बह गए सब अहसास रे जोगी -----

बुधवार, अगस्त 11 By मनवा , In

दोस्तों  इन दिनों  रेडियों  पर फिल्म रावण का इक गीत बहुत सुनाई दे रहा है बहने दे मुझे बहने दे ------   और वहीँ दूसरी  और बाढ़  कहर ढा रही है तो कहीं बादल फट कर  जीवन लील  रहें है  ,अजीब है प्रकृति  के खेल दोस्तों प्यास बुझाने वाले  बादल जिन्दगी ले गए तो जीवन देने वाली नदियाँ  बस्तियां  उजाड़ रही है
कहीं तो बूंद बूंद पानी को तरसा जाती है कुदरत तो , कहीं इसी पानी में डूब डूब कर ना जाने कितनी मौते  हो जाती हैं
दोस्तों  , हमारा मन भी तो प्रकृति की मानिंद  होता है कभी दुःख की धूप से झुलस कर दर्द के रेगिस्तान में बूंद को तरस जाता है तो कभी मन की नदियाँ  में ऐसे तूफ़ान आते है , ऐसी बाढ़ आती है की सारे  अहसास , सारी भावनाएं ,इच्छाएं बह जाती हैं
दोस्तों नदी का स्वभाव ही है बहना , लेकिन हम इन्सान भी हर पल बहते है हर क्षण  बहते हैं जो हम अभी इस पल है , अगले पल कुछ और ही हो उठेगें .पानी की  तरह हम कहीं भी ठहरते नहीं तो दोस्तों क्या हमारे अहसास , भाव या की संवेदनाएं  ठहर पाती होगीं ? कभी  नहीं , कतई नहीं वो भी बह जाती है समय के साथ आज जो खुशबू   , फूलों में है , जो रवानगी हवा में है  जो तीव्रता धडकनों  में है क्या कल भी होगी ?? कौन जाने आने वाले पल में कुछ भी ना बचे , जिन आखों से आज गंगा जमुना किसी के लिए बहती है कल वहां  उजड़े रेगिस्तान नजर आये
हम जीवित रहते हैं क्योकिं हमारी साँसों  का सौदागर कोई और है लेकिन  अहसासों पर किसी का पहरा नहीं होता भावनाएं किसी की गुलाम नहीं होती संवेदना किसी की दासी नहीं होती वो तो मन की नदी में रहती है छुप कर
और जब इस नदी में 'पूर" यानी बाढ़  आती है तो दोस्तों सब बह जाता है अहसासों के कोमल घरौंदें .ख्वाइशों की बस्तियां और फना हो जाती हैं   हसरतों की हवेली
फिर कुछ नहीं बचता कुछ भी नहीं ----इससे पहले की मन की नदी सब कुछ बहा ले जाए हमें सहेजना होगा  उन ,  अनमोल मोतियों को जो किसी बाजार में नहीं मिलते छुपा लेना होगा उन सच्चे हीरों को जो हम कभी खरीद नहीं पायेगें वरना सब बह जाने के बाद हम किनारों पर पहुचें  तो नदी कह उठेगी
"पूर" आई थी मन की नदियाँ बह गए सब अहसास रे जोगी -----"और फिर  नदी क्या दे पाएगी जोगी तुम्हे ,खाली हाथ ही लौटना होगा  खाली हाथ -----

3 comments:

Mahendra Arya's Hindi Poetry ने कहा…

ममता , हम मनुष्य अल्पज्ञ हैं . हम कुछ नहीं जानते की अगले पल जीवन में क्या होगा. शायद इसी उतार चढाव का नाम जीवन है .किसी का कहा हुआ एक वाक्य जीवन के सारे अर्थ बदल सकता है - चाहे मीठे या खट्टे .नदी की बाढ़ हो या समुद्र की सुनामी दाम तो धरती को ही चुकाना पड़ता है . सुंदर भाव बहाव ....

12 अगस्त 2010 को 1:40 pm बजे
बेनामी ने कहा…

"और जब इस नदी में 'पूर" यानी बाढ़ आती है तो दोस्तों सब बह जाता है अहसासों के कोमल घरौंदें .ख्वाइशों की बस्तियां और फना हो जाती हैं हसरतों की हवेली
फिर कुछ नहीं बचता कुछ भी नहीं ----इससे पहले की मन की नदी सब कुछ बहा ले जाए हमें सहेजना होगा उन , अनमोल मोतियों को जो किसी बाजार में नहीं मिलते छुपा लेना होगा उन सच्चे हीरों को जो हम कभी खरीद नहीं पायेगें वरना सब बह जाने के बाद हम किनारों पर पहुचें तो नदी कह उठेगी
"पूर" आई थी मन की नदियाँ बह गए सब अहसास रे जोगी -----"और फिर नदी क्या दे पाएगी जोगी तुम्हे ,खाली हाथ ही लौटना होगा खाली हाथ ----- "

सिखने और समझने के लिए बहुत कुछ है इसमें - धन्यवाद्

13 अगस्त 2010 को 3:24 pm बजे
सूर्य गोयल ने कहा…

अंजना जी, गजब की कलम और अजब भाव है आपके. बहुत ही सुन्दर. फर्क मात्र इतना है की आप अपने दिल के भावो को शब्दों में पिरो कर बहुत सुन्दर लिखती है और मै उन्ही भावो से गुफ्तगू करता हूँ. आपका भी मेरी गुफ्तगू में स्वागत है.
www.gooftgu.blogspot.com

13 अगस्त 2010 को 7:30 pm बजे

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