"हंगामा क्यों है बरपा , थोड़ी सी जो "जी " ली है

मंगलवार, मई 24 By मनवा , In

दोस्तों , आज  कुछ  लिखने से पहले  इक समाचार   आपको  सुना  रही हूँ |पंजाब राज्य महिला आयोग ने महिलाओं को सलाह देने के लिए,
समझाइश देने के लिए इक परचा प्रकाशित करवाया है|जिसमे कहा गया है कि, महिलायें फोन पर बातें ना करें | इससे पुरुषों को ईर्ष्या  हो सकती है| इससे तलाक में बढोतरी हो रही है |महिलाओं को चाहिए कि मोबाइल पर बात ना करे इसकेबजाय   वो अच्छी पत्नी बनकर घरेलूं काम पर ध्यान दें |
 

सबसे पहले तो गंभीरता  से सोचने वाली बात  ये है कि आखिर आयोग को ऐसा परचा जारी क्यों करना  पड़ा ?  क्या सच में पुरुष महिलाओं के मोबाइल फोन पर बात करने से ईर्ष्या करते है ? इसका जबाव   है  हाँ | मैंने अपने आसपास ऐसे बहुत  से पुरुषों को देखा है जो ये कतई बर्दाश्त नहीं कर पाते कि , उनकी पत्नी या प्रेमिका उनके अलावा  किसी और पुरुष  से बात करे | बहुत से पतियों ने अपनी बीबियों के मोबाईल तोड़ दिए या फेंक दिए या चुरा लिए | इतना ही नहीं अपनी साथी के फोन डिटेल्स देखना  और मेसेज  पढ़ना{ वो भी अधिकार से} आम बात है |  पिछले  दिनों  बेंगलौर के इक साफ्टवेयर इंजिनियर ने अपनी इंजिनियर पत्नी  को सिर्फ इसलिए मार डाला क्योकिं  उसे शक था कि वो किसी और से प्यार करने लगी है { यहाँ गौर करने वाली बात ये है कि उन दोनों ने कुछ दिनों पहले ही प्रेम विवाह  किया था }
अब बात राज्य महिला आयोग के हास्यास्पद बयान पर --मैं आयोग से पूछना  चाहती हूँ कि पुरुष कब से ईर्ष्यालु  होने लगे | ये तो महिलाओं का विशेष गुण था ना ? इक कमजोर,  अबला , नारी का गुण  | क्या इतने कमजोर हो गए हमारे विशवास कि इक बेजान वस्तु के कारण  टूटने लगे | दूसरी बात यदि  फोन कि वजह से तलाक हो रहे है तो प्रतिबन्ध सिर्फ महिलाओं पर ही क्यों ? पुरुषों को भी मनाही होनी चाहिए कि वो भी मोबाईल ना रखे |
जो आज मोबाइल कि वजह से शक कर रहे है | कल वो किसी और वजह से शक करेगे शायद इन्टरनेट कि वजह से |हो सकता है महिला आयोग का अगला फरमान हो कि महिलाओं को नेट का उपयोग नहीं करना चाहिए | फिर ----अन्तिम फरमान कि महिलाओं को तो साँस भी नहीं लेना चाहिए  | उन्हें जिन्दगी जीनी  ही नहीं चहिये  है ना ?
 मेरी इक दोस्त ने बताया कि उसके मंगेतर ने उसे सगाई पर मोबाइल गिफ्ट किया था | जिससे वो दिन भर बाते करती थी | शादी होते ही मोबाईल वापस ले लिया कि अब क्या जरुरत तुम्हे मेरे आलावा किसी से बात करने कि--------वाह रे मेरे भारतीय पुरुष तुम्हे सलाम | क्या कोई महिला या लड़की कि जिन्दगी "तेरे नाम से शुरू तेरे नाम पे ख़तम हो जाती है " उसकी अपनी कोई जिन्दगी नहीं | उसके अपने विचार , उसके अपने मत नहीं हो सकते ?
उसके अपने मित्र या रिश्ते नाते नहीं हो सकते ? जब सदियों से भारतीय स्त्री अपने पति पर आखं मूंद कर विश्वास करती आई है | वो चाहे देश में हो या परदेश में उसे याद करती आई है | पुरुष कि वेवफाई , उसकी लम्पटता , उसकी मौजमस्ती और उसके अन्याय के दर्द को अपने लाल सिंदूर में और बड़ी सी बिंदियाँ में छिपाती आई है | तो पुरुष उस पर भरोसा  क्यों नहीं करता ?
आज , यदि वो अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के साथ साथ कुछ वक्त अपने  लिए निकाल लेती है | कुछ देर वो खुश हो लेती है | कुछ पल वो हंस लेती है तो इतना हंगामा क्यों है भाई ? आज क्यों पुरुष का विश्वास अपनी जीवन संगिनी पर से उठ गया ? सिर्फ इसलिए कि वो अब घर से बहार जाकर काम करने लगी है | वो जागरूक हो गयी है | सदियों तक खामोशी से सब सुनते सुनते उसने अब सवाल पूछना शुरू कर दिए| इसलिए विश्वास टूट गए ? कितने कमजोर है हमारे विशवास | इन खोखले विश्वासों को कब तक कोई भारतीय महिला अपने सुहाग चिन्हों में छुपा कर ढ़ोती रहेगी | उसे भी जीने का हक़ है | उस अपने पति बच्चों मायके ससुराल के लोगो से ही नहीं खुद से भी मोहब्बत करने का हक़ है | उसे भी साँस लेने का हक़ है | उसके जीने पर ,उसके जिन्दगी "जी " लेने पर इतना  हंगामा क्यों ? आखरी बात महिला आयोग से --कि , विवाह मोबाइल से नहीं टूटते और ना सिर्फ महिलाये ही दोषी है विवाह टूटने क़ी| विवाह को बचाना  है तो पहले विश्वास को टूटने से बचाना होगा | दिलों को चटकने से बचाना होगा | कोई जीता है ख़ुशी से तो उसे जीने दिया जाये ना क़ी हंगामा किया जाये | क्या हुआ कोई थोड़ी सी जी लेना चाहता जिन्दगी को |गुलाम अली कि गजल के  शेर को मैंने थोड़ा  बदल दिया है मैं कहती हूँ  |
 
