इत्ती सी हंसी ,इत्ती सी ख़ुशी ......

शनिवार, दिसंबर 1 By मनवा

पिछले दिनों इक मित्र से बहस हो गयी । उनका मानना था की , जो लोग अमीर होते हैं वो ही लोग दूसरों की  पैसों से मदद करते हैं या तोहफे भी वही लोग देते हैं । मेरा कहना था की,देने का भाव अगर मन में हो तो अमीरी और गरीबी की बात मन में आती ही नहीं । हमारे सभी के शरीरों में खून बहता है,लेकिन कितने लोग हैं जो रक्त-दान करते हैं। हम सब जानते हैं की मरने के बाद हम सब की देह ख़ाक होने वाली है लेकिन कितनों के मन में नेत्रदान या देह दान का विचार आता है । किसी को कुछ देने का भाव अगर मन में है तो दुनिया की कोई ताकत आपको देने से रोक नहीं सकती । देने के भाव पर आगे कुछ कहने से पहले मैं आपको मेरे भोपाल शहर के दो सुन्दर उदाहरण बताती हूँ और उसके बाद आगे की बात करुगी ।

मेरे इक अन्य मित्र ने मुझे बताया की , उनके आफिस के सामने इक मजदूर की झोपड़ी है। वो गरीब मजदूर दो हजार रुपया महीना कमाता है। मेरे मित्र के ऑफिस की केंटिन में हर रोज बहुत सा खाना बच जाता है। वो मजदूर रोज उस बचे हुए खाने को इकठ्ठा करता है। खाने को पोलीथिन बेग में भरकर सात -आठ  किलोमीटर दूर रोज पैदल चलकर जाता है और भिखारियों एवं लाचारों को बांटता हैऔर ये नेक काम करता है । अकसर मेरे वो मित्र उसे अपनी गाड़ी में बिठाकर ले जाते हैं । वो गरीब मजदूर, जिसके पास खुद किसी को देने के लिए कोई चीज नहीं है लेकिन उसके मन में देने की चाह इतनी प्रबल है की वो केंटिन का बचा हुआ खाना जरुरत मंदों को देकर खुश हो लेता है ।दुनिया की कोई ताकत उससे , उसकी ये ख़ुशी नहीं छीन सकती । है न ? 
दूसरा उदाहरण भी बहुत सुन्दर है । मेरे शहर में बड़ा तालाब है उसकी सुन्दरता निहारने अक्सर बहुत से अमीर लोग अपनी सुन्दर बड़ी सी गाडी में बैठकर आते है । ताल की सुन्दरता , अमीरों की सुन्दरता आपस में बाते करती हैं । वहीं पर इक पागल घूमता है। वो आसपास की होटलों से , ढाबों से बची हुई रोटियाँ बटोरता है, और उन्हें अपने झोले में भर कर तालाब के किनारे इक बड़े से पत्थर पर बैठ जाता है। उस आते  देख तालाब की सारी मछलियाँ उसके पास खिंची चली आती हैं । वो इक बादशाह की तरह रोटियों के टुकड़ों को  मछलियों के सामने डालता जाता है । गौहर महल के सामने ये बादशाह( जिसे मेरा शहर पागल कह कर बुलाता है )रोज अपने खजाने लुटाता है | न जाने क्यों ?ये पागल मुझे शहर का सबसे खूबसूरत  व्यक्ति लगता है । कैसी सुन्दर मुस्कान है उसकी और शान ..ऐसी की  .सिकन्दर भी शर्मा जाए । उसके पास न घर है, ना गाड़ी ना कोई कपडे और न जेब में भरे नोट  ....लेकिन दिल कितना खूबसूरत है । क्या वो पागल है ? हो सकता है उसने अपनी सुधबुध खो दी हो, लेकिन देने का भाव कैसे याद रह गया उसे ? उसके मन में प्रेम जीवित है । उसे मुस्काना  आता है , खुश होना आता है । देना आता है और सबसे बड़ी  बात वो बदले में कुछ चाहता भी नहीं ....शायद थोड़ी सी ख़ुशी , थोड़ी सी हंसी ..मुस्कान ? आनन्द या परमानन्द ? 

