तुम रो लो परदेश में , नहीं भीगेगा माँ का प्यार ---------------
दोस्तों ," मदर्स डे " पर क्या लिखूं क्या नहीं लिखूं यही सोचती रही और मदर्स डे चला गया | कौनसी माँ के बारे में लिखूं ?वो माँ जो इक पवित्र भावना है | संवेदना है | कोमल अहसास है | तपती दोपहरी में मीठे पानी का झरना है | इक खुशबु है| वो माँ जो कभी मिटती नहीं | देह मिट भी जाये तो अपने बच्चों की देह में रूह बन कर सिमट जाती है| उनके लब पर दुआ तो कभी मन में अहसास बन कर ढल जाती है ऐसे लाखों शब्दों में ,मैं उसे व्यक्त करूँ भी तो वो अव्यक्त ही रह जायेगी |
दोस्तों , मैं आज उस माँ की बात नहीं कर रही जो बेसन की रोटी पर खट्टी चटनी जैसी लगती थी | मैं उस माँ की बात भी नहीं कर रही जिसका बेटा परदेश में रोता था तो देश में उसका प्यार भीग जाया करता था | मैं मेक्सिम गोर्की की माँ की बात भी नहीं कर रही और ना जीजा बाई की जिसने इक बालक को शिवाजी बना दिया |
आज बात है , आज के दौर की ,आज की नारी की |आज की माँ की | आधुनिक भारतीय नारी की | वो अब खुद गीले में सोकर अपने बच्चे को सूखे में सुलाने की भूल नहीं करती | वो अब अपने बच्चे को खुद से दूर झूले में सुलाती है | नींद में खलल नहीं पड़े इसलिए दूध की बोतल चिपका दी जाती है | ये आधुनिक माताएं अपने शौक के लिए पैसों के लिए अपनी कोख भी किराए पर देने में नहीं चूकती | अपने स्वार्थों के लिए ये कोख में ही अपनी बेटी का गला घोट डालने में ज़रा संकोच नहीं करती | अपने अवसर , अपने करियर की खातिर ये बच्चों को" आया" के हवाले कर चल देती है | बच्चों से पीछा छुड़ाने के लिए उन्हें बहुत छोटी उमर में ही प्ले स्कूल में छोड़ देती है | गए वो दिन जब माँ-- दो तीन बर्ष की उमर तक के बच्चों को घर में ही पढ़ाया करती थी |
संस्कारों , जीवन मूल्यों के पाठ अब घरों में नहीं पढाये जाते | बच्चों को अब रातों को कोई कहानियां नहीं सुनाई जाती ना कोई लोरी | अपने काम अपने शौक और अपने फायदे को देखने वाली इन माँओं के पास अपने बच्चों केलिए कोई समय नहीं | ऐसा नहीं है की उन्हें अपने बच्चों की चिंता नहीं है | दिन में इक दो बार फोन करके वो " आया " से अपने बच्चों का हाल जरुर पूछ लेती हैं |
बच्चे भी अब माँ से ज्यादा अपनी दूध की बोतल और आया को प्यार करते हैं | थोड़े बड़े होकर वीडियों गेम और फिर नेट और मोबाईल उनके साथी बन जाते है | जितनी दूर माँ हो रही है बच्चों से, उतने ही दूर बच्चे भी हो रहे हैं माँ से | यही वजह है की जितने झूलाघर रोज खुल रहे हैं उनसे कहीं ज्यादा ओल्ड एज होम बनाये जा रहे हैं |
आधुनिक जीवन शैली और पुरुषों की नक़ल करने के चक्कर में महिलाओं ने खुद को अपने स्त्रियोंचित गुणों से दूर कर लिया है | महिलाओं में पुरुषों की तरह शराब और सिगरेट पीने का चलन भी आम बात है | चिंता ये है की जो युवतियां अपनी राते " पब " में शराब और सिगरेट के धुएं में बिताती हैं | क्या कल ये युवतियां इक अच्छी पत्नी या इक अच्छी माँ बन सकेगी ? क्या फिर कोई मुनव्वर राना ये कह पायेगे की " की मैं जब तक घर नहीं जाता मेरी माँ सजदे में रहती है " ये कैसी महिलाए हैं ? ये कैसी भविष्य की माँये हैं ? जिनके दिल में किसी के लिए प्रेम नहीं , वात्सल्य नहीं ये सिर्फ खुद से प्रेम करती हैं | खुद के सुखों की खातिर अपना घर परिवार बच्चे सब कुछ इक झटके में तोड़ देती हैं| छोड़ देती है | { रोज बिखरते परिवार इसका उदाहरण है }
