तेरे रूबरू तेरी जुस्तजू , तेरे इश्क में--------

शीर्षक थोड़ा अजीब लग रहा होगा
लेकिन जब मैं आपको इन शब्दों के साथ धीरे -धीरे इनके अर्थों के सिरे पकडाते जांउगी
तो आप खुद ब खुद सब समझ जायेगे
और डूब जायेगे
क्या कहा ? आज कहाँ डुबोने का इरादा है
अरे , आज कोई दर्द की नदी में नहीं डूबना है आपको और ना ही भावनाओं के सागर में
ना ही दुखों के भंवर में
आज मैं आपको लिए चलती हूँ इश्क के समन्दर में
जहाँ आकर मिलती है प्रेम की मीठी नदियाँ
जो अनगिनत पहाड़ों , खाइयों को पार करके अंततः सागर में समा जाती है
लेकिन सागर को खारा कर जाती हैं
सागर जो खुद में समेट लेता है दूसरों के दर्द को , आसुंओं को और पल- पल खारा होता जाता है
उसके इस खारेपन और खरेपन में भी इक तासीर है
इक नमक है
जो सदियों से मीठी नदियों को खींचता है
और नदियाँ वावली होकर चल देती है उस तक
उसके रूबरू उसकी जुस्तजू में
इक नदी से जब मैंने इक दिन पूछा क्यों चली जाती हो उसके पास जो खारा है
क्यों मिल जाना चाहती हो उससे जो तुम तक कभी खुद नहीं आता
जो तुम सागर से मिली तो खारी नहीं हो जाओगी ? हंसते हुए नदी ने कहा -- , ये इश्क है
यहाँ सवाल नहीं पूछे जाते
वजह नहीं तलाशी जाती यहाँ सिर्फ जुस्तजू होती है
मर जाने की
मिट जाने की
मैं सोचने लगी --हमारा मन भी तो इक सागर ही है ना इश्क समन्दर --,जिसमे बहुत सी प्रेम की धाराएं आ आ कर मिलती है
कुछ लोग मन के सागर में डूबने की बजाय देह के किनारों तक ही पहुँच पाते है
ठीक उसी तरह जैसे सागर के किनारे बैठ कर मछलियाँ पकड़ना या शांत लहरों में कंकड़ उछाल देना
कुछ लोग जी बहलाने को सागर को निहारते है
उसकी गहराई उसकी गहनता की बातें करते हैं
उपन्यास और कवितायें भी लिखते है
उसकी लहरों की छुअन से आनन्द विभोर हो उठते हैं
ये तैरते है सागर में लेकिन डूबने के डर से गहराई में नहीं जाते वापस आ जाते है
लेकिन, लेकिन, लेकिन --, कुछ गोताखोर इश्क के समन्दर में सीधे डूब जाते है
देह के किनारों भी इन्हें रोकते नहीं
, छलते नहीं
सागर की सुन्दरता निहारने का समय नहीं होता इनके पास
ये गोताखोर देह की सीप से रूह का मोती पाना चाहते है
रूह समझते है आप ? कभी देखी है रूह ? महसूस की है कभी रूह की तपिश ? देह के आवरण में जो इक रूह का नूर बहता है
क्या कभी उस पर नजर पड़ी है ? क्या कभी इश्क के समन्दर में खुद को जलते पाया है ? बकौल गुलजार "देह सौ -सौ बार जलती है तो राख हो जाती है
और जब रूह जलती है तो कुंदन बनती है " मैं कहती हूँ जब रूह जलाने लगे आपको
, किसी की लों को पकड़ कर आप खुद ही जलने लगे
किसी के इश्क में आप जब पिघलने लगे और उसके रूबरू होकर उसके सामने बैठ कर उसे पाने की जुस्तजू करने लगे -यकीनन तब ये इश्क है
कहते है हीर को रांझा मिल गया फिर भी वो उसे खोजती रही
खुद को ही राँझा कहने लगी
ये असर है इश्क का
खुद की खबर नहीं
दीवानगी ऐसी की जिसे खोज रहे है
उसके मिल जाने पर भी उसकी जुस्तजू
जैसे खुदा के सामने जाने पर भी मिलन की तड़प बनी रहती है
मैं तो कभी कभी हैरान होती हूँ की मन में जो इश्क का समन्दर है उसमे से इबादत की खुशबू क्यों उठती है ? उस आसमान के लिए जो दूर है
उससे इन लहरों को इश्क क्यों है ? क्या कभी ऐसा नहीं हो सकता की आसमान कुछ दिनों के लिए धरती पर रहने आ जाए और इस समन्दर किनारे बैठ कर महसूस करे की इन लहरों में कैसी खुशबू है इश्क की , इबादत की
यदि कभी कुदरत के सारे नियम तोड़ कर आसमां कुछ पल धरती के संग रहने आ जाये
