कहने की बात है की बहारों से हम मिले --------------
पिछले दिनों किसी अवसर पर कई मित्रों ने बहुत सी शुभकामनाएं दी और कहा की , बहारें ही बहारें हों आपके जीवन में फूल ही फूल खिल उठें कभी कोई गम ना आये और न जाने क्या -क्या मैंने उनका शुक्रियां अदा किया और कहा की"" दुआ बहार की मांगीं तो इतने फूल खिले की कहीं जगह तक ना मिली मेरे आशियाने को "" खैर दोस्तों ये तो बात शुरू करने का महज बहाना था लेकिन कभी कभी जिन्दगी में हमारी सारी मन्नतें दुआएं कबूल हो जाती हैं और चारों और सिर्फ फूल ही फूल नजर आते हैं दूर तलक .हम हमेशा बहारों को ही आमंत्रित करते हैं और पतझड़ से बच कर निकलना चाहते हैं हम हमेशा फूलों में रहना चाहते हैं खुशबुओं में जीना चाहते है रंगों की बरसात हो ,यादों का सैलाब हो और खुशियों की सौगात हो
लेकिन लेकिन लेकिन ज़रा ठहरियें जिन्दगीं अब इतनी भी आसान नहीं है की हमने जो चाहा वो मिल ही जाए ज़रा ध्यान से देखिये तो सही इन नाजुक खुशबुदार फूलों के आसपास ये नुकीलें बदरंग सख्त कांटें क्या कर रहे हैं ? ये बिन बुलाएं मेहमान कहाँ से चले आये ? इन्हें तो कभी भी निमंत्रित नहीं किया था और ना ही कभी मन्दिर- मस्जिद में इनके लिए दुआएं की थी फिर ये कहाँ से चले आये ?
दोस्तों ,दरअसल ये खामोश कांटें दर्द के ग़मों के आह के प्रतिनिधि हैं ये फूलों की तरह आपको धोखा नहीं देते ये अपने रंग नहीं बदलते ये इतने नाजुक भी नहीं की जीवन की कठिन डगर पर आपका साथ छोड़ दे ये तो इतने सच्चे है की इक बार आपके दामन से चिपके तो फिर नहीं छूटते , जिन्दगी की उदास राहों पर ये आपके साथ आपके मन में टीस बन कर कसक बन कर सालते हैं आपको जिन्दा होने के अहसास से रूबरू करवाते हैं ये दर्द की धूप में फूलों की तरह कुम्हलातें नहीं है और ना ही वक्त की आंधी से इनकी खुशबूं ही उड़ती है माना इनका कोई रंग नहीं लेकिन इनका संग तो हैं और आप ही बताएं जीवन में क्या चाहिए रंग या संग ?कौन ज्यादा टिकाऊ है ?
दोस्तों ,तो असल बात ये है की जीवन में बहारों का साथ जरुर मागीयें लेकिन काँटों को भी अपनाइए और अन्तिम ----------- बात की किसी के जीवन में बहारों को देख कर रश्क करने से पहले इक बार उन काँटों की चुभन के बारें में भी सोचें जो फूलों के साथ मिले थे चुभे थे ,फूलों की नाजुक छुअनके पास बहुत पास काँटों के नुकीले तीर कैसे अंतस को भेद गए थे कभी जरुर सोचना
सारी दुनिया आपकी जीवन की क्यारी में खिलते गुलाब देख कर खुश होती है आप काँटों से आहत होकर अपने बहते लहू को देखते हैं इस दर्द के दुःख के लहू से ही तो हमारे गुलाबों ने गुलमोहरों ने लाल रंग चुराया है ये गुलाब यक़ीनन कभी भी इतने सुर्ख नहीं होते की जब तक इनमे दिलका लहू नहीं घुलता और जब चारों और जीवन में फूल खिलते दिख रहे हों बहार आती दिख रही हो तो मन में इक टीस सी उठ ही जाती है कभी कभी मन कह उठता है कहने की बात है की बहारों से हम मिले फूलों के आसपास पास ही काँटों के गम मिले --
6 comments:
... bahut sundar !!!
mamta ji ,aapake lekhan ki ik khubi ye hai ki aap hamesha man ke konon ko uthaati hain jahaan har kisi ki najar jaati hi nahi vahaa se bhi aap dard or pyaar khoj laati hain kahane ki bat hai ki baharon se ham mile --kyaa baat hai bahut khub
बहुत संवेनशील लिखती हो तुम ...इस तरह से सोचना कभी कभी होता है पर हुबहू उसे लिख देना....बहुत बढ़िया लिखा है तुमने वाकई ......
ममता जी, आज पहली बार आपकी पूरी पोस्ट पढने का समय निकाल पाया हूँ. आज तक लगता था की एक पत्रकार के लिए दुःख भरी पोस्ट पढना सहज नहीं होगा. लेकिन इस पोस्ट में फूलों के साथ कांटो की जो सच्चाई आपने लिखी है वो वाकई काबिले तारीफ है. बहुत सुन्दर और अच्छा लिखा है. दिल से लिखी पोस्ट पर मेरी बधाई स्वीकार करें.
mamta ji aap ki kalam me aaj bhi wahi dam he jo prarmbh me tha....gajab aap ki tarif ke sabd nahi lekin kamal he...nice
ममता जी, आज पहली बार आपकी पूरी पोस्ट पढने का समय निकाल पाया हूँ! लिखा बहुत सुन्दर है,लिखा बहुत संवेनशील है
माँ ! बाढ़ कब आएगी ?
ढाँचा जैसा जर्जर एक बालक
पुछ बैठा
वह प्रश्न
जो प्रश्न नहीं
...अभिशाप है
क्योंकि बाढ़ लाती है
बीमारी, बेघरी, बेरोज़गारी
और
दान किया लंगर
भर पेट भात और दाल
जिससे
उस बालक ने भरा अपना पेट
जीवन मे तीसरी बार
यदि मैं होता
चाहे परिपक़्व हीं सही
उस बालक की जगह
मेरा भी यहीं प्रश्न होता
माँ से नहीं
प्रकृति से
बाढ़ कब आएगी ?
अपने साथ
दाल-भात कब लाएगी ?
क्योकि मुझे भी
अहसास है
उस भूख का !
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