तू इस तरह से मेरी जिन्दगी में शामिल है - - - --

शुक्रवार, जून 24 By मनवा , In

दोस्तों , तपती, जलती , चुभती गर्मी के बाद रिमझिम फुहारों का मौसम चला आया |यकीनन , गर्मी का मौसम जहाँ मन को रुखा-रुखा और उबाऊ  सा बना देता है | वहीँ ये ठंडी फुहारें मन की मिट्टी को यादों से, अहसासों से नम कर देती है | मैंने सोचा-- जरुर इस मौसम में आप सभी के दिल की मिट्टी अभी नम सी है| तो क्यों ना उसे धीरे से छू लूँ और कुछ अहसासों के पौधे  रोप दूँ |  ताकि अगली गर्मी तक ये अहसास मजबूत दरख्त बन जाये और लहलहायें और जिन्दगी की धूप में साया  बन कर ठंडक दे जाएँ |


अजी , ये तो बात शुरू करने का महज बहाना था | दरअसल ,मैं आज  उन रिश्तों की  , उन लोगो की बात करने वाली हूँ | जो हमारी जिन्दगी में शामिल तो हैं लेकिन हम उन्हें शामिल  करते नहीं | ये लोग शायद माला के १०८ मोती नहीं होते जिन्हें हम रोज जपते हैं|  ये वो अलग से शामिल मोती होता  हैं जो अतिरिक्त  होता है | जिसे कभी गिना नहीं जाता लेकिन {जिन्दगी की माला में } होता जरुर है |
दोस्तों , हमने अपनी जिन्दगी में रिश्तों  भीड़ खड़ी की है| अपनी जरुरत, अपने स्वार्थ,अपनी सुविधा , अपनी निर्भरता  के लिए हम जिन्दगी भर रिश्ते बनाते हैं | किसी के पद से प्रभावित , किसी के ख़ास गुण से आकर्षित तो किसी से भविष्य में लाभ की लालसा में हम इन रिश्तों को पालते हैं | सहते हैं | ढ़ोते हैं | शान से इन्हें गले में लटकाएं  घूमते हैं |ये हमारी जिन्दगी में शामिल हैं | लेकिन , हम कभी इनके सामने सहज नहीं होते | हम हमेशा इन रिश्तों से मौखुटे लगा कर मिलते हैं| ये ख़ास रिश्ते हैं हमारे लिए और इनके सामने हम खुद को आम महसूस करते हैं |इतने नाम हैं की हम  ऐसे लोगो का इक  कैलेण्डर  बना सकते हैं | लेकिन, लेकिन , लेकिन ......ज़रा अब नजर उन लोगों पर , उन रिश्तों पर ,जो आपको आपके "होने "का अहसास कराते हैं |जिनसे मिलकर आप बहने लगते हैं | जो आपको रोमांचित करते हैं | ये आपको "आम " से ख़ास बना देते हैं | ये आपके सपनों को तोड़ते नहीं , छीनते नहीं, बल्कि  उन्हें अपनी दुआओं से , अपनी उष्मा से भर देते हैं |
चलिए , उन रिश्तों के कैलेण्डर ना सही इक छोटी सूचि ही बना लें |अरे... इन रिश्तों  को नहीं जानते आप ? मैं बताती हूँ | ये वो लोग हैं जो भीड़ में भी आपको देख कर खुश हो जाते हैं | आपको भी इन्हें देख कर या मिल कर सच्ची ख़ुशी होती है | इनमे शामिल है वो आवाज़े जिन्हें फोन पर सुनकर आपके कानों को नहीं रूह को सुकून मिल जाता है |वो लोग जिनसे बात करके आप के चेहरे पर इक सरल मुस्कान ख़िल जाती है |
कुछ बेजान वस्तुए जो बहुत कुछ कह जाती है |कोई पत्र हो सकता है | कोई वाक्य हो सकता है | कोई किताब हो सकती है |
दोस्तों , इक बात कहूँ ? जिस दिन ये बेरहम दुनिया आपके सपने छिनने की कोशिश करती है| आपके वजूद को सिरे से नकारने की साजिश करती है | आप को अपनी सुविधा , जरुरत और अवसर की तरह इस्तेमाल करने लगती है | उसदिन आप क्या करते है ? अपनी बड़ी सी गाडी देखते हैं ? अपना बैंक बैलेंस ?अपनी फेसबुक पर हजार दो हजार दोस्तों की लिस्ट ? या उन रिश्तों को जो इक ही छत के नीचे बरसों से आपके साथ साये से चिपके हुए हैं ?
नहीं . नहीं . नहीं. ..हम कतई ऐसा नहीं करते  |हम  जिन्दगी में शामिल कैलेण्डर नहीं खोजते| हम पागलों की तरह उन लोगों को ढूंढते हैं | जिन्होंने जीवन के किसी मोड़ पर किसी समय हमें हमारे होने का अहसास करवाया था |हमसे , हमें मिलवा दिया था | हमारा आइना थे वो लोग जिसमे हम खुद को साफ साफ देख पाते थे | जिन्होंने कभी आपसे कहा था "तुम ख़ास हो मेरे लिए " | किसी ने बरसों पहले आपसे कहा था "सिर्फ तुम मेरे  लिए इस पूरी दुनिया में खास हो "| इस खासपन के अहसास मात्र  से हम कितने उर्जावान हो उठते हैं |
हमारे पास कुछ हो ना हो उन मीठे अहसासों की दौलत जरुर होना चाहिए | भले ही हमारा बैंक बैलेंस जीरो हो | लेकिन मन के ये खजाने  भरे होने चाहिए |
क्योकिं , यही वो सांसे हैं जो हमें ज़िंदा  रखती हैं | हम देह के अलावा भी कुछ है ये अहसास करवाती है | हम सारी दुनिया में इक आम इन्सान हो सकते है | लेकिन कोई ऐसा भी है जिसके  लिए हम ख़ास है | याद है दोस्तों राजकपूर के इक गीत में गरीब नायक से कोई नहीं कहता की उससे किसी को प्यार है तो इक केले बेचने वाली बुढियां {ललिता पवार } उससे कहती है मैंने दिल तुझको दिया ---| किसी के द्वारा  कहे गए ये अनमोल शब्द कैसे कोई भुला सकता है ?


