मैं , मैं ही रहूँ | तू , तू ही रहे ............
xमित्र दिवस के अवसर पर , थोड़ी देर से ही सही पर सभी मित्रों को शुभकामनायें |मित्रता का कोई इक दिन नहीं होता दोस्तों | ये वो अहसास है , जो पल पल सांसों में घुलता रहता है |दोस्ती निभाने के लिए इक दिन काफी नहीं , इक उम्र नहीं , इक जनम नहीं , सदियाँ मिल जाए | तो वो भी कम पड़े |
दुनियाँ के सभी , रिश्तों से ऊपर है | ये अनमोल और पवित्र रिश्ता |सारी दुनिया को प्रेम सिखाने वाले कन्हैया ने भी उस दिन ही इस दोस्ती के रिश्ते पर मुहर लगा दी थी |जिसदिन भरी सभा में अपने पांच शूरवीर पतियों के होते हुए भी असहाय और दुखी होकरद्रोपदी , अपने सखा को पुकार बैठी | और कन्हैया भी आ पहुंचे दोस्ती निभाने | युग बदले ,समय बदला , रिश्ते स्वार्थ की खूंटी पर टंगने लगे , प्रेम , इश्क मोहब्बत बदल कर , लव जैसा कुछ हो गए | तो भला दोस्ती कैसे अछूती रहती | वो भी बदली और बदल कर वास्तविक दुनियाँ से आभासी दुनियाँ तक पहुँच गयी | अब चौपालों पर , चौराहों पर लोग कर बात नहीं करते और ना ही महिलायें समूह बना कर अपने दुख दर्द इकदूजे से बांटती है | भारतीय समाज अब बदल रहा है | और ग्लोबलाईजेशन की छत्र-छाया में बहुत बदलाव हुए | जिन्दगी की परिभाषाये नित बदल रही है | नहीं बदली तो बस इक चीज --वो है दोस्ती | हम
क्यों करते हैं हम दोस्ती ? क्या फलसफा है इसका ? क्यों करे दोस्ती ? क्या खोजते है हम ? क्या भटकन है ये ? क्या तलाश है ? आसपास बहुत से रिश्तों की भीड़ में भी रूह क्या तलाश रही है ? क्या मनबहलाव है दोस्ती ? मैं बताती हूँ | जब भी ये मन अकेला हुआ इसने कोई साथ जरुर खोजा | इक ऐसा साथ जो काँधेपर हाथ रखे और कहे " सब ठीक हो जाएगा "| कोई प्यार भरे हाथ , जो आपके हाथों को अपने हाथों में भर कर बोले मैं हूँ ना " कोई ऐसा जो हमारे जैसा हो | जिसके सामने हम ज्यों के त्यों प्रस्तुत हो जाए | जिसके पास जाकर हम अपने सभी झूठे रिश्तों को खूंटी पर टांग दे | जिससे हमारी विचारों की तरंगे मिलती हो | जो हजारों मील दूर बैठ कर भी आपके बहुत करीब हो | अब , महिलाये सिर्फ महिलाओं को दोस्त नहीं बनाती या पुरुष सिर्फ पुरुषों को | आपके मन जहाँ मिले , विचार जहाँ मिले जिससे आप अपने दर्द बाँट सके | वही आपका अपना है |
वर्चुअल या आभासी दुनिया के फेस-बुकीयाँ दोस्ती की बात करे तो अब ये आलम है की , इक छत के नीचे इक कमरे को शेयर करने वाले भी अपने -अपने लेपटॉप पर अपने मन की गांठें किसी ऐसे दोस्त के साथ खोल रहे हैं | जो हजारों मील दूर बैठा है | इक घर में बहुत पास रहने वाले इक दूजे के दुखों से कोसो दूर है | बड़ी अजीब स्थिति है | अपनी उलझने, अपने संताप अपने दर्द किसी दूर बैठे हुए से बाँट रहे है | लब खामोश है | पर उंगलियाँ हजारों कहानियां बयाँ कर रही है | चेहरे पर तेजी से भाव आते जाते है | आखें कभी