अक्सर मैंने देखा है, शादी पार्टी या कोई होटल या रेस्टोरेंट में ये महिलायें कभी भी अपने बच्चों को गोद में नहीं उठाती| या तो इनके पति बच्चों को देखते है | या आया को साथ रखती हैं | बच्चे रोये या बिलखते रहे इन्हें परवाह नहीं |इनकी साड़ी या मेकअप खराब नहीं होना चाहिए | अपने बच्चों को अपनी गोद में रखने में इन्हें अब शर्म आती है | आजकल पिताओं को मैंने बच्चों की ज्यादा परवाह करते देखा है | यदि वास्तव में माँ की कहानियों और लोरियों में ताकत होती , पकड़ होती तो युवा पीढ़ी इस कदर भटकती नहीं | कहीं न कहीं कोई कमी जरुर है जिसे बच्चे बहार जाकर पूरी कर रहे है | दोस्तों में , नशे में वो सुकून तलाश रहे है जो उन्हें घर में ही मिलना चाहिए था | माँओं को सोचना होगा की क्यों बेटे बेटियाँ उनसे दूर हो रहे हैं ? क्या बेटे के दुःख से उनका आँचल अब भी भीगता है या उन्होंने अपने बच्चों की उगंली छोड़ दी है बेटे के परदेश में रोने पर भी उसका प्यारक्यों भीगता ? यदि माँ की पकड़ ढीली हो गयी तो क्या कोई बेटा परदेश में ये बात महसूस कर सकेगा " मैं रोया परदेश में , भीगा माँ का प्यार
दुःख ने दुःख से बात की, बिन चिठ्ठी बिन तार "
दोस्तों , मैं आज उस माँ की बात नहीं कर रही जो बेसन की रोटी पर खट्टी चटनी जैसी लगती थी | मैं उस माँ की बात भी नहीं कर रही जिसका बेटा परदेश में रोता था तो देश में उसका प्यार भीग जाया करता था | मैं मेक्सिम गोर्की की माँ की बात भी नहीं कर रही और ना जीजा बाई की जिसने इक बालक को शिवाजी बना दिया |
आज बात है , आज के दौर की ,आज की नारी की |आज की माँ की | आधुनिक भारतीय नारी की | वो अब खुद गीले में सोकर अपने बच्चे को सूखे में सुलाने की भूल नहीं करती | वो अब अपने बच्चे को खुद से दूर झूले में सुलाती है | नींद में खलल नहीं पड़े इसलिए दूध की बोतल चिपका दी जाती है | ये आधुनिक माताएं अपने शौक के लिए पैसों के लिए अपनी कोख भी किराए पर देने में नहीं चूकती | अपने स्वार्थों के लिए ये कोख में ही अपनी बेटी का गला घोट डालने में ज़रा संकोच नहीं करती | अपने अवसर , अपने करियर की खातिर ये बच्चों को" आया" के हवाले कर चल देती है | बच्चों से पीछा छुड़ाने के लिए उन्हें बहुत छोटी उमर में ही प्ले स्कूल में छोड़ देती है | गए वो दिन जब माँ-- दो तीन बर्ष की उमर तक के बच्चों को घर में ही पढ़ाया करती थी |
संस्कारों , जीवन मूल्यों के पाठ अब घरों में नहीं पढाये जाते | बच्चों को अब रातों को कोई कहानियां नहीं सुनाई जाती ना कोई लोरी | अपने काम अपने शौक और अपने फायदे को देखने वाली इन माँओं के पास अपने बच्चों केलिए कोई समय नहीं | ऐसा नहीं है की उन्हें अपने बच्चों की चिंता नहीं है | दिन में इक दो बार फोन करके वो " आया " से अपने बच्चों का हाल जरुर पूछ लेती हैं |
