इतने मसरूफ रहे दिए हम जलाने में -------------

बुधवार, नवंबर 3 By मनवा , In

दीपावली के पावन प्रकाशमय पर्व पर आप सभी को मनवा की , मन से शुभकामनाएं आप सभी के जीवन में सुख समृद्धि , धन ऐश्वर्य की जग- मग हो . आप वर्ष भर चमकते दमकते रहें हम "दिए "बने और अपनी रोशनी से दिलों के अंधेरों को परास्त करे दोस्तों , हम लोग वर्ष भर किसी न किसी त्यौहारके बहाने ख़ुशी को ढूंढ़ ही लाते हैं कभी होली के बहाने रंगों के माध्यम से अपना प्रेम और भाई चारा व्यक्त करते हैं तो कभी रक्षाबंधन के बहाने पवित्र प्रेम को धागे से बाँध कर अटूट रिश्ता गड़ लेते हैं तो कभी दिवाली पर दीयों के माध्यम से गहन अन्धकार को दूर करते हैं और पुराने वर्ष की थकान से निजात पा कर नए वर्ष के लिए तरोताजा हो लेते हैं तो चलिए आज मनवा के साथ पहला दीपक रोशन करते हैं ये दीपक है स्नेह का जिसमे हम समर्पण का तेल डालेगे और त्याग की बाती जलायेगे इस दिए से जो रोशनी चारों और फेलेगी वो यक़ीनन गहरे अन्धकार को दूर कर करने वाली होगी हर दिवाली पर हम अपने घर आँगन को खूब रोशन करते हैं और पूरेवर्ष जो जो भी मन्नते दिल में संजोयी हैं उन्हें दीयों के रूप में ईशवर को समर्पित करते हैं अपना सुख अपनी ख़ुशी अपने लाभ और अपने शुभ के अलावा क्या हम कभी किसी और के लाभ शुभ और हित की चिंता भी करते हैं ? क्या कभी हमने कोई दिया किसी अन्य की ख़ुशी सुख ओर सौभाग्य के लिए भी जलाया है क्या अपने मन में किसी के लिए कोई छोटा दीपक प्यार का विश्वास का जलाया है ?हैं चलिए आज दिए जलाने से पहले ज़रा सोचे की क्या हमने पूरे वर्ष में इक बार भी किसी के अन्धकार से घिरे मन में रोशनी की ? क्या किसी उदास दिल के दिए में हमने अपने प्रेम और विश्वास का तेल डाला ? क्या गहन अमावस्या से घिरे किसी के जीवन में" दिया "बन कर हमने खुद जलकर रोशनी की या हम माटी के दीयों के साथ- साथ किसी का दिल तो नहीं जला रहे ? या किसी के मन पर हम अमावस्या बन कर उसे स्याह तो नहीं कर रहे ?
हमें ये भी सोचना होगा की कहीं हमारी स्वार्थ लोलुपता की चिंगारी किसी का घर तो नहीं जला रही ? हमारी ये कोशिश हो इस दिवाली पर की किसी के होठों पर हमारी वजह से मुस्कुराहट खिल जाए
हम अपनी खुशियों के खूब दिए जलाएं मगर उन दीयों से किसी के घर ना जले किसी के अरमान न जले किसी के दिल न जले इस बात का ख्याल रखें खुद जल कर रोशनी तो हम दें लेकिन खुद को ही राख ना कर लें दूसरों के घरों को अपनी रोशनी तो दें लेकिन खुद की भी खबर रखें कहीं ऐसा न हो की हम दिए ही जलाते रहे और और साथ में अपना घर भी जला बैठे और फिर अफ़सोस के साथ कहे की इतने मसरूफ रहे दिए हम जलाने में की घर ही जला बैठे हम दिवाली मनाने में -















2 comments:

आधारशिला ने कहा…
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3 नवंबर 2010 को 9:06 pm बजे
Mahendra Arya ने कहा…

हम "दिए "बने और अपनी रोशनी से दिलों के अंधेरों को परास्त करे दोस्तों .........bas yahi hai asli bhavna deepawali ki ........isi bhavna me bheegi meri ek choti si nayee rachna-

आ जिंदगी , चल बैठ कहीं गुफ्तगू करें
दिल को सुकून मिल सके ये जुस्तजू करें
मुश्किलों से भाग कर हम जायेंगे कहाँ
आ मुश्किलों का सामना हो रूबरू करें
देखें किसी को बांटते औरों के ग़म कभी
चल हम भी उनसे सीख कर वो हुबहू करें
दीपावली का दिन है , चिराग जलाएं
दिल में मुकम्मल रोशनी की आरजू करें

4 नवंबर 2010 को 9:41 am बजे

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