इन दोनों उदाहरण के बाद  ये बात तो तय हो गयी की अगर देने का भाव है मन में तो कोई बहाना नहीं चलता । आप किसी भी  तरह से देते हैं और देने के बहाने खोज ही लेते हैं। अक्सर लोग बहाने बनाते हैं । हम किसी को क्या दे ? कैसे दे ? कोई क्या सोचेगा ? देने -लेने पर हमारा विश्वास नहीं अदि आदि ...लेकिन मैं कहती हूँ । कौन कहता है की आप किसी को पैसे दें , महंगे तोहफे दे ..आप वही दें, जो जिसकी जरुरत हो । बड़े बुजुर्ग हैं तो उन्हें सम्मान , बच्चों को स्नेह , दोस्तों को प्यार , अपनापन  , प्रेम , दोस्ती ..न  जाने कितने हीरे- मोती हैं| हमारे मन के खजाने में और हम उन्हें छिपाए फिरते हैं । बाँटते ही नहीं ..
वैसे" देना" शब्द से बेहतर मुझे बांटना शब्द लगता है । हम किसी को क्या दे सकते हैं । और हम देते भी नहीं दरअसल हम  बाँटते ही हैं । अपनी अनुभूतियाँ , अपना प्रेम , अपना सुख ,अपनी  अनमोल मुस्कान ,
अपनी ख़ुशी ,,अपने विचार और भी अनगिनत चींजे ।
अब बात देने के सुख की । जब आप किसी अपने प्रिय को कुछ देना चाहते हैं, तो कोई वस्तु देते हैं,सुन्दर फूल या हाथों से लिखा कोई खत , हाथों से बना खाना या ऐसा ही सुन्दर कुछ ..लेकिन क्या ये सिर्फ वस्तु हैं ? नहीं , इन छोटी -छोटी मामूली सी दिखने वाली चीजों में आपका समस्त प्रेम सिमट जाता है । आप अपने कोमल अहसास , अपना प्रेम उस वस्तु के भीतर समाहित करते हैं । इस देने के सुख की अनुभूति को शब्दों में नहीं पिरोया जा सकता ।ये तो वही जानता  है| जिसने कभी कुछ किसी के लिए यूँ ही खरीदा हो और यूँ ही दे दिया हो । आपने अपनी प्यारी भावना किसी के साथ साझा की , किसी के साथ बांटी । यही सुख है । यही ख़ुशी है । आपने किसी को कुछ दिया , आप देकर मुस्काए, जिसे मिला वो पाकर मुस्काया । देखिये दो मुस्काने हो गयी न ..ऐसे हम बहुत सी मुस्काने बना सकते हैं ।
अब बात लेने वाले की , यक़ीनन जिन्हें तोहफे या प्रेम ,अपनापन , दोस्ती , मिलती है वो भाग्यशाली होते हैं । उन्हें पता होता है की सारी दुनिया में कोई है जिसे मैं याद हूँ । जिसे मेरी परवाह है । जो मुझे हर- पल  सोचता है । ये ख्याल ही किसी को रोमांचित कर देता  है और लोग खुश होते हैं । पल भर के लिए ही सही , हम किसी के होठों पर मुस्कान रख कर आ गए चुपके से ..ये क्या कम है । हमारे खुश होने के  लिए ।

