मेरा तो , रब खो गया.........

उस दिन किसी मंदिर के बाहर बहुत भीड़ देखी , सभी का कुछ न कुछ खोया था , किसी का धन , किसी का मन , किसी का तन (स्वास्थ्य ) कोई भाग्य खोज रहा था , कोई शांति , कोई ख़ुशी , कोई हंसी , कोई आनन्द ,कोई शोहरत ,कोई शक्ति , कोई मुक्ति कोई दीवाना प्रेम खोजता था | सभी अपनी अपनी मन्नत के धागे बांध देने को आतुर थे | मन्दिर की चौखट मुझे देख हंसी , बोली तुम्हारा भी कुछ खोया है क्या ?
हाँ ..हाँ मेरा तो रब ही खो गया है | तुमने देखा है क्या ? बोली जाओ भीतर देखो होगा ...मैं बोली भीतर इक छोटे कमरे में इक पत्थर की सुन्दर मूर्ति है | जिसे चढ़ावा चढ़ा का लोग खुश कर रहे है | मेरा रब , पत्थर का नहीं होगा , न उसे मेरे किसी चढ़ावे की जरुरत होगी | वो यहाँ नहीं हो सकता | वो शायद उस मस्जिद में हो किसी न सुझाया .. देखो वहां ...जहाँ जोर -जोर से पुकारते है लोग अपने खुदा को ..नहीं नहीं मेरे रब को जोर से पुकारने की जरुरत नहीं , वो तो मेरी सांसों की आवाज को सुन कर ही आ जाता था | जब -जब उसे याद किया , वो भीतर ही महसूस हुआ |
पर वो अभी तो यही था ,इक पल में ना जाने कहाँ गया | फिर किसी ने इशारा किया, वो उस तरफ बहुत से लोग कुछ पढ़ते हैं वहां जाओ ,इक मोटे ग्रन्थ को बहुत से लोग पढ़ते थे | उस किताब में वो छिपा है शायद ...मुझे उस किताब की कोई भाषा समझ नहीं आई | आखें बंद करो तो दिखे , खोलो तो गायब ..इसीलिए मैं उसकी कोई किताब , कहानी , कविता नहीं पढ़ सकी , वो किसी भी कहानी या गीत में नहीं मिला , उसकी किताब में भी वो कहीं नहीं था | क्या मेरा रब किसी किताब में व्यक्त हो सकता था ? क्या वो इतना दयनीय था की उसे सूली पर लटका दिया जाता ? अपने सवालों के साथ थक कर जरा बैठी ही थी इक फकीर वहां से गुजरे ..क्या खोजती हो वो मुस्काए ..बाबा मेरा रब खो गया | कभी देखा था उसे ? कभी मिली हो उसे ? जो उसे इन बाजारों में खोजने चली आई ....क्या करोगी उससे मिलकर ?
| रब जब खोता है ना , तो सब खो जाता है | फिर सारी दुनिया बेमानी लगती है | वैसे कुछ खास काम नहीं था उससे | बस चंद सवाल ही करने थे , वो जो मिल जाता तो पूछ ही लेती ...लेकिन उसका कोई पता ठिकाना ही नहीं | जो भी पता वो देता है , छलिया उस पते पर कभी नहीं मिलता | ना मंदिर में दिखा ना मस्जिद में ,,रहता कहीं और है , और पता कहीं और का देता है | जो दिखता नहीं , उसे कोई कैसे खोजे ? जो दिखाई ना दे , सुनाई ना दे ,ऐसे लापता रब को कहाँ -कहाँ खोजूं ? उसकी आंच में जलना , कांच पे चलने जैसा ही कठिन है |
दो आखें उसे क्यों खोजती है ? जो कभी मिला ही नहीं | क्यों वो जब चाहे जी भर के हंसा जाता है हमें | और वो जो चाहे तो जार -जार रुला जाता है | ऐसे भी कोई किसी को सताता है ? कभी तो सारी दुनिया कदमों में डाल देता है तो कभी ....सब कुछ ले जाता है अपने साथ ..खाली हाथ उसके पीछे -पीछे चल देते है हम | वो जब -जब चाहे अपनी मर्जी से हमें तोड़ता है | जहाँ नहीं चाहे हम वो हमें वही जाकर क्यों जोड़ देता है ? जब वो चाहता है खुद में मिला लेता है | जिस पल हम उसे अपना हिस्सा मानने लगते है | जीने लगते , ठीक उसी पल वो छोड़ जाता है हमें | उसके खेल निराले | उसके छल भी अनोखे |कहीं जो मिल जाए तो उससे पूंछू की , कितना आसान है ओट में छिप कर हंस लेना | कितना मुश्किल है जीवन की कठिनाइयों का सामना करना | कितना आसान है ना परदों में छिप जाना , गुम हो जाना , कितना दुःख भरा है खोजना ....कितना आसान है ना ,कहना संभल जाओ , लेकिन कितना कठिन है ना खुद को सम्भालना | कितना आसान है न दायरों में , सीमाओं में , रेखाओं में बंधने की हिदायतें देना , लेकिन कितना कठिन है ना , सीमाओं के भीतर पल -पल मर जाना |
कितना आसान है जीने का हुकुम देना ....कितना कठिन है जीने का स्वांग करना | .जब उसे लापता होना ही था | गुम होना ही था | तो आना ही क्यों ? ये खेल , ये छल , उसका चैन नहीं छीनते ? सदियों से तलाश है उसकी .....क्यों नहीं मिलता ? उसके लिए मर -मर कर जीते है लोग ...क्या ज़रा भी इल्म है उसे ? उसने देह को दायरों में बाँध दिया , हदें बना दी ....खोजने वालों ने अपनी रूहें जगा ली ..अब वो क्या करेगा ? उसकी खोज में , रूहें जल -जल कर कुंदन बन गयी | आखें सागर ...हो गयी | इस कदर दर्द बढ़ा की अँधेरे रोशनी में बदल गए , आसूं ,,मुस्कान हो गए | वियोग ही योग हो गया ....इतना महसूस किया उसे की वो हर जगह हो गया ....किसी रोज ऐसा ना हो की लोग उसे खोजना ही बंद कर दूँ | फिर क्या करेगा वो ? उसे पुकारना बंद कर दें | महसूस करना भी .या .किसी दिन परेशान होकर हम उसे भूल ही बैठे .... फिर किसी दिन घबरा कर वो धरती पर आये | अपने होने के सौ कारण गिनाये | अपनी उपस्थिति का अहसास कराये और कहे , देखो मैं हूँ तुम्हारा खोया रब .... और हम कहे... .आप .कौन ? मेरा रब , तो खो गया .....
5 comments:
nice
very nice
nice
kya gahari hai aapki lekhani... ek antaratma ka voh pahalu jo har kisi ko chhuta hai, pareshan karta hai... use aapne aaina me rakh diya.. i really loves ur feelings which u expressed here in this writing ... thnx and congratulations..
Nice one
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