लगाये हैं हमने भी सपनों के पौधे --------

शुक्रवार, अक्तूबर 15 By मनवा , In

पिछले , दिनों इक मित्र  से चर्चा हो रही थी , उनका कहना था की जीवन में  जो  कटु  अनुभव होतें हैं उन्हें अपवाद मानना  चाहिए नियम नहीं लेकिन दोस्तों ना जाने मुझे क्यों लगता है की इन दिनों  कटु  अनुभव तो जैसे जीवन  के नियम नहीं नियति ही बन गए है  जिस तरह से रिश्तों के बीच मतलबपरस्ती , अवसरवादिता और स्वार्थ आ गये इन सब के बीच  यदि कहीं कोई सच्चा और निस्वार्थ रिश्ता  बन जाए तो ये अपवाद होगा
चीजों  में मिलावट की खबरें तो हम रोज ही सुनते हैं लेकिन अब इस मिलावट से रिश्तें भी अछूते नहीं है  की जिन रिश्तों में  मिलावट हो सोने चांदी की मैं  उन रिश्तों को ठुकराकर चला  जाउगां ---ये तो इक  गजल की लाइने हैं वास्तव में हम रिश्तों को ठुकराते नहीं है  उन्हें गले का हार बना कर नुमाइश  लगाते हैं इन कागज़ के सुन्दर फूलों  को  हम गुलदानों में सजाते हैं   दिलचस्प बात ये की हम जानते है की इनमे कोई खुशबु नहीं है वो तो उसी समय उड़ गयी थी जब हमने रिश्तों को अपनी जरुरत के हिसाब से बुनना शुरू किया था , वो सुगंध तो उस पल ही खो गयी थी जिस पल हमने रिश्तों   पर सवाल   उठायें थे उन्हें  साँस लेने से रोका था
हमने सोचा नहीं की जिस खुशबु को मुठ्ठी में बंद कर कर के हम उस पर अपना अधिकार जता रहे है वो तो कबकी हमारे हाथों से छू मंतर हो चुकी है पहले घरों में शीशे  के टूटने को अपशगुन कहते थे अब तो  रोज  घर  ही टूट  रहे है दिल टूट रहे हैं बस्तियां  उजड़ रही है लेकिन किसी को बुरा नहीं लगता हम क्या पत्थर हो गए है ?
इक कदम पर रिश्ते बनते हैं और अगले मोड़ पर टूट जाते है न कोई  दर्द ना कोई दुःख फिर जैसी जरुरत होगी वैसे रिश्ते बना लेगे  ------------
लेकिन-- लेकिन--लेकिन  इन सब के वावजूद  दिल वालों की बात किये बिना मैं जाने वाली नहीं  आप पूछेगें  कौन हैं ये दिल वाले ? अरे वही जो इतनी कठिन   हालातों में भी सपनों के पौधे   रोपते हैं इस भरोसे में की इन पर इक दिन प्रेम के सच्चाई के फूल खिलेगें ये वो दिल वाले हैं जो रिश्तों में खुशबु   ढूंढ़ते हैं  ये दिल की वादी सजाते हैं हर मोड़ पर इक खवाइश बोते हैं की जब जब दर्द की विरह की धूप जलाए तो ये रिश्तें  ठंडी छांह  कर दे जब दुःख की सर्दी जमाये तो ये अपनी उष्मा से हमें जिन्दा रखे  और जब सावन का मौसम  आये तो प्रेम की फुहारों से सराबोर कर दे
 दोस्तों  हम सभी प्यार की खुशबु ढूंढ़ते है तो  प्यार के बीज  क्यों  नहीं बोते ?     चलिए  आज ही इक सपना  आप भी बो दीजिये मेरी तरह  दिल की धरती पर और हाँ बादलो का ठिकाना नहीं है आये ना आये इसलिए अपने आसुओं से ही सींचना  होगा उस पोधे को किसी ने कहा है "अजब दिल की   बस्ती
अजब दिल की वादी
हरेक मोड़, मौसम
नयी ख्वाहिशों का
लगाए हैं हमने भी
सपनों के पौधे
मगर क्या भरोसा
यहाँ  बारिशों का""
 दोस्तों  आज के लिए इतना ही मुलाक़ात होगी अगली बार फिर किसी रिश्ते के साथ

2 comments:

somya singh ने कहा…

rishton par bahut sunder rachanaa

15 अक्तूबर 2010 को 7:16 pm बजे
मंजुला ने कहा…

वो सुगंध तो उस पल ही खो गयी थी जिस पल हमने रिश्तों पर सवाल उठायें थे उन्हें साँस लेने से रोका था.......
सच मे सच ही है .......बहुत बढ़िया वर्णन है आजकल के रिस्तो का ....

19 अक्तूबर 2010 को 12:45 pm बजे

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