हमने पलको पे जुगनू सजा रख्खे हैं --------------

गुरुवार, अगस्त 5 By मनवा , In

  मेरे  घर के सामने इक गरीब  परिवार  रहता है  कल मेरा वहां जाना हुआ ,  उनका पूरा घर धुएं  से भरा हुआ था  गृहस्वामिनी की दोनों आखों  से आसूं बहे जा रहे थे और रोने जैसी हालत थी  मैंने पूछा  इतना धुंआ क्यों ? बोली  क्या करे दीदी , गीली लकड़ी जलती है तो धुंआ देती है ना  पूरी तरह से जलती ही है ना बुझती ही है सामने अधजली लकड़ियों से    असहनीय धुंआ लगातार उठा जा रहा था
मैं  घर आकर सोचने लगी की , कितनी सही बात है अधजली लकड़ी , गीली लकड़ी धुंआ  देती है और अधूरे  रिश्ते ? वो भी तो जीवन भर धुंआ देते हैं- ना वो जलकर भस्म ही   हो पाते है और न उनकी राख ही सहेजी जा सकती है वो तो    आखों में धुएं की तरह    जीवन भर    चुभते ही रहते है दुःख देते रहते है दर्द देते रहते है
क्यों बनते हैं ऐसे रिश्ते ? और क्यों जलाते है ये तिल तिल , सुलगते रहते है मन ही मन , आसुओं से  नम  रिश्ते  पलको पर जलते  रिश्ते
जिस तरह आसुओं का पलको से पुराना रिश्ता है ठीक उसी तरह धुएं  का भी पलको से पुराना  इश्क  है तभी तो जरा आप अकेले हुए नहीं की पलको पर ये धुआँ अपना डेरा जमा लेता है किसी ने कहा है ना "  आँखों  में जल रहा है क्यों ? बुझता नहीं धुंआ , उठता तो घटा  सा है बरसता नहीं धुंआ "
कितनी गहरी बात है दोस्तों कितनी पीड़ा कितना दर्द है उस क्षण में जब आप अपनी दो छोटी आँखों  में ज़माने भर का दर्द समेट लेते हैं अनोखी बात तो ये है की जिन आँखों से गंगा जमुना बहती है उन पर कुछ  जलता कैसे  होगा ये बात सिर्फ वही समझ सकते है जिन्होंने दर्द के  धुएं  को सहेजा होगा  , पाला  होगा , ये वो गीली अधजली लकड़ियां है जो जली ही नहीं ये धुआँ वो अभिशप्त  रिश्तों  का है जो कभी मुकम्मल नहीं हुए , ये धुआँ उन अव्यक्त भावनाओं का है जिन्हें कभी शब्द नहीं मिले
दोस्तों कभी तो ये  दर्द धुंआ बन स्याह कर देता है हमारा  वजूद तो कभी यही दर्द  सूनी तनहा  खामोश रातों में जुगनू बन जाता है और टिमटिमाने  लगता है    दोस्तों अब कभी स्याह  रातों में कोई जुगनू देखो तो समझ लेना की किसी की पलको पर कोई रिश्ता कोई खाब जल रहा है   

4 comments:

समय चक्र ने कहा…

बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति.....

5 अगस्त 2010 को 6:21 pm बजे
kamal dixit ने कहा…

dhuan deti lakriyan adhoorepan ki nishani hain. poornta hi dhuan samapt karne men samrth hai. hum adhoore rahte huye dhuyen se kyon mukti ki chah karte hain1 isliye ki dhuan dhudhlata hai, dukh deta hai. apne adhoorepan ko poora karna hi sadhna, kaushal, parhai, adi anek namon se jani jati hai. rista apne ap men yadi poora nahi hai to wahi hoga jo apne likha hai.

6 अगस्त 2010 को 11:33 am बजे
बेनामी ने कहा…

kyaa baat hai , kitane gahare arth rakhate hai aapake lekh -- arshi

6 अगस्त 2010 को 7:27 pm बजे
विजयप्रकाश ने कहा…

बढ़िया...भावपूर्ण आलेख.

8 अगस्त 2010 को 11:35 am बजे

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