जाने वालों ज़रा, मुड़ के देखो इन्हें -----

बुधवार, अप्रैल 27 By मनवा

दोस्तों , जहाँ  मैं रहती हूँ वहाँ  से इक लम्बी  सड़क  जाती है | मेरे  कमरे की  खिड़की  उस सड़क  पर ही खुलती  है | सड़क के  दोनों और  बहुत खूबसूरत मकान बने है |उन मकानों की मालकिने भी खूबसूरत  हैं| जो अपने साफ सुथरे   घरों  की गंदगी  उस सड़क पर शान से फेंक  देती  हैं| शाम को इक सफाई वाला  आता है और सारी गंदगी बड़ी तन्मयता  से साफ  करता है! अब आप कहेगे इसमे नया  क्या है ?
दोस्तों , उस सफाई वाले को मैं बहुत सालों से जानती हूँ ! अपने पैरों से लाचार  वो व्यक्ति  सभी की नफरत का  पात्र है ,लोग उसे अपशब्द कहते हैं ! उसकी लाचारी पर हंसते हैं  | बच्चे  उसे परेशान करते  हैं ! लेकिन  कोई उससे बात नहीं करता  | वो अक्सर मेरी  खिड़की के पास आकर अपनी बड़ी सी झाड़ू  टिका कर आवाज देता  है !दीदी  पानी  मिलेगा ? मैं अपने सारे  काम छोड़ कर उसके पास जा  खड़ी होती हूँ  | और फिर हम घंटों  बाते करते हैं ! उस व्यक्ति के पास कोई डिग्री  नहीं पर ज्ञान  बहुत है , दुनिया की समझ है उसे!उम्र में वो मुझसे बड़े है लेकिन मुझे दीदी कहते है |हम बहुत देर तक बातें करते है धर्म पर राजनीती  पर  जीवन  परऔर जोर जोर से हंसते  भी हैं  | उस समय  सभी आसपास की महिलाए मुझे घूर_घूर  के देखती हैं और  पुरुष   मुझे संदेह  की नज़रों से |
सब कहते है की वो नीच जाती का व्यक्ति{ वो लोग उसे इक अपशब्द से बुलाते है },  गन्दा आदमी , जो गंवार  है लंगड़ा  है ! उससे तुम क्या बाते करती हो ! मैंने  कहा  मुझे उस गंदे आदमी की आखों में उजली  चमक दिखतीहै ! उसके बूढ़े  चहरे  पर मेरे लिए इक पवित्र मुस्कान आती है| वो अनमोल है |उसका ह्रदय इतना विशाल है की आपके हवेलीनुमा  मकान छोटे  पड़  जाए |
दोस्तों ,क्या देह से अधूरे इन्सान , इन्सान नहीं होते कोई व्यक्ति  क्या सिर्फ इसलिए नफरत का पात्र  बन जाए क्योकिं  वह  विकलांग  है या हमारे जैसा नहीं है| वो ऐसा काम करे जो हम नहीकर सकते क्यों ? क्या देह से अधूरे लोगों  का  अपना स्वाभिमान  नहीहोता ? उनके सपने नहीं होते ?
उनमे कुशलता  नहीं होती ? उनमे प्रेम  नहीं होता ?
देह से अधूरे है  तो  क्या आत्मा  तो पूरी  है न ,मुस्कुराहटों में मिलावट  तो नहीं है ना ,  इक सवाल अक्सर मन में उठता हैकि विकलांग  कौन ? जिसकी  देह  अधूरी है वो या जिसे इश्वर ने देह तो सुन्दर दे दी लेकिन  मन नहीं दिया  ह्रदय  में किसी के लिए प्रेम , भाव और संवेदना नहीदी | जिनके पास किसी को देने के लिए मुस्कान  ना हो वो विकलांग  है
मुझे उस बूढ़े  झाड़ू वाले से मिलकर  अपने होने का बोध  होता है| जो किसी  दूसरे को अपने स्नेह से आत्मीयता  से  सम्पूर्ण  कर दे वो खुद  अधूरा  कैसे हुआ ? अधूरे है तो वो लोग  जो  इन्हें इन्सान  भी नहीं समझते!  इन्हें ना परिवार में स्नेह मिलता है ना समाज में सम्मान  ! अधूरे है वो लोग जिनकी सोच छोटी रह गयी ! देह को सुन्दर बनाने में   जीवन बिता दिया ! लेकिन अपनी मानसिक  विकलांगता  से कभी आजाद  नहीं हो सके |
अधूरा वो झाड़ू वाला  नहीं ,|  अधूरे हैं वो लोग जो खुद कभी अपने  छोटेपन  से अधूरेपन  से ओछेपन बहार नहीं निकल सके | जो बड़े -बड़े मकानों और बड़ी गाड़ियों में बैठ कर खुद को  पूर्ण समझ लेते है !
और कभी कोई विकलांग व्यक्ति दिख जाये तो उस पर दया करके खुद को परोपकारी  साबित  करते हैं | या हिकारत भरी नजरोंसे देख कर मुंह फेर लेते हैं|
याद रखिये , इन्हें हमारी दया नहीं सिर्फ सच्चा  प्यार चाहिए | सम्मान  चाहिए हमारा  साथ चाहिए |  किसी गीत की पंक्तियाँ  है " जाने वालों ज़रा.  मुड़ के देखो  इधर , हम भी इन्सान  हैं तुम्हारी तरह !, जिसने सबको रचा , अपने ही रूप से ,उसकी पहचान हैं हम  तुम्हारी तरह "

