कितने अजीब हैं ये रिश्ते यहाँ के ---------------

गुरुवार, अप्रैल 7 By ममता व्यास

दोस्तों , हमेशा मन , मन की बात और रिश्तों की बातें करने वाले " मनवा"   में आज  फेस बुकियां  रिश्तों  की बात  हो जाए इस रंगीन  मायावी  दुनिया के बारे में लिखने का बहुत दिनों से सोच रही थी  और मेरी कलम  तो उस दिन भी कांपी  थी.  जब क्रिसमस के दिन लन्दन  की 42  वर्षीया सिमोन वैक ने आत्महत्या  से पहले   अपने 1048     दोस्तों  से फेस बुक  की वाल  पर ये पंक्तियाँ  शेयर  की , की  मैंने सारी  गोलियाँ खा ली है  अलविदा ----
कमाल ये की सिमोन के 1048  दोस्तों  में से किसी ने भी उसे गंभीरता  से नहीं लिया उलटा  उसे ही झूठी बताया 
दिल को हिला देने वाली  इस घटना ने तो उसी दिन ही  वर्चुअल दुनिया के  खोखलेपन  को उजागर कर दिया  था   रही सही  कसर नित नए बढ़ते तलाक के मामले और बिगड़ते रिश्तों  से उपजी निराशा  ने  पूरी कर दी है
लेकिन फिर भी लोग इस दुनिया में खो जाना चाहते हैं   चलिए  चलते  है इस मायावी दुनिया  में , इस दुनिया में इक नशा  है यहाँ  कोई बंदिशें  नहीं कोई शर्तें  नहीं  यहाँ  लोग  खुद  को चाहेजैसे प्रस्तुत कर सकते है अपनी कमजोरियों को खूब छिपाया जाता है- पुरुष  है तो स्त्री बन कर स्त्री है तो पुरुष बनकर, उमरदराज हैं  तो  युवा  बनकर,   खुद को  सिंगल बताकर आप ज्यादा लोगो का साथ पा  सकते है
यानि साहब  सब कुछ चलता है  झूठी फोटो झूठी प्रोफाइल  झूठी बातें  झूठे  वादे  खुद के अवगुणों  को छुपा कर गुणों का बखान और भी ना जाने क्या क्या है यहाँ.. वास्तविक दुनिया के खुरदरेपन  में आपके साथ  कोई हो ना हो  लेकिन इस मायावी संसार में आपके पास हर पल हर  क्षण  कोई ना कोई होगा ही  वो भी बस माउस पर हाथों की उँगलियों  की इक हल्की सी छुअन  मात्र   ही आपको किसी से जोड़ देती है
और बस लोग   होजाते है बाहरी दुनिया से बेखबर
सदियाँ  लगती थी जहाँ दो बोल कहने में {प्यार के } वही अब इक क्लिक पर प्यार का इजहार हो जाता है प्यार दोस्ती  रिश्तों के मायने ही बदल गए  इक पल में  रिश्ते बनाते हैं दूजे पल  बिखर भी जाते है  कमाल ये  की किसी को इसका मलाल  भी नहीं इक साथी रूठ गया  तो बहुत सी हरी बत्तियां  आपको बुला रही  होती है खूब धोखे  खूब भ्रम का खेल  है ये
सवाल  ये नहीं की ये कितने सच्चे और कितने  झूठे है ? सवाल ये की आखिर  लोग  क्या तलाशते है इन रिश्तों में ? सच्चा  प्यार ?सच्ची दोस्ती ?  अपनापन ? या अकेलेपन   को दूर करने  के लिए सिर्फ  टाइम पास ? या खुद की तलाश  है ये ?
ऐसा नहीं है  की यहाँ सिर्फ  धोखे बाजियाँ ही है अच्छे रिश्ते भी  बनते  है पर उनका  प्रतिशत  बहुत कम है वरना भावनाओं का जितना शोषण  इन सोशल साइट्स  पर होरहा है इतना कभी नहीं हुआ  खूब मीठी  मीठी  बातें ,  झूठी तारीफे खूब  बहाने बनाए जाते है इक साथी से बात करते समय कोई अन्य बात करना  चाहे और आप ना चाहे तो बड़े खूबसूरत  बहाने बनाए जाते है  मीटिंग   में हैं  , फोन आ गया  है माफ़ करना मैंने  आपको देखा नहीं  ओ हो  आप थे  क्या ऑन लाइन   मेरा ध्यान नहीं गया  आदि आदि
सब जानते है इस दुनिया का सच  फिर भी जुड़े है
इनमे  वही लोग  ज्यादा है जिन्हें  अपनी रोजी रोटी की फिकर नहीं अपनी बड़ी सी गाडी  में चलते है बड़े से आफिस में  बैठते है  और अपने कंप्यूटर  से चिपक कर दोस्तों की लम्बी लिस्ट  देख कर सामाजिक होने का दम भरते हैं
इन्हें  किसी के दर्द और दुःख से कोई सरोकार नहीं
इक क्लिक से शुरू हुआ रिश्ता  इक पल में दूसरी क्लिक  से ख़तम भी  किया जा सकता है इस पल आपके सामने जीने मरने का दावा  करने वाला प्यार  की कसमे खाने वाला  आपको अगली बार  कब मिलेगा  आप ही नहीं जानते  आप समझते है आप का सच्चा साथीबस आपका  हैआप नहीं जानते की  वो अपनी फेक आईडी  बना  कर  टीना  मीना  डीका  को भी  धोखे दे रहा  है  या दे रही है सब चलता  है साहब इस दुनिया में -
आखरी बात  , कुछ पल के रोमांच  और  वास्तविकता  से भाग कर इस  मायावी  दुनिया में गोते लगाने से पहले  इक बार  जरुर  सोच ले की कहीं आपका  टाइम पास, आपका झूठ  , आपकी  होशियारी  किसी की भावनाओं को आह़त  ना कर दे  . रिश्ते चाहे जो भी बनाए जाये ऑन लाइन  या ऑफ लाइन -- मिट्टी तो  दिलकी लगती है और आसुओं के  पानी  के बिना  कोई मूरत नहीं बनती भाव के संवेदना के गारे सेही  कोई रिश्ता जन्म लेता  है  उसे माउस की इक छुअन  से बनाने की कोशिश  ना करे और ना इक छुअन से मिटाने की    इस रंगीन  दुनिया  में हजारों  दोस्तों की भीड़ में भी लोग अकेले क्यों है ?  कितने अजीब  हैं ये रिश्ते   यहाँ--- के  इक पल मिलते हैं साथ साथ  चलते हैं  जब मोड़  आया तो बच के निकलते हैं  

