कब अपने लिए होगीं वफादार लकीरें ?------
दोस्तों , हमेशा मन और मनोभावों की बात करने वाले मनवा में आज मन की नहीं हाथों की बात करते हैं हाथों की और हाथों पर खिचीं आड़ी तिरछी लकीरों की . हम सभी के मन में अक्सर ये बात उठती है की आखिर इन हथेलियों पर ये रेखाएं क्यों होती हैं और क्या इनके बिना जीवन नहीं चला करते ?या ये लकीरें हमारा भाग्य बनाती हैं ? लेकिन भाग्य तो उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते
तो फिर इन खामोश लकीरों का क्या रहस्य है हम भी अक्सर इनके रहस्यों में उलझते रहते हैं लेकिन नहीं जान पाते इनकी भाषा
दोस्तों भाग्य के खेल तो ऊपर बहुत ऊपर आसमानों में रचे जाते हैं फिर धरती पर हमारे छोटे हाथों में ये छोटी -छोटी रेखाएं उन खेलों को कैसे खेलती हैं ? ये होती कौन हैं हमारे सुख दुःख तय करने वाली , ये चाहें तो किसी के हाथों में यश लिख दे , ये चाहे तो किसी को धन देदे किसी को राजा किसी को रंक बना दे किसी के हिस्सें में बसंत लिख दे तो किसी के भाग्य में पतझड़ , ये छोटी लकीरे बड़े -बड़े रिश्तों को तोड़ दे ये मामूली सी रेखाए कैदियों को रिहाई लिख दे ये आकाश में उड़ते परिंदों को पिंजरे में कैद कर दे, ये चमकते सूरज पर ग्रहण लगा दे ये सावन में आपको प्यासा रखे ये सागर को खारा कर दे ये मीरा को जोगन कर दे ये सीता से राम को अलग कर दे ये किसी को संजोग दे किसी के माथे पर वियोग लिख दे ये किसी को प्रेम से सराबोर कर दे तो किसी को इंतजार की आग में जला दे
दोस्तों , मुझे लगता है की ये लकीरे, खामोश नहीं होती इनकी भी अपनी भाषा है ये कहती है देखों हम ओरो की हथेलियों पर सब कुछ लुटा कर भी कितनी खामोश हैं ये कहती हैं की जब आप किसी से जुड़ते हैं तो हम रेखाएं भी आपस में जुड़ जाती हैं और इक दूसरे के सुख दुःख की भागीदार हो जाती हैं आप जब किसी से मन से जुड़ते हैं तो यक़ीनन हाथों की रेखाओं में बहुत पहले ही जुड़ गए होते हैं ये रेखाए ख़ामोशी से आपको वो सब देती जाती हैं जो जो हम अपने भाग्य से माँगते हैं हमें मन चाहा मिल जाये तो हम गर्व करते हैं और ना मिले तो सारा दोष इन रेखाओं को देते हैं की " रेखाओं का खेल है मुकद्दर रेखाओं से मात खा रहे हो " लेकिन मुझे ना जाने क्यों लगता है की ये रेखाओं के अर्थ गहरे हैं ये हमारी पिछली जनम की हैं दुआएं हैं हमारे वो खूबसूरत पल हैं ये वो सच्चे रिश्तें है जो आज भी हमारा साथ छोड़ना नहीं चाहते तो इस जनम में हाथों में लकीरे बन गए और अब इस जनम में हमारी हथेलियों पर अपना सबकुछ न्योछावर कर देना चाहते हैं बदले में कुछ नहीं मांगती और किसको फुर्सत है की इन खामोश लकीरों से पूछे की तुम खुद के लिए खुद के प्रति वफादार क्यों नहीं ? क्यों सारा जीवन सिर्फ दूसरों के लिए क्योंसब खुशियाँ दूसरों के लिए जिसको जो चाहिए वो सब देने को हाजिर किसी को धन किसी को यश किसी को प्रेम और भी न जाने क्या क्या ? क्या कभी खुद के बारें में सोचती हो अपनी ख़ामोशी को तोड़ क्या तुम कभी कुछ कहोगी " ओरों की हथेली पर लुटा देती हैं सबकुछ कब अपने लिए होगीं वफादार लकीरें ?------
3 comments:
mamta ji haathon ki lakiron par aapaki vyakhyaa bahut umda hai haathonki chnd lkiron ka sab khel hai ye takdeeron ka nice
चलो एक नया विषय पकड़ा आपने ! हाथों की लकीरें ! मेरा तो ये सोचना है की ये सिर्फ आदमी की परिकल्पना ही है . टेढ़ी मेढ़ी रेखाओं को कुछ भी अर्थ दे दिया . दुनियादारी के घटे नफे , सुख दुःख, जीवन मरण को कौन भला पढ़ सकता है . अगर हम ईश्वर के लिखे हुए हस्ताक्षरों को पढ़ लें तो हम भी उसके जैसे ही नहीं हो जायेंगे? हाँ एक बात जरूर मानता हूँ- पिछले जन्म के कर्मों का फल हर व्यक्ति को भोगना ही पड़ता है. पाप और पुण्य के खाते कभी आपस में जमा खर्च नहीं होते . दोनों का अलग अलग हिसाब है , इसलिए सुख और दुःख दोनों जीवन में आते रहते हैं .
ब्लॉग कि दुनिया में आने की बधाई. आपने लिखा भी बहुत खूब है....आपने अपने ब्लॉग का डिजायन भी बहुत अच्छा किया है.
एक टिप्पणी भेजें