4 comments:

रौशन जसवाल विक्षिप्त ने कहा…

कुछ रचनाये बार बार पढ़ने के लिए होती है यह भी वही रचना है

27 अप्रैल 2011 को 9:52 pm बजे
Mahendra Arya's Hindi Poetry ने कहा…

बिलकुल सच कहा - अधूरे है वो लोग जो इन्हें इन्सान भी नहीं समझते! विकलांगों के साथ तो यह व्यवहार शायद हमेशा इतना बुरा नहीं होता , लेकिन उससे भी बुरा व्यवहार होता है मनुष्य समाज की ही एक और प्रजाति के साथ जिसे किन्नर या हिजड़ा कहते हैं . अपने जैसा सामान्य व्यक्ति घृणा, भय और उपहास का पात्र क्यों बन जाता है , मैं आज तक नहीं समझ पाया .

28 अप्रैल 2011 को 9:49 am बजे
सूर्य गोयल ने कहा…

वाह ममता जी, आपकी इस पोस्ट के लिए क्या कहूँ. इतना ही कह सकता हूँ की मेरे पास शब्द ही नहीं है. रोशन जी ने सही कहा की कुछ रचनाये बार बार पढने का दिल करता है. यह उनमे से एक है. बहुत ही सुन्दर विचार और बहुत ही सुन्दर पोस्ट. बधाई.

28 अप्रैल 2011 को 8:18 pm बजे
Nina Sinha ने कहा…

बहुत ही सही बात उठाई है आपने. हम सब ऐसी बातें पढ़ते हैं, फिर अच्छे comments लिख कर वापस अपनी -अपनी आदतों की दुनिया में चले जायेंगे. We all are conditioned by such emotions. वैसे ये जात-पात और ऊँच-नीच ने भी इस तरह की मानसिकता को जन्म दिया है. लोग तो भेड़-चाल का ही अनुकरण करते हैं, अपनी सोच रखने वाले लोग कम ही होते हैं जैसे इस लेख में आपने औरों से हट कर एक इंसानियत के पहलू को रखा है. ज्यादातर लोग आजकल पैसा, पद, प्रतिष्ठा और शायद appearanceको ध्यान में रख कर ही दोस्ती या बात करना चाहते हैं, पर उस विकलांग व्यक्ति के चेहरे पर जो मुस्कराहट और संतोष आपने ला दिखाया वो काबिले-तारीफ है.

हम सब को उस विकलांग व्यक्ति से कुछ सीखना चाहिए. वो लोगों की परवाह ही नही करता और सिर्फ उसी से बात करता है जो उसे समझता है. जबकि हम सब अपनी बात हर इंसान को समझाने में लगे हुए है भले ही वो हमसे एक अलग सोच रखता हो. इतने लोगों के दुरदुराने पर भी वो विकलांग व्यक्ति अपना काम करता रहता है बिना किसी प्रतिक्रिया के , जैसे ये सारी चीज़ें उसके लिए exist नहीं करती हो , या ये लोग नासमझ हैं या फिर वो इन सारी बातों से conditioned हो चुका है. निश्चित रूप से हमारी मानसिक विकलांगता उसके शारीरिक विकलांगता से कही ज्यादा है.

28 अप्रैल 2011 को 11:00 pm बजे

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