7 comments:

vivekvardhan shrivaastav indore ने कहा…

bahut hi sundar post mamta is baar is naye vishy par bahut hi badhiyaa lekh hai tumhaara .vishy churaane me tumhaaraa javaav nahi yun hi likhati raho

7 अप्रैल 2011 को 8:27 pm बजे
nina sinha ने कहा…

very nice topic..even I was contemplating on this subject for long - relevancy of facebook. Your analysis is superb...I also feel the same..I don't know if this is the feeling of our generation only. विरोधाभास यही है की इतनी आबादी के बाद भी हम सब अकेले हैं.

8 अप्रैल 2011 को 6:17 am बजे
Mahendra Arya ने कहा…

बहुत बढ़िया लिखा . एक अच्छा नया नाम भी दिया आपने - फेसबुकिया रिश्ते ! सही है . फेसबुक पर रिश्ते बनाये जाते हैं लेकिन निभाए नहीं . मैं समझता हूँ की फेसबुकिया रिश्ता उन तमाम रिश्तों से अलग है जिनमे किसी से कुछ पाने की अपेक्षा होती है . रेलगाड़ी में साथ बैठे यात्री से जो जुडाव होता है वैसा ही जुडाव है फेसबुक का . वास्तव में फेसबुक का नाम ही गलत है - यहाँ फेस कहाँ होता है ? यहाँ तो होता है कोई अज्ञात - उसकी बातें कितनी सही है , ये निर्भर करता है उसकी ईमानदारी पर - लेकिन वो भी फेसबुक पर कहाँ दिखती है ! फिर भी जीवन का दृष्टिकोण पोजिटिव रख कर ही हम जिन्दा रह सकते हैं , वर्ना बुरा तो दुनिया का हर आदमी है, जो अजनबी है . कुछ पंक्तियाँ इसी सन्दर्भ में -

गैर बेगानों में हमनशीन ढूंढता हूँ ,
मैं अपने पावों के लिए जमीन ढूंढता हूँ
हर शख्श दगाबाज है किस पर करें यकीं
हर शख्श में जरा सा यकीन ढूंढता हूँ !

8 अप्रैल 2011 को 8:45 am बजे
मंजुला ने कहा…

तुम्हारी पोस्ट दिल और दिमाग दोनों को हिला गयी .... सच मे रुक कर सोचने की जरुरत है . बच्चो को भी इस भावनात्मक अत्याचार से कैसे बचाया जय ये भी सोचने की जरुरत है ......

8 अप्रैल 2011 को 11:19 am बजे
संजीव शर्मा/Sanjeev Sharma ने कहा…

वाह ममता...बहुत बढ़िया ,दिल को छू लेने वाली बात और इन माध्यमों की असलियत बताती ...उम्दा लेखन के लिए बधाई..

8 अप्रैल 2011 को 2:43 pm बजे
mamta ने कहा…

विवेक , नीना जी महेंद्र भैया मंजुला और संजीव आप सभी का तहे दिल से शुक्रियां

8 अप्रैल 2011 को 4:59 pm बजे
Ideal thinker ने कहा…

Mamta bahut hi umda topics pe likhthi ho tum jo hamko sochne per majboor kar deta hai!!

30 अप्रैल 2012 को 5:39 am बजे

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