भीगती , कभी सोचती कभी लब मुस्काते ,की बोर्ड पर ना जाने कितने अफसाने कहे जा रहे है | मानो कीबोर्ड का हर शब्द जीवंत हो गया हो सांस ले रहा हो | कैसा रहस्य , किसी माया , है ये ? वर्चुअल दुनिया की | हूँ या दोस्ती की | सब खुश है अपनी इस दुनिया में दोस्ती की दुनिया में | किसी को किसी की दखलंदाजी पसंद नहीं | लोग देह से दूर हैं लेकिन मन ऐसे जुड़े है जैसे चन्दन पानी हो |
लेकिन लेकिन लेकिन .....क्या इतना सहज है सबकुछ जितना दिख रहा है |नहीं बिलकुल नहीं , जितने खूबसूरत दिखते है ये दोस्ती के रिश्ते तो फिर टूटते क्यों है ?क्यों दुख दे जाते है ये रिश्ते , क्यों दर्द का पर्याय बन जाते है ये अनमोल रिश्ते ? मैं बताती हूँ | जब हम किसी दूसरे को अपने जैसा बनाना चाहे जब | किसी को खीँच कर अपनी तरह क्यों बना देना चाहते है हम ? जब कोई गुलाब है तो उसे उसकी रंगत और काँटों के साथ स्वीकारना होगा | आप अगर रजनी गंधा हैं तो रात में ही महके कोई क्यों आपको दिन में खिलने को बाध्य करे | यदि आप दिन को रात कहते है तो ये आपकी समस्या है आपके दोस्त की नहीं | दोस्त यदि साँसों में बसते है तो साँस घुटने की वजह ना बन जाए |
इक गीत है ना दोस्तों. , मैं, मैं ना रहूँ तू तू ना रहे इक दूजे में खो जाए | इस गीत को यदि प्रेम से जोड़ कर देखा जाये तो शायद बात ठीक हो की , आप प्रेम की पराकाष्टा पर पहुँच कर खुद को विलीन कर दे दूजे में |लेकिन लेकिन लेकिन , जब बात जब दोस्ती की हो तो मैं इस गीत को ज़रा उलट देती हूँ मुझे लगता है की तू , तू ही रहे मैं , मैं ही रहूँ ख़तम ये झगड़े हो जाए | दुनिया का सबसे मुश्किल काम है | जिन्दगी में दूसरों को उनके जैसा बने रहने देना | तो चलिए ना मेरे साथ इक अच्छे पिता , माता , भाई , बहन या अच्छे प्रेमी बन जाने के बाद आज हम इक अच्छे दोस्त भी बन जाए | अरे रुकिए ना ज़रा --शर्त बस इतनी सी है मैं , मैं ही रहूँ | तू , तू ही रहे ......
3 comments:
आदरणीय ममता जी,
यथायोग्य अभिवादन्,
नि:शब्द हूं..........बेहतरीन । डूब गया हूं, दोस्ती के समन्दर में ।
"जब हम किसी दूसरे को अपने जैसा बनाना चाहे जब रिश्ते टूटते है"
पूर्ण सहमति - प्रेरक एवं सार्थक आलेख
दोस्ती - वो रिश्ता जहाँ कुछ पाने की चाहत न हो , कुछ खोने का भय न हो . आदान प्रदान सिर्फ शब्दों का चाहे वो सामने बैठ कर हो , चाहे टेलीफोन पर , या फिर की बोर्ड पर बने अक्षरों के द्वारा . सुख दुःख , ख़ुशी ग़म , जीवन की घटनाएँ - यही तो हम बांटते हैं दोस्तों के साथ ! दोस्ती एक एहसास ही तो है , जिसके लिए आवश्यकता होती है - कानों की जिनके पास सुनने का समय हो, आँखों की - जिनके पास समझने की क्षमता हो , और उस वाणी की - जो अमृत बन कर कानों में गूंजे. बहुत अच्छा सन्देश दिया है आपने अपने आलेख में !
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