इस इश्क समन्दर में बहने आ जाये
सारी दुनिया को भिगोने वाला आसमान कभी धरती के आसुओं से भीगे
इक बार आये तो फिर यही बस जाए
उसके रूबरू उसकी जुस्तजू में सदियाँ गुजर जाये
आसमान धरती हो जाए
धरती आसमान सी नजर आये
तेरे इश्क में ---तेरी जुस्तजू करते रहे
तेरे रूबरू बैठे हुए मरते रहे
तेरे इश्क में --लम्हे जीये या सदियाँ काटी कौन हिसाब रखे
कितनी काली थी वो दर्द की रातें और कितने दुख दायी दिन थे
खुद को कितना बहलाया
, सौ सौ बार खुद को कितना छला क्या पता ? तेरे इश्क में --खुद ही रूठे और जब तूने नहीं मनाया तो खुद ही मान भी गए
देह पल -पल पिघलती रही \ मरती रही लेकिन रूह दमकती रही , चमकती रही तेरे इश्क में
तेरे करीब होकर भी तुझे नहीं पाया
और जब तू सामने आया तो खुद की खबर ही नहीं रही और तुझे फिर से इक बार खो दिया
और फिर चल दिए उस अंजान सफ़र पे -- जहां ये खुशबू ले के चल दी -- इक विश्वास के साथ
इक जुस्तजू लिए
फिर इक बार तेरे रूबरू तेरे इश्क में ----की तू है कहीं आसपास , दिल के पास या दूर आसमानों में -----
12 comments:
बहुत ही काव्यात्मक रचना ....सारी ओर राजनीति की बिसात बिछी हुई है , ऐसे में आपका ये नोट एक मिराज़ की ही तरह लगा मुझे ...ठंडी हवा की झोंके की तरह या कहें, इस तपिश में बारिश की बूंदों की तरह. अब "रूह", "इश्क" जैसी बातें सुनने या पढने को जल्दी नहीं मिलती ..शायद आपा-धापी की इस ज़िन्दगी में जिन्दंगी को महसूस करने की क्षमता ही घटती जा रही है ..ऐसे में आपका ये लेख दिल को और भी छू सा जाता है ...आपके अन्दर की ये रूह हमेशा आबाद रहे ,ईश्वर से यही प्रार्थना है
Suraj Rai Suraj मेरे एहसास की ठंडक में, जल जा
मेरी चाहत के सांचे में, पिघल जा I
मैं तेरी रूह में, खुद को समो दूँ
तू अपने जिस्म से,बाहर निकल जा II
हर बार की तरह साधुवाद ममता जी.
सच बहुत कमाल बात कही है आपने.
13 सेकंड पहले ·
vicharo ke bhawanr h bahte jao
sawan ke jhule h jhulte jao
aarju jo ek puri to dusri tak aao
jeewan nadiya jane kitni aati jati nao
sharir to aks h aaina asli shakl dikhlao
jab tak dhadkan tab tak safar pe chalte jao
hai koi aaj kal rubaru dil ke pas kyo tu kahe door ho jao
सुन्दर
Teri justaju me gunah fanah ho jaye agar to fiza ho jaye
mere rubaru chahe teri ek aah hi aaye agar to humrah ho jaye
is post ke baad main kah sakataa hun ki ab tum apani kitaab likhan eki shuruaat kar hi do jo darshan hai jo savaal hai jo dard or prem hai yhi kuchh aesaa likhvayegaa jo yad rakha jaayegaa
This new get-up of Manva is brilliant! With this new get-up your contenet has also become quite bright :-). Keep it up !
Abhi ek baar padha hai.
isse firse padhhunga tanhai me.
Bahut khub Mamtaji
:Sanjay Sharma
कितना सुन्दर लिखा है आपने! मुझे चमनजी की टिपण्णी याद आ गई! आप वास्तव में गद्य भी पद्य में लिखती हैं! अति सुन्दर!
तेरा मेरा मनवा एक होई रे
पिछले ३ हफ्तों से नहीं मिला. कृपया नियमित भजें अपना फोन नंबर भी दें
तेरा मेरा मनवा एक होई रे
पिछले ३ हफ्तों से नहीं मिला. कृपया नियमित भजें अपना फोन नंबर भी दें
आपकी भाषा बहुत काव्यात्मक है जो किसी नदी की रवानी की यद् दिलाती है.... लेकिन सागर में समाना नदी की नियति है उसे कृपया प्रेम का नाम न दे .....
एक टिप्पणी भेजें