रोक लो , रूठ कर उनको जाने ना दो -------------
पिछले दिनों , नोएडा {उत्तर प्रदेश } की दो बहनों अनुराधा और सोनाली को पुलिस वालों ने खुद उनके घर से मुक्त कराया .हैरान हो दोस्तों ? भला अपने घर में भी कोई कैसे कैद होता है लेकिन हाँ उन दोनीं अभागी बहनों को मरने जैसी हालत में घर से निकाला गया जिसमे से कल इक बहन की मौत हो चुकी है और दूसरी गंभीर हालत में है
दोस्तों ,उपरी तौर पर तो यही कहते पाए गए लोग की दोनों पागल थी और किसे फुर्सत है किसीके पागलपन में हिस्सेदार होने की, सच है हम समझदारों की दुनिया में किसी पागल या रोगी की क्या अहमियत ? दोनों बहने अवसाद की शिकार थी और आठ महीनों से दुनिया से बेखबर थी उस घर में जहां वे कभी चहकती महकती और फुदकती थीं जिसे उनके पिता लेफ्टिनेंट कर्नल ने बनवाया था पांच लोगो के हंसते खेलते परिवार की ये बेटियाँ , इक बहादुर पिता की बेटियाँ आखिर इक ऐसी बीमारी से ग्रस्त हो गयी जिसे डाक्टर रोयर्ड पैरानोइड कह रहे है जिसमे रोगी हमेशा भयभीत और असुरक्षित महसूस करता है
दोस्तों ,महिला आयोग जो भी कहे प्रशासनिक जाँच कुछ भी कहे और डाक्टर्स की रिपोर्ट कुछ भी कहे मुझे तो लगता है हमने हमारे समाज ने ही उन्हें मारा है अवसाद या कोई भी मानसिक बीमारी की वजह क्या है ? और क्या इलाज है इनका ?हर मानसिक बीमारी की वजह तनाव और डर ही होता है और हर बीमारी का इलाज अपना पन और स्नेह ही होता है
माता - पिता की मौत और भाई की बेरुखी से दुखी बहनों ने खुद को अपने घर में ही कैद कर लिया -- सोचती हूँ ,जो पिता खुद सेना में थे उन्होंने बेटियों को इस बेरहम दुनिया से लड़ने का पाठ क्यों नहीं पढ़ाया ? जिस भाई की कलाई पर बरसों बरस जिन बहनों ने राखी का पवित्र धागा बांधा और भाई ने सर पर हाथ रख कर जिंदगी भर की सुरक्षा का वचन दिया उस भाई की बहने आज इतनी भयभीत और असुरक्षित कैसे हो गयी ?
अनुराधा ओर सोनाली जब स्वस्थ थी और नौकरी करती थी तब तो उनके दोस्त जरुर उनके साथ होगें ,उन्होंने भी इतने सालों में उनकी कोई खबर नहीं ली ? क्या स्वस्थ सुन्दर और हंसते व्यक्ति से ही प्रेम या दोस्ती निभाई जाती है जो अस्वस्थ है रोगी है या हमारी जरुरत का नहीं तो हम उसे भुला दे ?
आस पड़ोस वाले भी इतने संवेदन शून्य की अपने अपने घरों में चैन से सोते रहे और पास की दीवारों से सिसकियाँ आती रही , हम क्रिकेट के जूनून में रातों को सडकों पर सारी रात नाच सकतें हैं , भ्रष्टाचार के विरोध में मोमबत्तियां जलाने का ढोंग कर सकते हैं हम इतने समझदार हैंकि क्रिकेट को धर्म और खिलाडियों को भगवान मानते हैं हम खेल में हारने पर दुखी होकर और जीतने पर खुश होकर अपनी जान दे भी सकते है और ले भी सकते है फेस बुक पर घंटों किसी मुद्दें पर लम्बी बहस कर सकते हैं लेकिन लेकिन लेकिन किसी अपने का दर्द या पराये का दुःख हमें विचलित नहीं करता
दरअसल हमने पत्थरों के बड़े बड़े मकानों की दुनियां बसाई है जिसके बड़े बड़े दरवाजों के अन्दर हम दुनिया के दुःख दर्द से बेखबर हैं हमें दीवार के उसपार से सिसकियों की आवाज सुनाई नहीं देती , हम रास्तों पर भी चलते है तो कारों के शीशे चढ़ा कर ताकि आसपास की गंदगी , सड़ांध से दर्द से दुःख से हम खुद को बचा सके ,हम अपने आसपास हमेशा सुन्दर , सुहाना ही देखना चाहते हैं
