये ना समझ तो ये भी नहीं जानते की धूप में गरमी से जो पौधे झुलस गए , मर गए जो फूल कुम्हला गए अब वो फिर से हरे नहीं होगे - चाहे अब ये बादल कितना भी
बरसे -दोस्तों हमारी जिंदगी भी तो ऐसी ही है ना -जब हमें सबसे अधिक किसी रिश्ते की जरुरत होती है तब यदि वो हमारे पास ना हो तो हमारी भावनाएं भी कुम्हला जाती है फिर चाहे वो कोई भी रिश्ता हो माता पिता भाई बहन या मित्र , और फिर मन का पौधा हरा नहीं होता चाहे कितने ही सावन बरसे
कभी कभी ऐसा भी होता है की , सावन भी आपसे शरारत कर बैठे आपके घर के अलावा सारे शहर में बरसात हो ओर आप तरसे हाँ जिंदगी में भी यही होता है आप के अलावा ईशवर सब को हरा कर रहा हो और आप इक - इक बूंद को तरस रहे हो इसी पीड़ा को कवि नीरज ने क्या खूब बयाँ किया है " अबके सावन में , शरारत ये मेरे साथ हुई मेरा घर छोड़ के , कुल शहर में बरसात हुई "
लेकिन मेरी दुआ है की अबके सावन में आप सब के मन के सभी कोने हरे हो जाए और दर्द की धूप में लगे घावों को ठंडक मिले --आमीन
2 comments:
aapaka lekh padh kar vakai man haraa ho gayaa -vivek
आपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा आप हिन्दी में बैहद अच्छा लिखती है। आपकों आफ लाईन हिन्दी लेखन का लिंक भेज रहा हूं इसे इन्सटाल कर ले पहले आप आफ लाईन लिखे फिर कापी और पेस्ट कर दे यहां डाउन लोड के लिए क्लिक करें आपको दो फाईले दिखेगी दूसरे वाली डाउन लोड कर अपने कम्पयूटर में इन्सटाल करे और आफ लाईन लिख कर रचनायें पोस्ट करें।
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