"हंगामा क्यों है बरपा , थोड़ी सी जो "जी " ली है
डाका तो नहीं डाला , चोरी तो नहीं क़ी है "

6 comments:

neha ने कहा…

kya baat hai mamta ji wha - wha-

24 मई 2011 को 7:46 pm बजे
रोशन जसवाल ने कहा…

नमस्‍कार। एक अच्‍छे विषय पर एक अच्‍छा लेख । बधाई

24 मई 2011 को 11:07 pm बजे
सूर्य गोयल ने कहा…

ममता जी आज तक मैंने आपकी हर पोस्ट पढ़ी और समझी है लेकिन ताजा हालात पर आपकी यह पहली पोस्ट बहुत ही विचारनीय है. एक अच्छी पोस्ट लिखने के लिए बधाई और शुभकामनाएं.

25 मई 2011 को 2:36 pm बजे
मंजुला ने कहा…

mera hindi translation kaam ni kar raha hai
bahut hi badia likha hai yaar tumne wakai ristey tutne ki wajah 80% bewkufi hi hoti hai aur kuch nahi ...mahila aayaog ka farman bahut hi hasyaprad hai ....

25 मई 2011 को 5:22 pm बजे
मंजुला ने कहा…

सदियों तक खामोशी से सब सुनते सुनते उसने अब सवाल पूछना शुरू कर दिए| इसलिए विश्वास टूट गए ? कितने कमजोर है हमारे विशवास | इन खोखले विश्वासों को कब तक कोई भारतीय महिला अपने सुहाग चिन्हों में छुपा कर ढ़ोती रहेगी | उसे भी जीने का हक़ है | उस अपने पति बच्चों मायके ससुराल के लोगो से ही नहीं खुद से भी मोहब्बत करने का हक़ है | उसे भी साँस लेने का हक़ है | उसके जीने पर ,उसके जिन्दगी "जी " लेने पर इतना हंगामा क्यों ?


dil ko chu gyi .......

25 मई 2011 को 5:24 pm बजे
बेनामी ने कहा…

"विवाह मोबाइल से नहीं टूटते और ना सिर्फ महिलाये ही दोषी है विवाह टूटने क़ी| विवाह को बचाना है तो पहले विश्वास को टूटने से बचाना होगा"

सही, सच्ची और प्रेरक प्रस्तुति

समय मिले तो एक नजर मेरे ब्लॉग पर "गंजा मुझे बनादे मेरी सुन ले हे भगवान"

26 मई 2011 को 7:43 pm बजे

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