दिल कि मिट्टी है अभी तक नम ---------

सोमवार, मार्च 14 By मनवा , In

शुक्रवार  का दिन जापान  पर कहर बनकर टूटा , सदी के सबसे तीव्र  भूकंप  के कारण आई सुनामी लहरों ने जापान को पूरी तरह से तबाह कर दिया इस महाविनाश ने पूरी दुनिया को बता दिया कि    इस ज्ञात  जीवन के उस पार कुछ अज्ञात  भी है   जो  हमारी सोच हमारी समझ से परे है सारी तकनीके ,बरसों से चल रहे  सारे शोध , सारी भविष्यवाणियाँ सब धरी कि धरी रह गयी उस अज्ञात शक्ति  के रौद्र  रूप से कोई नहीं बच सकता आज लक्ष्य  जापान है तो कल हम होगें
प्रकति  का नियम  है जो हम इस दुनिया को देते  है  वही दोगुना  होकर हमें वापस  मिलता  है हमने जो कुदरत के साथ किया उसका  प्रतिफल तो  मिलना ही था  कभी कभी सोचती  हूँ  बार -बार  जापान ही  क्यों ? हर बार धरती के इक टुकडे  पर ही कहर  क्यों ? लेकिन दोस्तों  बार  बार उजड़ने वाली  इस बस्ती  के वाशिंदे तबाही  के आदि हैं  सारी दुनियां के वैज्ञानिक  फिर से सुनामी  पर शोध  करने में जुट  जायेगे  लेकिन ये टूटे दिल  फिर से अपने अदम्य साहस  और ऊर्जा  के साथ   खड़े हो  उठगे  अपने  आसूं पोंछ  वे फिर से बस्ती बसायेगे  फूल खिलायेगे  है ना ?
दोस्तों , हमारे  मन कि बस्ती में जब सुख दुःख का संतुलन  बिगड़ जाता है  और दुखों के पहाड़  दर्द के ग्लेश्यिअर पिघलने  लगते हैं   तब दिल कि धरती पर भी कुछ  इसी तीब्रता  के भूकंप  के झटके महसूस  किये जाते हैं आखों से अविरल बहने वाले आसूं सुनामी में तब्दील  हो  उठते  हैं , है ना ? दर्द के सागर से उठती ये सुनामी  माना इंसानों क़ी   बस्ती नहीं उजाडती और ना घरोदों  को तोड़ती है  लेकिन दोस्तों ये दर्द क़ी सुनामी  दिलों क़ी बस्ती जरुर उजाडती है और सपनों के सुन्दर कोमल घरोंदों  को तबाह  कर जाती है
लेकिन , कमाल  है दोस्तों  ये दिल फिर से नयी बस्ती बसाता  है  फूल खिलाता  है प्रेम फेलाता  है  गोया क़ी  फलक को जिद हैं जहाँ  बिजलियाँ  गिराने क़ी हमें भी जिद है वहीँ  आशियाँ बनाने  क़ी  है ना ? दोस्तों  धरती के किसी टुकडे क़ी तबाही हो या   दिल कि बस्ती  क़ी बर्बादी  दर्द तो आखिर  दर्द ही है अपनों  को खोने का दर्द , उनसे विछ्ड़ने क़ी वेदना कभी शब्दों  में व्यक्त  नहीं क़ी जा  सकती  और ना इक दिन  दुःख मना  कर  भुलाई  जा सकती है  ये पल पल  दुःख  देने वाली  पीड़ा  है 
सुनामी  कि तबाही हो या  हिरोशिमा  नागासाकी पर  हुए  आणविक  हमले का दुःख  जापान   कि धरती ने हमेशा  दुःख सहे हैं  पर हमेशा  जापान  ही क्यों  ? 
इस दुःख के  समय  प्रक्रति से यही  विनती  है कि अब  और कोई  नया   दुःख  नयी  विपत्ति  इस धरती  के  हिस्से  पर ना आये इस उजड़ी बस्ती के बाशिंदों को  फिर से बसने का,  संवरने का संभलने का अवसर मिले  , नियति  तुम अपनी  चाल  से जरुर  चलो  लेकिन  ज़रा  देख लेना  कि  ये उजड़ी  बस्ती  अभी दर्द दुःख  वेदना  और पीड़ा  से नम है  अभी आखों  में आसूं  हैं  जो दिल कि  मिट्टी  को  नम बनाए  हुए है  तुम ज़रा आहिस्ता आहिस्ता  चलना  कि दिल कि मिट्टी  है अभी तक नम  ज़रा आहिस्ता चल

7 comments:

Kanpurpatrika ने कहा…

BAHUT HI AACCHA LIKHA HAI AAPNEY

14 मार्च 2011 को 1:41 pm बजे
Lalit Kumar ने कहा…

मानव जीवन एक क्षण में दिशा बदल सकता है... फिर भी न जाने क्यूँ लोग प्रेम व सदभाव के साथ नहीं रह पाते!... जितने पल तक प्रकृति हमारी सांसो को चलने दे रही है -हमें उन पलों को भरपूर जीना चाहिए; एक-दूसरे के लिए जीना चाहिए।

14 मार्च 2011 को 1:58 pm बजे
sourabh parashar ने कहा…

बहोत गहराई हे ममता जी आप की लेखनी में ,
ममता जी, आपके लेख पड़ने वाले को २ मिनिट रूककर सोचने पर मजबूर कर देते हे!
सच में, जापान में लोगो को होने वाली वेदना को शब्दों में वयक्त करना बेमानी हे !
"वासुदेव कुटुम्बकम" की भावना को साथ ले कर,मेरी भी यही प्रार्थना हे,
की जापान में हुए प्रलय के बाद भगवान उन सभी इंसानों को वापस सँभालने की शक्ति प्रदान करे जिन्होंने अपना सब कुछ सुनामी में खो दिया.

14 मार्च 2011 को 7:23 pm बजे
सूर्य गोयल ने कहा…

ममता जी गजब कर देती है आप अक्सर. मैंने जब गुफ्तगू शुरू की थी तो सोचा था की ताजा घटनाक्रम पर मै गुफ्तगू किया करूँगा लेकिन दो बार से देख रहा हूँ की मै गुफ्तगू करने की सोचता हूँ और आपकी ब्लॉग पर पहले ही आप अपने दिल का हाल ब्यान कर देती है. लगता है मनवा एक हो रहा है. इस स्टिक लेख के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें. जब आप मेरी टिपण्णी पढ़ रही होगी शायद उस समय मै भी जापान में आये भूकंप पर गुफ्तगू कर रहा होऊंगा.

15 मार्च 2011 को 11:59 am बजे
मनवा ने कहा…

आप सभी स्नेही मित्रों का आभार ,

15 मार्च 2011 को 3:16 pm बजे
Nina Sinha ने कहा…

Excellent piece of work, Mamta! You always surprise us with your sensitivity. Your understanding of human woes is par excellence. दर्द आंसू और आपका साथ काफी गहरा सा लगता है . आपके हर लेख में दर्द को आपने बखूबी romanticise किया है और उसमे सफल भी रही हैं...लोगो के दिलों को छुआ है आपने . जापान के लोगों के साथ अपनी संवेदना को बांटने की आपकी ये चाहत काफी सराहनीय है. आपकी आशा और प्रार्थना जापान के लोगों तक जरूर पहुंचे, ऐसे हमारी भी कामना है. कहते है न, ऐसे समय में आशा और प्रार्थना ही हमें आगे बढने का साहस देती है और उसकी डोर चाहे कितनी ही कमजोर क्यों न हो, पकड़ कर रखने में ही जीने का अर्थ है. Who thought something like this will happen in Japan or matter of fact anywhere in the world. But things which we do not hope to happen most frequently happen than things which we do hope to happen. I would like to end my comment with this statement of Martin Luther King Jr., "We must accept finite disappointment, but never lose infinite hope."

15 मार्च 2011 को 10:47 pm बजे
मनवा ने कहा…

प्रिय , नीना शुक्रियां , ब्लॉग तक आने का नीना हम सभी इस पूरी कायनात के हिस्से हैं धरती के किसी भी टुकड़े का दर्द या किसी भी व्यक्ति की वेदना से हम खुद को अलग नहीं कर सकते , महसूस करों यदि नीना तो हर पराया दर्द अपना सा लगता है और जिन लोगों की महसूसने की शक्ति समाप्त हो गयी हो मेरी समझ से वो जीवित ही नहीं है यार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार -----------------------यही तो हम भारतीयों की पहचान है रही बात दर्द और आसुओं से मेरे रिश्ते की -तो नीना आखों से आसुओं के मरासिम पुराने हैं चलो ये शेर सुनो -आखों में जल रहा है क्यों ? बुझता नहीं धुंआ उठता तो घटा सा है बुझता नहीं धुंआ आखों के पोछने से लगा आंच का पता यूँ चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुंआ आखों से आसुओं से मरासिम { रिश्ते } पुराने हैं मेहमान घर में आये तो चुभता नहीं धुंआ इक बार और शुक्रियां इन आसुओं पर भी मेरी इक पोस्ट है हमने पलको पे जुगनू सजा रखे है नाम से ---शेष शुभ

16 मार्च 2011 को 8:23 am बजे

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