तीसरी कसम खायी क्या ?

शुक्रवार, फ़रवरी 15 By मनवा , In

बचपन में पढ़ी गयी , सुनी गयी कहानियां दिल पे उकेरे गए गोदने की तरह होती हैं जिन्हें वक्त का इरेजर मिटाता नहीं वरन और गहरा कर जाता है । गोया हर अनुभूति इन कहानियों को जीवंत करती जाती है । बचपन में गोर्की की माँ , प्रेमचंद की ईदगाह , गुलेरी जी की उसने कहा था और रेनू जी की मारे गए गुलफाम  सहित और भी बहुत सी ..कहानियाँ रहीं जो दिल के करीब  है , बहरहाल आज बात रेनू जी की मारे गए गुलफाम की , इस सुन्दर कहानी पर राजकपूर ने फिल्म तीसरी कसम बनायीं जिसे शेलेन्द्र के गीतों ने अमर कर दिया , रेनू जी का हिरामन यक़ीनन राजकपूर ही थे , सच्चे , सरल और पवित्र ..हाँ  नौटंकी वाली वहीदा जी की जगह कोई और भी होती तो भी ये फिल्म इतनी ही सुन्दर बनती ।इस फिल्म में हिरामन  अपने भोलेपन में आकर अक्सर   छला जाता है और लुटने पिटने और टूटने के बाद वो हमेशा कसम  खाता है कि बस अब नहीं ... फिल्म के इक गीत में हिरामन बड़ी ही मासूमियत से नौटंकी वाली से पूछता  है "" मन समझती हैं आप ? ""  मानो कह रहा हो अगर मन की बात समझती हो , मन के रहस्य समझती हो या मन के संकेत समझती हो तो मैं बात शुरू करू अन्यथा नहीं ....इस कहानी में , निपट गंवार भोला भाला ,अनपढ़ गाड़ी  वाले हिरामन  के पास एक बैल गाडीं है जिसमे  एक दिन वो  बाम्बे की कंपनी वाली (नौटंकी वाली ) को बिठाता है । रास्ता खराब हो , सफ़र ऊबाऊ  हो तो समझदार यात्री आपस में बातें करके  यात्रा  को आसान बनाते हैं । नौटंकी वाली हीराबाई और गाड़ीवान हिरामन लम्बे सफ़र को काटने के लिए आपस में गप करते हैं (आप इसे चेट कह लें  ) ।हिरामन अपने मन  की किताब हीराबाई के सामने खोल के रख देता है ।  हीराबाई जहाँ  चतुर , ज्ञानी और घाट -घाट  घूमी थी वहीँ हिरामन  हर स्तर पर अनाड़ी था , लेकिन हीराबाई से बात करते समय हिरामन के मन में चम्पा के फूल महकते थे ,उसकी गाडी में चम्पा महकती थी  । दोनों रस्ते भर खूब बातें करते हैं जैसे जन्मो के सखा हों । 
हिरामन का अपने जीवन में पहली बार किसी नशे से किसी माया से किसी जादू से साक्षात्कार हुआ था । वो मन ही मन हीराबाई को प्रेम करने लगता है और ..कहानी के अंत में हीराबाई , बिना कुछ बोले चली जाती है हाँ जाते समय वो हिरामन को पैसे देती है हिरामन दुःख से तड़प के कहता है इस्स ..हमेशा पैसो की बात , काश  हीराबाई पैसो की जगह प्रेम दे जाती , पैसो की जगह प्रेम की बात करती । लेकिन कैसे करती , वो कंपनी वाली थी , कंपनी वालियों के लिए प्यार और अहसासों का क्या मोल , नौटंकी वाली कब किस की सगी हुई है।  वो इक रंगीन जादू था जो खतम हो गया । मेला टूट गया था हिरामन के मन का मेला भी टूट जाता है और इस टूटन से तड़प के वो अपने जीवन की तीसरी और आखरी कसम  खाता है की अब बस नहीं ...कहानी का अंत दुखद होता है । 