बच्चे भी अब माँ से ज्यादा अपनी दूध की बोतल और आया को प्यार करते हैं | थोड़े बड़े होकर वीडियों गेम और फिर नेट और मोबाईल उनके साथी बन जाते है | जितनी दूर माँ हो रही है बच्चों से, उतने ही दूर बच्चे भी हो रहे हैं माँ से | यही वजह है की जितने झूलाघर रोज खुल रहे हैं उनसे कहीं ज्यादा ओल्ड एज होम बनाये जा रहे हैं |
आधुनिक जीवन शैली और पुरुषों की नक़ल करने के चक्कर में महिलाओं ने खुद को अपने स्त्रियोंचित गुणों से दूर कर लिया है | महिलाओं में पुरुषों की तरह शराब और सिगरेट पीने का चलन भी आम बात है | चिंता ये है की जो युवतियां अपनी राते " पब " में शराब और सिगरेट के धुएं में बिताती हैं | क्या कल ये युवतियां इक अच्छी पत्नी या इक अच्छी माँ बन सकेगी ? क्या फिर कोई मुनव्वर राना ये कह पायेगे की " की मैं जब तक घर नहीं जाता मेरी माँ सजदे में रहती है " ये कैसी महिलाए हैं ? ये कैसी भविष्य की माँये हैं ? जिनके दिल में किसी के लिए प्रेम नहीं , वात्सल्य नहीं ये सिर्फ खुद से प्रेम करती हैं | खुद के सुखों की खातिर अपना घर परिवार बच्चे सब कुछ इक झटके में तोड़ देती हैं| छोड़ देती है | { रोज बिखरते परिवार इसका उदाहरण है }
अक्सर मैंने देखा है, शादी पार्टी या कोई होटल या रेस्टोरेंट में ये महिलायें कभी भी अपने बच्चों को गोद में नहीं उठाती| या तो इनके पति बच्चों को देखते है | या आया को साथ रखती हैं | बच्चे रोये या बिलखते रहे इन्हें परवाह नहीं |इनकी साड़ी या मेकअप खराब नहीं होना चाहिए | अपने बच्चों को अपनी गोद में रखने में इन्हें अब शर्म आती है | आजकल पिताओं को मैंने बच्चों की ज्यादा परवाह करते देखा है | यदि वास्तव में माँ की कहानियों और लोरियों में ताकत होती , पकड़ होती तो युवा पीढ़ी इस कदर भटकती नहीं | कहीं न कहीं कोई कमी जरुर है जिसे बच्चे बहार जाकर पूरी कर रहे है | दोस्तों में , नशे में वो सुकून तलाश रहे है जो उन्हें घर में ही मिलना चाहिए था | माँओं को सोचना होगा की क्यों बेटे बेटियाँ उनसे दूर हो रहे हैं ? क्या बेटे के दुःख से उनका आँचल अब भी भीगता है या उन्होंने अपने बच्चों की उगंली छोड़ दी है बेटे के परदेश में रोने पर भी उसका प्यारक्यों भीगता ? यदि माँ की पकड़ ढीली हो गयी तो क्या कोई बेटा परदेश में ये बात महसूस कर सकेगा " मैं रोया परदेश में , भीगा माँ का प्यार
दुःख ने दुःख से बात की, बिन चिठ्ठी बिन तार "
2 comments:
mamta ,tumhaari post bahut achchhi hai. tumhaari shaili vedon ki tarah hai har vaky apane aap me puraa lagataa hai . or lekh kabhi bhi pura nahi lagataa aesaa lagataa hai or bhi bahut kuch kahane vali ho vedo ki bhashaa ki tarah apane me bahut kuchh samete huye
bahut hi sundar baat kahi mamta tumhaaraa har baat kahane kaa andaj sabase niraalaa hai
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