कैसा ये इस्क है ? ये तो रिस्क है ......

शुक्रवार, सितंबर 23 By मनवा

अक्सर इश्क और मुश्क का नाम इक साथ लिया  जाता है | ज्ञानी कहते हैं की दोनों ही छिपाए नहीं छिपते हैं | लेकिन आज इश्क और मुश्क की बात नहीं जनाब| आज बात है करते है इस्क और रिस्क की | जी हाँ रिस्क यानी खतरे | देखिये इस्क में खतरे तो हमेशा से ही रहे है पहले दिल को खो देने के  खतरे फिर रातों की नींद और दिन का सुकून और फिर करार ......लेकिन इतना सब  होने के  बाद भी इक राहत, इक संतुष्टि इक आनन्द इक शान्ति है इश्क में  है | यही वजह है की हम सब की तलाश इश्क  पर ही पूरी होती है | लेकिन इन दिनों ये इश्क यानी इस्क , रिस्क क्यों बनता जा रहा है ? 
चलिए , लफ्जों में उलझाने की  बजाय मैं सीधे पॉइंट पर ही आती हूँ |
दोस्तों , पिछले दिनों हुई दो घटनाओं से मन बहुत दुखी हुआ | पहले घटनाएं  सुन ले | फिर इस्क पर चर्चा करती हूँ | पिछले दिनों भोपाल में वायु सेना की पूर्व फ्लाइंग अधिकारी, जो आसमान नापने के सपने देखा करती थी, अंजलि ने पंखे से लटक कर जान दे दी.| नागपुर में पदस्थ 49 वर्षीय ग्रुप कैप्टन अमित को धारा 306 के तहत अंजलि को खुदकुशी के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार किया है.| अमित के साथ अंजलि पिछले करीब आठ साल से लिव इन रिलेशनशिप में थीं, यानी दोनों बगैर शादी के साथ रह रहे थे. अंजलि ने भोपाल स्थित गुप्ता के घर में ही आत्महत्या कर ली.|
दूसरी घटना  जमशेदपुर की है | जिसमे आई.आई.ऍम-बी  की ऍम.बी ए. की स्टुडेंट मालिनी मुर्मू ने सिर्फ इस बात पे आत्महत्या कर ली | की उसके बॉय फ्रेंड ने फेसबुक की वाल पर लिख दिया की " फिलिंग सुपर कूल टुडे  dumaped  माय न्यु गर्लफ्रेंड , हैप्पी इंडी -पेंडेंस डे .......| " ये पोस्ट पढ़ कर मालिनी इतनी दुखी हो गयी की उसने खुद को समाप्त कर दिया |
उपरोक्त दोनों घटनाओं  के मूल में इश्क , बेवफाई , फरेब , दुख , पीड़ा  और अपमान ही है | किसी स्त्री का अपमान | प्रेम का अपमान | उन सुन्दर पलों का अपमान जो साथ गुजारे | उन क्षणों का अपमान जब , दो लोग इश्वर को साक्षी मान कर इश्क में खो जाते है | किसी की सुन्दर कोमल भावनाओं का अपमान | किसी के प्रेम का वो कलश जो सिर्फ किसी ख़ास के लिए भर जाता है उस अमृत का अपमान |
अब सवाल ये की -क्यों करे कोई किसी का अपमान ? किसने दिया अधिकार ? स्त्री हो या पुरुष क्यों खेला जाए किसी के अहसासों से | कोई अपने भाव आपको समर्पित करता रहे और आप उससे खेलते रहे | अपनी आत्मसंतुष्टि के लिए | अपनी किसी कमजोरी की वजह से आप किसी का भावनात्मक उपयोग करते रहे | और जब आपको उसकी जरुरत नहीं या कोई और विकल्प मिल जाये तो उसे दिल से बाहर निकाल फेंके | 