तो चलिए , मेरे साथ खोज ले उन सभी रिश्तों को जो हमारी जिन्दगी में शामिल है पर दिखते नहीं | जो आसपास इक घेरा बना कर हमें छूते रहते है| पर कभी कुछ बदले में मांगते नहीं | हमें आभारी होना चाहिए  ऐसे रिश्तों का | जो बिना किसी स्वार्थ के हमसे जुड़ते हैं |जो आपके साथ नहीं होते बल्कि आपके लिए होते हैं |


आज की पोस्ट तमाम उन रिश्तों के नाम जो हमारी जिन्दगी में शामिल है पर दिखते नहीं  और जिनकी वजह से हम ज़िंदा है | ये रिश्ते हमारे भीतर पलते हैं |  अरे , आप तो यादों में खो गए | इक बात बताइए ? क्या आपने कभी किसी से कहा है की वो आपके लिए कितना ख़ास है ? चलिए इस बार तो कह ही दीजिये --"तू इस तरह से मेरी जिन्दगी में शामिल है "|

7 comments:

sourabh parashar ने कहा…

bahot bahot dhanyawad mamta ji... aapne kuch pal mu alag hi duniya me jane ka mauka diya.. sach me bada sukun mila aapki post padkar.. bahot khoob...
aap ke hatho me sach me jado he..
aajki post ki sabse achchi panktiya thi..
"हमारे पास कुछ हो ना हो उन मीठे अहसासों की दौलत जरुर होना चाहिए | भले ही हमारा बैंक बैलेंस जीरो हो | लेकिन मन के ये खजाने भरे होने चाहिए |"

24 जून 2011 को 9:07 pm बजे
vivek sharma indore ने कहा…

mamta, tumhaari har post aakhen nam kar jaati hain > kitane pyaar se dhire dhire tum baton ki jado tak pahunchati ho or fir unase jindgi ko jod deti ho bahut khub

