एक पुराना मौसम लौटा -----
एक पुराना मौसम लौटा -----------
दोस्तों , बदलते मौसम से शुरू करते हैं आज की बात , कभी झुलसा देने वाली गर्मी तो कभी ठिठुरा देने वाली ठंड , कभी रिमझिम बरसात तो कभी उबा देने वाली उमस , ये मौसम के रंग बड़े निराले होते हैं
कहीं पत्तों की सरसराहट , तो कहीं महकती खुशबू के साए से ये मौसम हमारे मन की तरह चंचल होते हैं ये आते है और फिर चले जाते है मन में इक मीठी सी कसक छोड़ कर
दोस्तों पतझड़ , सावन बसंत बहार का नाम तो आपने खूब सुना होगा और अनुभव भी किया होगा इन्हें ,लेकिन क्या आपने ऐसे मौसम के बारें में सुना है जो आता है तो फिर जल्दी नहीं जाता और भिगोता रहता है आपको मखमली एहसासों से --अभी तक नहीं समझे मैं यादों के मौसम की बात कर रही हूँ क्या आपने कभी ये कहा है ? " आज फिर दिल में तेरी याद का मौसम आया ---"" इन मौसमों में जब आखों से सावन की झड़ी लगती है तो फिर नहीं ठहरती , किसी प्रिय की याद में जब दिल भर जाता है तो इन दो छोटी छोटी आखों से समन्दर बहने लगते है मुझे तो लगता है की इसी वजह से समन्दर खारा हो गया है -जब आखों से गंगा -जमुना बहती है तो अपने साथ सभी दुःख , दर्द और पीड़ा बहा ले जाती है और सागर में जाकर मिल जाती है इसी से सागर खारा हो गया है
कभी कभी सोचती हूँ की -आखों के इन समन्दरों में ना जाने कितने टाइटैनिक डूब गए और किसी को कानो -कान खबर भी नहीं हुई जब यादों के मौसम में पतझड़ आते हैं तो पत्तों की तरह आपके खाब, आपके सपने टूटते है जिसतरह पत्ते शाख से टूट कर कभी कहीं ठिकाना नहीं पाते उसी तरह सपने भी टूटने के बाद कहीं ठौर नहीं पाते ये टूटे खाब टूटी आस अधूरी उम्मीदे सदियों तक भटकते रहते है
कभी किसी रोज यूँ भी होता है की कोई पुराना मौसम आपके दिल पर दस्तक दे और आप यादों की बोछारों में भीगते रहे- आप को ये मौसम अपने प्रेम से सराबोर कर दे और आप खुद को ही भुला दे
दोस्तों जिस तरह मन की नियति है इन्तजार करना उसी तरह मौसम की नियति है लौटना , उन्हें इक दिन लौटना ही होता है लेकिन जाने और लौट कर आने के बीच का जो अंतराल है वो बहुत ही पीड़ादायक होता है आप क्षण क्षण झुलसते हैं तिल तिल कर मरते हैं और कमाल ये की दुनिया को आप जिन्दा समझती है तो क्या आपके पास भी इस बरस कोई पुराना मौसम लौटा है यादों का , यदि नहीं तो उसे बुला लीजिये और भीग जाइये यादों की बोछारों में और कहिये "एक पुराना मौसम लौटा
याद भली पुरवाई भी
ऐसा तो कम ही होता है
वो भी हों और तन्हाई भी "
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दोस्तों , बदलते मौसम से शुरू करते हैं आज की बात , कभी झुलसा देने वाली गर्मी तो कभी ठिठुरा देने वाली ठंड , कभी रिमझिम बरसात तो कभी उबा देने वाली उमस , ये मौसम के रंग बड़े निराले होते हैं
कहीं पत्तों की सरसराहट , तो कहीं महकती खुशबू के साए से ये मौसम हमारे मन की तरह चंचल होते हैं ये आते है और फिर चले जाते है मन में इक मीठी सी कसक छोड़ कर
दोस्तों पतझड़ , सावन बसंत बहार का नाम तो आपने खूब सुना होगा और अनुभव भी किया होगा इन्हें ,लेकिन क्या आपने ऐसे मौसम के बारें में सुना है जो आता है तो फिर जल्दी नहीं जाता और भिगोता रहता है आपको मखमली एहसासों से --अभी तक नहीं समझे मैं यादों के मौसम की बात कर रही हूँ क्या आपने कभी ये कहा है ? " आज फिर दिल में तेरी याद का मौसम आया ---"" इन मौसमों में जब आखों से सावन की झड़ी लगती है तो फिर नहीं ठहरती , किसी प्रिय की याद में जब दिल भर जाता है तो इन दो छोटी छोटी आखों से समन्दर बहने लगते है मुझे तो लगता है की इसी वजह से समन्दर खारा हो गया है -जब आखों से गंगा -जमुना बहती है तो अपने साथ सभी दुःख , दर्द और पीड़ा बहा ले जाती है और सागर में जाकर मिल जाती है इसी से सागर खारा हो गया है
कभी कभी सोचती हूँ की -आखों के इन समन्दरों में ना जाने कितने टाइटैनिक डूब गए और किसी को कानो -कान खबर भी नहीं हुई जब यादों के मौसम में पतझड़ आते हैं तो पत्तों की तरह आपके खाब, आपके सपने टूटते है जिसतरह पत्ते शाख से टूट कर कभी कहीं ठिकाना नहीं पाते उसी तरह सपने भी टूटने के बाद कहीं ठौर नहीं पाते ये टूटे खाब टूटी आस अधूरी उम्मीदे सदियों तक भटकते रहते है
कभी किसी रोज यूँ भी होता है की कोई पुराना मौसम आपके दिल पर दस्तक दे और आप यादों की बोछारों में भीगते रहे- आप को ये मौसम अपने प्रेम से सराबोर कर दे और आप खुद को ही भुला दे
दोस्तों जिस तरह मन की नियति है इन्तजार करना उसी तरह मौसम की नियति है लौटना , उन्हें इक दिन लौटना ही होता है लेकिन जाने और लौट कर आने के बीच का जो अंतराल है वो बहुत ही पीड़ादायक होता है आप क्षण क्षण झुलसते हैं तिल तिल कर मरते हैं और कमाल ये की दुनिया को आप जिन्दा समझती है तो क्या आपके पास भी इस बरस कोई पुराना मौसम लौटा है यादों का , यदि नहीं तो उसे बुला लीजिये और भीग जाइये यादों की बोछारों में और कहिये "एक पुराना मौसम लौटा
याद भली पुरवाई भी
ऐसा तो कम ही होता है
वो भी हों और तन्हाई भी "
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1 comments:
और भीग जाइये यादों की बोछारों में
ममता जी अब यह मत कहना की यह टिपण्णी किसी और के लिए है. इस पर सिर्फ आपके विचारों का अधिकार है. रही बात आपके इस लेख की तो गजब के भाव पेश किये है. बहुत सुन्दर और उससे कही ज्यादा मेरी बधाई. लिखती रहे. मैंने आपको फोलो कर लिया है. चक्कर लगता रहूँगा.
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