मेरी नजर में इससे बड़ा पाप कोई नहीं | चलो मालिनी अपरिपक्व थी | नासमझ थी | पर अंजलि तो समझदार थी | पढ़ी लिखी | आठ साल से किसी पुरुष को प्रेम और देह के साथ समर्पित | फिर क्या हुआ ?
क्या चाहती है इक स्त्री ? सिर्फ इमानदारी ना | सिर्फ इक ऐसा कोना | इक स्थान | उस प्रिय के मन में जो सिर्फ उसका हो | जहाँ से कोई उसे हिला ना सके | प्रेम के सिवा और क्या चाहा अंजलि ने ?
कितनी पीड़ा और दुख महसूसा होगा उसने उस क्षण जब उसने  खुद को देह से ख़तम कर दिया | रूह तो खैर --- सदियों तक सवाल करने आएगी ही अमित की दहलीजों पर |
और मालिनी -जो अपनी कोमल , पवित्र , भावनाओं को सहेजती रही | प्रेम के कलश को भरती रही ऐसे कुपात्र के लिए | जो उसके लायक ही नहीं था | क्या समझते है आजकल के युवा खुद को | अपने खीसे में {जेब में } चार -पांच गर्लफ्रेंड डाल कर घूमने से दोस्तों पर रौब पड़ता है | प्रभाव जमता है | है ना ?
अपरिपक्व युवा हो या परिपक्व अमित गुप्ता जैसे लोग ये नहीं जानते की  -सच्चा प्रेम किसी हाट में बाजार में नहीं बिकता | ये हार किसी स्त्री की नहीं सिर्फ प्रेम की हार है | अपमान है प्रेम का | क्या इश्वर इन्हें माफ़ कर सकेगे ?
अब आखरी बात --क्यों ना इश्क करने से पहले इश्क को समझ लिया जाए | प्रेम इश्क या मोहब्बत कोई भावना नहीं | कोई विकार नहीं | कोई जूनून भी नहीं है | ये इक गहरी समझ है | इसे पहले हमें समझना होगा | सिर्फ देह के तल पर मिलने को प्रेम मानने की भूल ना की जाये | प्रेम के बदले प्रेम मांगा भी  ना जाए | सिर्फ दिया जाए | कोई आपसे प्रेम करे ना करे आप करते रहिये |उसके लिए ना जान देने की जरुरत है ना जान लेने की | बस प्रेम को जान लेना होगा |  मांगने से भी भला  कभी प्रेम मिलता है ? ये धारा तो खुद बहने लगती है | किसी ख़ास के प्रति | उसकी उपस्थति मात्र आपको रोमांचित कर दे |  उससे मिल कर आप सम्पूर्ण हो जाए | आजादी हो आपकी और उसकी | ना की उसकी हर साँस का हिसाब मांगे हम | पहरा ना लगाए | गला ना घोटा जाए | बंधन ढीले कर दे | और फिर महसूस करे इश्क की खुश्बू | 
इस इश्क को[ इस इस्क] को हम रिस्क ना बनाए | ये बहुत पावन है  , पवित्र है | इसे सिर्फ महसूस कीजिये | और जो ये महसूसने की की शक्ति आपको इश्वर ने नहीं दी तो आप कम से कम अपमान तो मत कीजिये | 
ज़रा सोचिये तो सही | कोई क्यों आपको अपने भाव , अपने शब्द , अपने अहसास भेजता है | हजारों  की भीड़ में कोई किसी इक के लिए क्यों तरसता है ?  क्यों कोई आपके दर्द को अपने दिल में महसूस करने लगता है ? कोई क्यों आपकी ख़ुशी चाहता है ? क्या यूँ ही ? किसी के लिए खुद को मिटा ही देना और कमाल ये की साथ रहने वाले को अहसास भी नहीं ............उफ़ क्या कीजियेगा ऐसे मशीनी लोगो का ? मुझे लगता है जब से हम इंसान, मशीनी हो गए है तब से इस्क भी रिस्की हो गया है |  कैसा ये  इस्क है ? अजब सा रिस्क है ........| 