27 जून 2011 को 12:16 pm बजे
babul ने कहा…

आदरणीय ममता जी,
यथायोग्य अभिवादन् ।

जी... ममता जी, एक ऐसा ही रिश्ता मुझसे भी जुड़ा था, वह मेरी जिंदगी का हिस्सा था, दैहिक भले ही न हो, लेकिन भावनात्मक रूप से इतनी गहरायी तक जुड़ गया था, कि कदम-दर-कदम उसका साया मेरे साथ रहा? मुझे हर कदम पर रोकता-टोकता रहा। उसके तमाम जख्म लगा अपनी बसीयत में लिखवा लूं, अपनी अंजुरी की तमाम खुशियां उसके हवाले कर दूं। दिल ने उसे सदा साथ रखना चाहा, दिमाग ने होशियारी बरतते हुये सम्हलने की सलाह दे डाली। कल ही उससे मैंने कहा अब कभी नहीं मिलेगें? उसने बात करने की जिद् की, मैंने कह दिया फोन रखूंगा ही नहीं पास? लेकिन लग रहा है, जीवन की माला में तमाम रिश्ते की मोतियों के बावजूद, मनका का न होना, माला को पूर्ण कहां कर रहा है, जी... सच कहा आपने मुझे भी लगता है कि कुछ कमी सी है?
जी...सोचता हूं। ईश्वर ने दिल और दिमाग की रचना कुछ दूरी पर क्यूं की है? करीब करता तो शायद दिल-दिमाग बेहतर तरीके से सलाह-मशविरा कर सकते थ? खैर... अच्छी पोस्ट आपकी। मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ है, अगर वह लौटी तो यकीन मानियें कभी जाने नहीं दूंगा। आज पहली बार उसके बारे में यह कह सकता हूं वो इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है...।

रविकुमार बाबुल
ग्वालियर

28 जून 2011 को 11:21 am बजे
Unknown ने कहा…

Jo bhi tippiniya aai hai. ye likhe gaye Bolg ka PURUSKAAR hai Badhai. LIKHNA aur GANA dono hi iswer ki niyamat hai... isliye inka Upyog adhiktam kiya jana chahiye MAMTA ji.

SHRISH

28 जून 2011 को 12:22 pm बजे
anil ने कहा…

.................

28 जून 2011 को 4:46 pm बजे
shrish ने कहा…

Jo bhi tippiniya aai hai. ye likhe gaye Bolg ka PURUSKAAR hai Badhai. LIKHNA aur GANA dono hi iswer ki niyamat hai... isliye inka Upyog adhiktam kiya jana chahiye MAMTA ji.

SHRISH

30 जून 2011 को 5:11 pm बजे
Mahendra Arya ने कहा…

हमें आभारी होना चाहिए ऐसे रिश्तों का | जो बिना किसी स्वार्थ के हमसे जुड़ते हैं |जो आपके साथ नहीं होते बल्कि आपके लिए होते हैं |
...........वाह ममता ! बहुत सही निष्कर्ष है जीवन के उन रिश्तों का जिस पर न तो किसी पारिवारिक सम्बन्ध का लेबल लगा होता है , ना किसी स्वार्थ का प्राइस टैग और ना ही अंग्रेजी दवाओं की तरह एक्सपाइरी डेट ! जीवन की अपेक्षाएं ही दर्द को जन्म देती है ; निःस्वार्थ किसी को कुछ देना - बस यही आधार होता है ऐसे रिश्तों का . सभी के जीवन में ऐसे रिश्तेदार जरूरी हैं . क्या खूब उदहारण दिया तुमने राज कपूर की फिल्म चार सौ बीस का ! मुझे भी फिल्म ख़ामोशी का वो गीत याद आता है - हमने देखी है उन आँखों की महकती खुशबू , हाथ से छू की इसे रिश्ते का इल्जाम ना दो ; सिर्फ एहसास है ये रूह से महसूस करो , प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो !

1 जुलाई 2011 को 9:05 am बजे

एक टिप्पणी भेजें