जब सभी को सुख , ख़ुशी और खूबसूरती चाहिए तो दर्द दुःख और विष कौन पीये ? कौन पोंछें उन जख्मों से रिसते मवादों को ? कौन प्यार करे उनसे जो प्यार के लायक नहीं , दोस्तों जो प्यार के लायक हैं और जिन्हें प्यार की जरुरत नहीं सभी उनसे प्यार क्यों करते हैं ? जो सचमुच प्रेम के हक़दार हैं और प्रेम के लायक भी नहीं हमें उनसे भी प्यार करना होगा तभी प्रेम सार्थक होगा , दोस्ती सफल होगी , उन टूटे दिलों की मरम्मत कौन करेगा ? उजड़ी बस्तियों को कौन बसाएगा ? उन रिश्तों की खोज खबर भी लेनी होगी जो हमने बना तो लिए लेकिन जरुरत न होने पर उन्हें खूंटी पर टांग दिया , पुराने कोट की तरह ---
क्यों कर कोई अनुराधा और सोनाली पल पल मौत को गले लगाती रही ? क्या चाह होगी उनकी ? किसी से , सिर्फ प्यार अपनापन और स्नेह ही ना -- दो बोल भी हम किसी को न दे सके तो हमसे बड़ा कंगाल कौन होगा ?
किसी की रो रो कर सूज गयी आखों में प्यार की चमक क्यों नहीं भर देते हम ? किसी के दर्द से सूखे होठों पर इक प्यारी मुस्कान क्यों नहीं धर देते हम ? क्यों कोई इतनी खूबसूरत दुनिया से रूठ कर चला जाये और हम उसे पागल अवसादी रोगी कह कर पल्ला झाड़ ले , क्यों कोई बिन प्यार के बिन स्नेह के रीता -रीता सा चला जाये चलिए किसी के सूनेपन को अपनेपन से बदल ले ,और दर्द को ख़ुशी से और रोक ले , रूठ कर जाने वालों को जो ये चले गए तो फिर नहीं आयेगे लौट कर ये रूठे तो धरती से प्यार विश्वास और अपनापन भी रूठ जाएगा तो .- रोक लो , रूठ कर उनको जाने ना दो --
6 comments:
bahut hi sundar dard bhari post kai saval jo jayaj hain aapaki post padh kar shayd wo pitaa pati or bhaai sochane par majbur ho jaye jinaki patniyan , betiya or bahane chupchap khamoshi se sab sahati hain
bahut accha likha hai didi
भावनात्मक परन्तु यथार्थ परक विश्लेषण ....
मानवीय संवेदना को समझने की आपकी विलक्षणता सराह्निये है. ये तो आपके हर पोस्ट से ज़ाहिर हो जाता है. इस विरोधाभास को समझना चाहिए हम सबको, की क्यों हम लोगों के दुखों को, अकेलेपन को , भावनाओं को समझने की कोशिश नहीं करते . हमें तो बस अपनी ही पड़ी रहती है . और जब कुछ अनहोनी हो जाती है तो उसे नियति मान कर स्वीकार कर लेते हैं .
आपने हमेशा इंसान को भावनात्मक स्तर पर समझने, समझाने और जोड़ने की कोशिश की है. आशा करती हूँ की इसे पढने के बाद लोग इसे एक लेख समझ कर भूल न जाएँ बल्कि कुछ देर ठहरें और सोचें की उनके आस-पास सब कुछ ठीक तो चल रहा है . किसी को उनकी ज़रुरत तो नहीं . "वसुधैव कुटुम्बकम्" सिर्फ शास्त्र मैं लिखा एक श्लोक भर रह गया है. एक नए विषय पर अपने सोच को सामने रखने के लिए फिर से आपको बधाई.
सचमुच ममता , आपने एक बहुत बड़ा प्रश्न खड़ा किया है समाज के सामने ! हम सब को देखना चाहिए कि कहीं हमारे ही पड़ोस में कोई अवसाद का मारा नजरबन्द तो नहीं ! आवश्यकता है , मानवीय संवेदनशीलता की !
महानगरों में व्यक्ति से व्यक्ति की दूरी बहुत अधिक बढ़ गई है... यह घटना इसी का परिणाम है। अब तो किसी को ये भी नहीं पता होता कि पड़ोस में रह कौन रहा है! उसका दुख दर्द देखना व समझना तो बहुत दूर की बात है... यह स्थिति मानवता के लिए बेहद खतरनाक है।
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