5 comments:

बेनामी ने कहा…

sahi ha

23 सितंबर 2011 को 4:46 pm बजे
dr.sharmaa sagar se ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत पोस्ट | ममता तुम तो इश्क पर इक महाकाव्य लिख सकती हो | अच्छा है | इक आकर्षण है तुम्हारी लेखनी में लिखती रहो आशीर्वाद |

23 सितंबर 2011 को 6:16 pm बजे
D.P. Mishra ने कहा…

BAHUT HE SHANDAR ABHIVYKTI HAI........

24 सितंबर 2011 को 3:38 pm बजे
Nina Sinha ने कहा…

ममता, इश्क में रिश्क तो निश्चित ही बढ़ा है. पर ये आधुनिक युग की चुनौतियाँ हैं. मैं इस सारे प्रकरण में लड़कियों को ही दोषी मानती हूँ. जब live-in में जाने का निर्णय उस लड़की ने किया, तो उसके साथ के परिणाम का सामना करने के लिए भी उसे तैयार रहना चाहिए था. Live-in is an arrangement between the two individuals to live together like a married couple without any commitment. और एक साथ एक लम्बे अरसे तक साथ रहने से कई बार आकर्षण कम हो जाता है. कहते हैं न, "familiarity breeds contempt." और लड़के या कई केस में लड़कियां इस रिश्ते से आसानी से बाहर निकल जाते हैं. मेरा ये मानना है की आदमी को बिना रिश्ते के खूटे में बाँध कर रखना बहुत मुश्किल है . हमारे शास्त्र ने बहुत सोच-समझ कर विवाह जैसी एक पद्धति बनायीं जिसमे परिवार के नाम पर लोग न चाहते हुए भी समर्पित हैं. पर बिना विवाह के किसी को लम्बे समय तक जोड़ कर रखना मुश्किल होता है. मेरा सोचना है की प्रेम या live-in जैसे रिश्तों में लड़कियों का रिश्क ज्यादा रहता है . पर आज आधुनिकता के इस होड़ में कोई किसे क्या समझाएं. मेरा मानना है की औरतों को एक high ethical life lead करना चाहिए और अगर नहीं तो मर्दों की तरह शातिर बनो . अपनी ज़िन्दगी यूँ न व्यर्थ करो. प्यार, प्रेम - ये सब बातें किताबी हैं. मैं ये नहीं कहती की दुनिया में अच्छे लोग नहीं हैं . पर अगर आपके हिस्से वो "अच्छा" व्यक्ति नहीं है, तो उसे एक भूल समझ कर आगे बढ़ो . Learn from that mistake and move on. हम सब सुनते रहते है की, " Men are by nature polygamous." हमारे शास्त्रों में ये सारे प्रयोग किये जा चुके है और परिणाम भी बताये गए हैं . मैंने देखा है हम जब भी अपने संस्कारों को भूल कर आधुनिकता की होड़ में कुछ अलग करने की कोशिश करते है, .मूंह के बल गिरते हैं और एक ख़ूबसूरत ज़िन्दगी से हाथ धो बैठते है. आज-कल शादी-शुदा लोग, शादी -शुदा औरतों को और लड़कियों को अपना निशाना बना रहे हैं. और उस असीम प्रेम को पाने के लिए औरतें कुछ भी करने को तैयार रहती हैं . हीर-राँझा, लैला -मजनूं का ज़माना अब नहीं रहा. One should be brave enough to encounter this truth and take charge of their own lives.

24 सितंबर 2011 को 8:42 pm बजे
Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…




वाकई इस इश्क़ में तो रिस्क है … :)
बहुत श्रम और लगन से तैयार आलेख के लिए आभार और बधाई !


नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार

29 सितंबर 2011 को 5:57 am बजे

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