मिट्टी से खेलते हो बार- बार किसलिए ?
कल मेरे ,शहर में अचानक कहीं से भटके हुए बादल आये और बरस कर चले गए | बरसात के आते ही पूरा वातावरण , मिट्टी की सोंधी खुशबू से महकने लगा | इक पल पहले जो,सूखी मिट्टी तपती धरती का हिस्सा थी |जो सूरज की तपन और जलन में सुर- से सुर मिला कर जल रही थी | बादलों के बरसते ही कैसे झट से ,सोंधी महक में बदल गयी | सख्त ,चुभती ,सूखी .धूल उड़ाती आखों में खटकती मिट्टी , बूंदों से मिलते ही कैसी मुलायम ,लचीली और सुगन्धित बन गयी |
दोस्तों , हम भी तो इसी मिट्टी से बने हैं ना ?हमारी मिट्टी की देह इक दिन इसी मिट्टी में मिल जाएगी | जब हम सभी इक ही मिट्टी से बने हैं| फिर क्या बात है की सभी की खुशबू अलग -अलग है ? और यही खुशबु हमें सबसे अलग बनाती है | किसी से जुड़ने से पहले हमें उसकी खुशबु आ जाती है और हमारे आसपास अहसास महकने लगते हैं |
दोस्तों , क्या कभी सूखी मिट्टी,में कोई खुशबु होती है ? नहीं | जब तक प्रेम के अपनेपन के आत्मीयता के अहसास बूंदों के रूप में नहीं बरसते , नहीं छलकते तब तक कोई भी मिट्टी खुशबु नहीं दे सकती हाँ वो उड़ उड़ कर किसी की आँख में चुभन जरुर पैदा करसकती है | लेकिन जब हम किसी अहसास से जुड़ते हैं तो हम भी सोंधी महक से महकने लगते हैं | इसलिए ,रिश्तों की मूरत बनाने के लिए सूखी मिट्टी के अलावा अहसास के बादल भी होना जरुरी है |
दोस्तों , इस बात के अलावा इस मिट्टी को देख इक सवाल और उठता है मेरे मन में | हम सभी मिट्टी के खिलौने है और वो ऊपर आसमान में बैठा विधाता कुम्हार है | वही,हमें बनाता है | वही हमें बिगाड़ भी देता है | इस मिट्टी की भी अज़ब तासीर है | वो जिस रूप में चाहे हमें ढाल देता है | हम सिर्फ खिलौने हैं | इतने कच्चे की साँसों के स्पंदन से ही बिखर जाए , पक्के इतने की हर तूफ़ान सह जाए | आसमान में बैठे उस कुम्हार के खेल कभी समझ नहीं आते | क्यों वो नित नए माटी के पुतले गढ़ता है , और फिर उन्हें तोड़ भी देता कभी -कभी इक सवाल मन में उठता है की उस कुम्हार से पूछूं की तुम्हे ये मिट्टी के खेल क्यों कर इतने भाते हैं ? खिलौने बनाना तक तो ठीक था लेकिन , उनमे जो प्रेम के , आत्मीयता के , अपनेपन के अहसास भर देते हो | जिनकी खुशबु की वजह से ये खिलौने जीवित हो उठते हैं | तुम उन्हें अपनी मर्जी से करीब लाते हो , और अपनी मर्जी से अलग भी कर देते हो |कभी सोचा है तुमने इन मिट्टी के खिलौनों को भी दर्द होता है | पीड़ा होती है | आखों से आसूं बहते है , मन से आहें उठती है | दो मन , दो विचार , दो तकदीरे , आपस में जुड़ने ही वाली होती हैं तो तुम झट से उन्हें अलग कर देते हो | तोड़ देते हो | ऐसा करते हुए तुम्हारा मन नहीं दुखता ? मन समझते हो ना तुम ? या मन जैसी कोई चीज तुम्हारे पास है भी या नहीं ? लोग कहते हैं तुम टूटे दिलों में रहते हो| तो क्या अपने रहने के लिए तुम जानबूझ कर दिलों को तोड़ते हो ? इक आखरी बात बताओ | टूटे हुए खिलौनों से तुम्हे क्यों प्यार है ? मिट्टी के इस खेल को बंद कर दो या ये बता दो की " मिट्टी से खेलते हो बार- बार किसलिए ? टूटे हुए खिलोनों से प्यार किसलिए ?