मेरे एक मित्र को हीराबाई से शिकायत है कि वो हिरामन से बात किये बिन अचानक क्यों चली जाती है ।  उसे कम से कम एक मुलाकात तो हिरामन से करनी ही थी , यदि वो "मन" को समझती थी तो ..हीराबाई जानती थी कि अगर वो हिरामन से मिलकर बात करके जाएगी तो हिरामन उसे  जाने  नहीं देगा । हाँ  वो हीराबाई की रेलगाड़ी के आगे कूद कर जान जरुर दे देगा । हीराबाई चतुर खिलाड़ी थी , एक साथ कई सुरों को साधना उसके खेल का हिस्सा था । वो इक साथ कई गीत गा सकती थी । वो एक साथ कई रूप में अभिनय कर सकती थी । हिरामन कभी नहीं जान सका कि , वो जादू , वो नशा , वो माया , उस छाया के फेर में कैसे और क्यों पड़ गया और मन हार गया । घबरा कर तड़प के उसने आखरी कसम खायी की अब कभी प्रेम नहीं .....
कभी कभी मैं सोचती हूँ , .  ये दुनिया भी तो एक नौटंकी ही है । और हमारा मन हिरामन है ।सच है , ये नौटंकी वाली कब किसकी सगी हुई है । उनकी अदाओं के , जलवों के लाखों दीवाने होते हैं । हर युग में हीरे जैसे सच्चे मन वाले हिरामन का मन हिरा जाता है ( चुरा लिया जाता है ) ये नोटंकी वाली मन चुराती हैं , चैन और सुकून भी अपने साथ लिए जाती हैं । जब ये अपनी अदाओं से दर्शकों को दीवाना करती हैं तो हर देखने वाला इसी मुगालते में रहता है की उस मोहिनी की अदाएं सिर्फ उसके लिए ही हैं , लेकिन कई हजार लोगों को भरमाने , रिझाने का हुनर होता है नोटंकी वाली के पास । हजारों हजार  दर्शकों की भीड़ में हमेशा कोई न कोई हिरामन जरुर होता है जो अपना "मन "सचमुच हार जाता है । 
उस माया से , उस ठगिनी की एक मुस्कान पे ये निष्कपट हिरामन अपने जीवन की जमापूंजी "अपना मन " लुटा देता है । हमारा सरल मन बार-बार हर बार किसी न किसी प्रपंचों में  फंसता है , छला  जाता है और हर बार कसम भी खाता  हैं की अब नहीं ..बिलकुल नहीं , जीवन भर हम अपने आसपास रिश्तों के मेले लगाते हैं मेले  हमें प्रिय हैं , नौटंकी हमें रोमांचित करती है , भरमाती है रिझाती है और अंत में अकेला छोड़ जाती है । कितना भी लंबा चलने वाला मेला हो एक दिन वो टूटता ही है । कितनी भी बड़ी कंपनी की नौटंकी हो एक दिन ख़तम होती ही है । बिजली के रंगीन बल्ब , स्याह अंधेरों में बदल जाते हैं और मधुर धुनें सन्नाटों में , मेले की रौनक और शोर , मरघट की सी डरावनी शांति में तब्दील हो जाते हैं । 
 लेकिन जब रिश्तों के मेले  टूटते हैं ना , तो भीतर बहुत भीतर बैठा हिरामन भी टूटता है । अपने हिरामन को  टूटने से बचाया जाए । मन की धरती को बंजर होने से बचाया जाये । अपने भावो , अहसासों को दुनिया की नौटंकी से दूर रखा जाए । फिर से कोई हिरामन न टूटे , ना मरे , प्रेम टूटे नहीं , रूठे नहीं , ज़िंदा रहे मन में अपनी सच्चाई के साथ , ईमानदारी के साथ , पवित्रता के साथ ।मन में प्रेम के दिए हमेशा जलते रहें ,  क्यों कोई हमें छले , क्यों कोई हमें ठगे, कोई हमें तोड़े , कोई हमें छोड़े , है ना ? तो आज  मन ही मन हिरामन की तरह तीसरी कसम खायी क्या ? 

2 comments:

sanjay david ने कहा…

EK BAAR PHIR "HEERAMAN KA MANN " KHOL DIYA AAPKI LEKHNI NE.... SUNDAR VYKHYA.....

15 फ़रवरी 2013 को 7:18 pm बजे
Rahul Singh ने कहा…

यशपाल की 'झूठा सच' समर्पण की पंक्ति की तरह.

23 फ़रवरी 2013 को 7:17 am बजे

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