हमें ,खुद के भीतर देने का भाव जगाना होगा । आदत डालनी होगी ।जब आदत पड़  जाएगी तो आप देने लेने को अमीरी -गरीबी से नहीं जोड़ेंगे ।फिर आप, आपके पास जो भी होगा , जैसा भी होगा उसे दे देने को आतुर होंगे ।जैसे आपके सुन्दर विचार, आपकी प्रेरणा , प्रेम ,अपनापन ,हमदर्दी , मुस्कान कुछ भी ..किसी भी कीमत पर ...
हमेशा ये स्मरण रहे , ख़ुशी और हंसी का ताला , ख़ुशी और हंसी की छोटी चाभी से ही खुलता है । आपका मन आपका हृदय हमेशा देने के भाव से भरा हो । तभी आप दे सकेंगे  । बुद्धि हमेशा लेने की फिराक में रहती है । कैसे ले लूँ ?  , कहाँ -कहाँ से ले लूँ ? किस तरह से हथिया लूँ ? किसी को क्यों दूँ ? क्या लाभ होगा मुझे ? ऐसे तर्क बुद्धि करती है । उसे देना आता ही नहीं ,सिर्फ लेना आता है । लेकिन हृदय ..हमेशा सोचता है कैसे दे दूँ ? किस तरह से दे दूँ ? किस जतन  से दे दूँ ? सब कुछ उसे  सौंप दूँ । इसलिए प्रेम में देने का भाव आता है । 
हम जब प्रेम से भरे  होते हैं, तो कलश छलक -छलक जाता है ।  अहंकार रहित होते हैं और  दिल के अमीर भी  होते जाते हैं प्रेम में  । खुश होते हैं वो लोग जो प्रेम में होते हैं । उनके पास  देने के कोई तर्क नहीं कोई विचार नहीं होते ।इतनी फुर्सत ही नहीं की जोड़ घटाना करे वो सिर्फ याराना करते हैं । अपनी ख़ुशी से हंसी से ..इक खुशबु है , इक जादू , इक मिठास .इक छुअन भर है ...इत्ती सी हंसी ,इत्ती सी ख़ुशी ......


3 comments:

बेनामी ने कहा…

KHOBSURAT

4 दिसंबर 2012 को 3:23 pm बजे
Unknown ने कहा…

ek baar phir aapki lekhani ne bhavon ko kuder diye... mai samajh sakta hu ki jitna aapko bhi baatne me aanad aata hai apni lekhani k madhyam se shaayad utna to likhne me bhi nahi aata hoga..... ek baar phir se is khoobsurat udgaaron ko vyakt karne k liye badhai...

4 दिसंबर 2012 को 5:54 pm बजे
Nina Sinha ने कहा…

एक बार फिर से दिल को छूने वाली बात कही है . हमेशा ही कहती हूँ की तुम बहुत अच्छा लिखती हो और दिल से लिखती हो, जो हम सब के दिल तक पहुँचती है. तुम्हारी संवेदनशीलता और सोच के लिए साधुवाद. कहाँ से ढूंढ कर लाती हो ऐसे चुनिन्दा विषय,जो इंसान को छू जाये और जिसके बारे में हम अक्सर अपने घरों और मित्रों में बात करते हैं.

मैं तुम्हारे साथ पूरी तरह से सहमत हूँ कि हम सब बहाने बनाने में लगे रहते हैं. आजकल भिखारियों को भीख देकर ऐसा लगता है कि कहीं हम उससे बड़े भिखारी तो नहीं ..मालूम हुआ, हमसे ज्यादा बैंक-बैलेंस तो उनके पास है. पर जो भी है, तुम्हारा ये लेख आँख खोलने वाली लेखनी से कम नहीं, हम सब चाहे तो अपने तौर पर थोडा सा बदलाव, थोड़ी सी सेवा और थोडा सा प्यार तो बाँट ही सकते हैं.

दोनों उदाहरण इतने प्यारे थे कि बस दिल भर आया. गरीबों से हम कितना कुछ सीख सकते हैं. बिना किसी आडम्बर के कुछ करने की चाहत. तुमने ठीक कहा है है कि वो पागल तुम्हारे शहर का सबसे खुबसूरत व्यक्ति है. बहुत साधुवाद और प्यार.

13 फ़रवरी 2013 को 6:52 am बजे

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