जंजीरे तो जंजीरे ही हैं --------

रविवार, अगस्त 15 By मनवा , In

दोस्तों , आप सभी को आजादी की बधाई , ब्लॉग की दुनिया में खुद को अभिव्यक्त करने की आजादी , अपनी बात कहने की आजादी अपना मत रखने की आजादी चोरी- चोरी दूसरों के ब्लॉग की ताका- झाकीं की आजादी और कभी भी कहीं से भी जो पसंद आ जाये उसे प्यार से चोरी करके अपने ब्लॉग पर चिपका देने की आजादी और नए ब्लोगरों की रचना को पढ़े बिना ही टिप्पणी करने की आजादी मिली है हमे







हम  सभी आजाद है हमारे अपने -अपने देश हैं अपने अपने आसमां है और इस आसमां के तले हम खुद को आजाद महसूस करते हैं






लेकिन क्या हम जहनी तौर पर भी आजाद हैं ? या हमारे मन हमारे दिमाग आज भी गुलाम है झूठे स्वार्थों . अवसरवाद , दुनियादारी , अपनी ही सुविधा , सहूलियत के हिसाब से रिश्तों को बनाने की ग्रंथियों से , क्या हम गुलाम नहीं अपनी जरूरतों के , क्या हम गुलाम नहीं झूठे आदर्शवादों के -दूसरो के सामने हम कैसे दिखे ? हमारे बारे कौन क्या सोचता है दूसरे कहीं हमें गलत ना समझे क्या हम कभी इस मानसिकता से आजाद होगें ?






हम जो वास्तव में है हम ज्यों के त्यों किसी के सामने प्रस्तुत हो पायेगें ? या जीवन भर मुखौटों के पीछे खुद को छिपाते ही रहेगें






दोस्तों इस स्वतंत्रता दिवस पर कामना है की हम खुद की बनाई हुई जंजीरों से मुक्त हों , हम उन बेड़ियों से आजाद हों जो हमें दिखती तो नहीं है लेकिन चुभती रहती हैं हम आजाद हो उन झूठे बन्धनों से जो हमारे जीवन को बोझिल बनाते है हम आजाद हों अपने मन से . दिमाग से हम ऐसे जिए की हम भी आजाद रहें और किसी और की आजादी की भी हमें फिकर हो ,






हम जो है जैसे हैं वैसे ही बने रहें हम स्वांग ना रचे ,, हमारा निज कोई हमसे ना छीने हम मन से आजाद हों हमारे दिल के दरवाजे हमेशा खुले रहें हम छोटी खिड़की (दिमाग की )से झाँक कर ये तय ना करे की किसके अन्दर आने से हमे लाभ होगा और किसे दिल से बहार फेकं देने में हमारा फायदा है हम सभी के और सभी हमारे हों हम आजाद हों ,हमारी सोच स्वतंत्र हो यही असली जशने आजादी होगा






तो इस बार तोड़ दीजिये उन जंजीरों को जो दुःख देती हो , जो गुलाम करती हों आपके मन को आपके मानस को क्योकिं दोस्तों जंजीरे तो आखिर जंजीरे ही है चाहे वो सोने की ही क्यों न बनी हों






जंजीरे तो जंजीरे ही हैं --------

2 comments:

संजय भास्‍कर ने कहा…

स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.
अत्यंत सुन्दर रचना ,,एक खूबसूरत अंत के साथ ....शब्दों के इस सुहाने सफ़र में आज से हम भी आपके साथ है ...शायद सफ़र कुछ आसान हो ,,,!!!! इस रचना के लिए बधाई आपको

15 अगस्त 2010 को 11:07 am बजे
mamta ने कहा…

संजय जी . ब्लोक तक आने का शुक्रियां , शब्दों के राही तो हम सभी है बस जिंदगी को अनुभव करने और उसे अभिव्यक्त करने का तरीका जुदा जुदा होता है कोई आखों देखी कहता है ,कोई जग देखि कहता है जिन्दगी के सफ़र में बहुत यात्री हमें मिलते है लेकिन सफ़र तब ही सुहाना होता है जब हमारे मन आपस में मिले हों और ये मन कभी मिल नहीं पाते सबकी अपनी सोच अपना जहां है कोई किसी को समझना नहीं चाहता सब को बस अपनी अपनी कहना है इसी लिए मुझे कबीर की ये पंक्तियाँ बहुत पसंद हैं " तेरा मेरा मनवा कैसे इक होई रे " सभी के मन आपस में जुड़े हो मिले हो यही कामना है -mamta

15 अगस्त 2010 को 2:43 pm बजे

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