दोस्तों , क्या कभी सूखी मिट्टी,में कोई खुशबु होती है ? नहीं | जब तक प्रेम के अपनेपन के आत्मीयता के अहसास बूंदों के रूप में नहीं बरसते , नहीं छलकते तब तक कोई भी मिट्टी खुशबु नहीं दे सकती हाँ वो उड़ उड़ कर किसी की आँख में चुभन जरुर पैदा करसकती है | लेकिन जब हम किसी अहसास से जुड़ते हैं तो हम भी सोंधी महक से महकने लगते हैं | इसलिए ,रिश्तों की मूरत बनाने के लिए सूखी मिट्टी के अलावा अहसास के बादल भी होना जरुरी है |
दोस्तों , इस बात के अलावा इस मिट्टी को देख इक सवाल और उठता है मेरे मन में | हम सभी मिट्टी के खिलौने है और वो ऊपर आसमान में बैठा विधाता कुम्हार है | वही,हमें बनाता है | वही हमें बिगाड़ भी देता है | इस मिट्टी की भी अज़ब तासीर है | वो जिस रूप में चाहे हमें ढाल देता है | हम सिर्फ खिलौने हैं | इतने कच्चे की साँसों के स्पंदन से ही बिखर जाए , पक्के इतने की हर तूफ़ान सह जाए | आसमान में बैठे उस कुम्हार के खेल कभी समझ नहीं आते | क्यों वो नित नए माटी के पुतले गढ़ता है , और फिर उन्हें तोड़ भी देता कभी -कभी इक सवाल मन में उठता है की उस कुम्हार से पूछूं की तुम्हे ये मिट्टी के खेल क्यों कर इतने भाते हैं ? खिलौने बनाना तक तो ठीक था लेकिन , उनमे जो प्रेम के , आत्मीयता के , अपनेपन के अहसास भर देते हो | जिनकी खुशबु की वजह से ये खिलौने जीवित हो उठते हैं | तुम उन्हें अपनी मर्जी से करीब लाते हो , और अपनी मर्जी से अलग भी कर देते हो |कभी सोचा है तुमने इन मिट्टी के खिलौनों को भी दर्द होता है | पीड़ा होती है | आखों से आसूं बहते है , मन से आहें उठती है | दो मन , दो विचार , दो तकदीरे , आपस में जुड़ने ही वाली होती हैं तो तुम झट से उन्हें अलग कर देते हो | तोड़ देते हो | ऐसा करते हुए तुम्हारा मन नहीं दुखता ? मन समझते हो ना तुम ? या मन जैसी कोई चीज तुम्हारे पास है भी या नहीं ? लोग कहते हैं तुम टूटे दिलों में रहते हो| तो क्या अपने रहने के लिए तुम जानबूझ कर दिलों को तोड़ते हो ? इक आखरी बात बताओ | टूटे हुए खिलौनों से तुम्हे क्यों प्यार है ? मिट्टी के इस खेल को बंद कर दो या ये बता दो की " मिट्टी से खेलते हो बार- बार किसलिए ? टूटे हुए खिलोनों से प्यार किसलिए ?
4 comments:
"रिश्तों की मूरत बनाने के लिए सूखी मिट्टी के अलावा अहसास के बादल भी होना जरुरी है"...क्या बात रिश्तों की इतनी तपिश और वह भी ठंडी फुहारों के साथ |
nice mamta ji
very nice.......
:-)
Once again excellent description of relationship. itni choti-choti baaton ko itni baariki se samajhna..tumahare dil mein bachchon jaisi paakizgi hai..jo duniya ki kadwi sachchayion ko dekh kar vismit hota hai aur baar- baar Bhagwan se poochhta hai - aisa kyon Bhagwan, aisa kyon? tumhare is lekh ki bhini-bhini khooshbu se main bhi ot-prot ho gayi. very nice.
Once again excellent description of relationship. itni choti-choti baaton ko itni baariki se samajhna..tumahare dil mein bachchon jaisi paakizgi hai..jo duniya ki kadwi sachchayion ko dekh kar vismit hota hai aur baar- baar Bhagwan se poochhta hai - aisa kyon Bhagwan, aisa kyon? tumhare is lekh ki bhini-bhini khooshbu se main bhi ot-prot ho gayi. very nice.
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