बड़े अच्छे लगते है ..........और तुम

शुक्रवार, सितंबर 9 By मनवा , In

इक बहुत सुन्दर गीत है | बड़े अच्छे लगते हैं | ये धरती , ये नदियाँ , ये रैना , और ..........तुम | अक्सर सोचती हूँ | क्या ये नदियाँ , धरती , पहाड़ और आसमान हमेशा ही बड़े अच्छे लगते है ? और ये  इनके साथ ये "तुम " कौन है ? इस "तुम " को आखिर में क्यों रखा गया | जबकी मुझे लगता है की | ये सारा अच्छापन , और पूरा सच्चापन  इन्ही "तुम " की वजह से है | 
आप ही सोचीये दोस्तों | ये नदियाँ , पहाड़ , पंछी, फूल और तारे -सितारे तो शाश्वत हैं | फिर इस दुनियाँ के सभी लोगों को ये बड़े अच्छे क्यों नहीं लगते ? मुझे तो लगता है इस सारी दुनिया की हर चीज तभी खूबसूरत है | जब आपके जीवन में कोई "तुम " हो | मेरे आपके सबके जीवन में इस "तुम " की वजह से ही जिन्दगी का गीत पूर्ण होता है| 
जब जीवन में  "तुम " हो तो फूलों में खुश्बू महकती है | बहता पानी नदियाँ लगता है | खुरदुरी , पथरीली धरती सौंधी महक देने लगती है | पेड़ों पर बैठे पंछियों की भाषा समझ में आने लगती है | अपने आसपास  पल  रहे सभी रिश्ते सच्चे लगने लगते हैं | ऐसा क्यों  हुआ अचानक कभी सोचा है ? हमारे मन की दहलीजों पर जब कोई आहट होती है | जब कोई अपने कदमों के गहरे निशान  बनाने लगता है, दिल की जमी पर | फिर हमें समझ आता है की सागर खारा होते हुए भी नदियों को बड़ा अच्छा क्यों लगता है ?  रात के सन्नाटों में लहरे जड़ किनारों के कानों में जा -जा यही कहती होगी ना | ओ किनारों तुम कितने जड़ हो बहते क्यों नहीं मेरे साथ | और फिर किसी  दिन कोई किनारा चुपके से लहरों के साथ बह जाता होगा| ये कह कर की बड़े अच्छे लगते हो तुम | किसी बड़े वृक्ष के तने से लगी हुई कोई कोमल लता भी तो हौले हौले यही कहती होगी ना की बड़े अच्छे लगते है ..........| 
सुबह-सुबह , पेड़ों की पत्तियों पर जो अनगिनत बूंदे दिखती है ना | कभी उन्हें ध्यान से देखिएगा किसी ने रात को बड़े प्रेम से लिखा होगा | बड़े अच्छे लगते है ......सुबह सूरज की गर्मी से वो बुँदे वो स्पर्श पिघल जाते है | जैसे जिन्दगी की धूप हमारे जीवन से प्रेम , स्नेह , आत्मीयता को पिघलाकर हममे सूखापन  भर देती है | ये सूखापन ही हमें खुरदुरा बनाता है | मार डालता है | और  भीतर का गीलापन , भीतर की नमी हमें ज़िंदा रखती है |
जब तक हमारे मन के अन्दर गीलापन नहीं होगा | तरलता नहीं होगी | सरलता नहीं होगी , बहाब नहीं होगा | प्रवाह नहीं होगा |हम किसी से जुड़ ही नहीं सकते | और ना कोई अच्छा लगेगा कभी | हम कभी भी सुन्दरता को महसूस नहीं कर सकते | 
इस गीलेपन को बचा लिया होता तो | आज दुनिया में इतने संदेह ,शक , फरेब , अविश्वास और आतंक  नहीं होते |  
हरेक को नदिया , धरती , आसमान  बड़े  सुहाने, बड़े अच्छे लगते |  इस सुन्दर दुनियाँ को देखने के लिए सुन्दर आखें और सुन्दर मन चाहिए | और इक "तुम " भी चाहिए | वो "तुम " जो आपमें आपके जिन्दा  होने का अहसास भर दे | 
आपके अन्दर लहरों , को तरंगों को जन्म दे | जिसे  आप अपनी जिन्दगी के गीत में शामिल कर सके | जिसके आने से आपको  सूरज की धूप  ठंडक पहुंचाए | और जिसके समीप जाने  पर बर्फ  भी सुलगती सी महसूस हो| जिसे  सोचने के बाद , आपकी सोच बदल जाए , मन बदल जाए | उस तुम का होना  लाजमी है | जिसके होने से आपकी आखों में चमक और होठों पर मुस्काने ख़िल जाए |
वो "तुम " हम सब के पास है | आसपास है |लेकिन लेकिन लेकिन क्या हमने कभी उनसे कहा { उस "तुम " } से कहा ?  की  ये सारी दुनिया के झन्झट |ये उलझने| ये परेशानियाँ | ये जिम्मेदारियां | ये मजबूरियां | ये दुशवारियाँ, दूरियाँ | सिर्फ इसलिए अच्छे लगते है | क्योकिं तुम बड़े अच्छे लगते हो | 
और हाँ ये दौलत | ये शौहरत | गाड़ियां , बंगले , बैंक अकाउंट सब कितने झूठे है | मगर सच्चे लगते है ---ये आखें , वो बातें  वो शिकायते वो झगड़े  और ........और .............और .............तुम | 
नहीं कह पाए आज तक  तो आज ही कह दीजिये |अच्छा लगता है, कहना भी और सुनना भी की |  बड़े अच्छे लगते है ..........और तुम | 

2 comments:

sourabh parashar ने कहा…

bahot khoob.. bahot khoob..
aapke post padte time ak alag hi duniya me chale jata hu..

12 सितंबर 2011 को 5:44 pm बजे
nina sinha ने कहा…

प्रिय ममता . दिल की गहराईयों में झांकना तो कोई तुमसे सीखे. बहुत खूबसूरत बात कही है तुमने . सच्ची,ये सारी कायनात तभी अच्छी लगती है, जब ज़िन्दगी में कोई तुम हो . ये बात सही है कि तुम्हारा लेखन हमें एक बहुत ही भोले-भाले और पवित्र दुनिया में ले जाता है , जहाँ सब कुछ कित्ता सोना दिखता है , कितना सच्चा और खूबसूरत . बहुत प्यारा पोस्ट है ये .

16 सितंबर 2011 को 3:31 am बजे

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