मिल जाए तो मिट्टी है , खो जाए तो सोना है ....

मंगलवार, अप्रैल 15 By मनवा , In

हमारा समाज संबंधों का ताना -बाना है | इस ताने बाने पे हम रोज अपने आसपास कई रिश्तें बुनते हैं | ये रिश्तें , ये सम्बन्ध हमारी आवश्यकता है | हम सभी इन रिश्तों के बीच खुद को सहज पाते है | और हमारा सम्पूर्ण जीवन इस ताने -बाने के इर्द -गिर्द ही पूरा हो जाता है | लेकिन क्या बात इतनी सरल है ? क्या रिश्ते बनाना और निभाना इतना सरल है ? जितना ताने बाने पे कपड़ा बुनना
बुनकर तो गिरह , गाँठ  बड़ी चतुराई से छिपा देता है और कपड़ा सुन्दर दिखाई देता है | लेकिन रिश्तों में गठानें पड़ जाए तो रिश्ते  बहुत ही बदसूरत और जटिल हो जाते है | उनमे न  सुकून होता है न शान्ति सिर्फ बचता है तो दर्द और द्वन्द
इस द्वन्द और दर्द से भरे  रिश्तों के बोझ से  जीवन खुद एक  बोझ हो जाता है जिसे ढोना मजबूरी हो जाती है | और अंततःलोग  इकदूजे पे दोष लगाकर रिश्तों को तोड़ देते हैं या उससे खुद को अलग कर लेते हैं | या फिर एक कदम आगे बढ़कर  कोई नया रिश्ता खोजने लगते हैं
रिश्ते खोजना भी हमारी मज़बूरी ही है क्योकिं हम हमेशा अपनो के बीच रहना चाहते हैं उन्हें प्रेम करते है और बदले  हम भी प्रेम ही चाहते हैं | हम ताउम्र दूसरों पे निर्भर रहते हैं ये निर्भरता चाहे शारीरिक हो या मनोवैज्ञानिक , हम जीवन भर ऐसे रिश्ते खोजते हैं जो हमें हमारे होने का बोध करवाए
जब हम उदास हो तो वो हमें हंसा दे , हम जब दुखी हों तो वो झट से गले लगा ले और वो सिर्फ हमें सुने , हमारी हर बात समझे हमारा ख्याल रखे हम रोये तो वो भी हमारे संग रोये और जब हम खिलखिलाएं तो वो हँसे और जब जिस वक्त हमारा मन उससे उब जाए , खिन्न हो जाये , बेजार हो जाए तो वे दूर हो जाये हमसे क्योकिं उस समय हमें उसकी जरुरत नहीं रही
क्या ऐसा कोई  रिश्ता संभव है ? क्या दुनिया में कोई ऐसा भी है जो हमारे लिए अपने सुख दुःख भूल जाये | उसका खुद का कोई अस्तित्व ही नहीं हो हमारे सामने | उसकी कोई भावना या अहसास का उसके खुद के लिए कोई महत्व नहीं हो | वो आपको सहेजे , सहलाये निहारे और खामोश रहे | आप उसे तोड़े तो वो शिकायत भी न करे उलटे आपसे पूछे आपको चोट तो नहीं लगी मुझे तोड़ते वक्त ? यहाँ पर एक बहुत पुरानी कहानी याद आ गयी जिसमे एक व्यक्ति , वेश्या के कहने पर अपनी माँ का कलेजा ही निकाल कर ले जाता है और रस्ते में जब उसे ठोकर लगती है तो कलेजा पूछता है " बेटा चोट ज्यादा तो नहीं लगी ? " ये तो मात्र एक कथा है | हम अपने आसपास ऐसे हजारों उदाहरण देखते हैं जिनमे लोगों ने सच्चे रिश्तों की  कदर ही नहीं जानी | उन्हें जब -तब अपनी मर्जी और सुविधा के हिसाब से तोडा , मोड़ा और छोड़ा भी
 बड़ी ही अजीब बात है , हम जिसके सबसे ज्यादा करीब होते हैं उपेक्षा भी सबसे ज्यादा उसी की ही करते हैं | और जो हमारी उपेक्षा करता है हम जीवन भर उसी के पीछे भागते हैं | कुछ रिश्ते हमारे जीवन में बहुत महत्त्व रखते हैं वे हमेशा हमारे साथ खड़े होते है | चाहे जैसी परिस्थिति हो हमारी, वो कभी हमें छोड़ कर नहीं जाते , ये   माँ  हो सकती है, बड़ी बहन या भाई या पिता या कोई सच्चा दोस्त आपका प्रेमी भी हो सकता है | जो लोग भी आपसे प्रेम करते हैं वो सभी आपको ऐसे ही समर्पण भाव से प्रेम करते हैं निस्वार्थ भाव से |वे आपको सिर्फ खुश देखना चाहते हैं फिर भले ही वो खुद मिट जाये
लेकिन ....., क्या आपने कभी ऐसे रिश्तों कि अहमियत समझी है ? उनकी महत्ता ? या उन्हें टेकन फार ग्रांटेड ही समझ लिया यानी" घर कि मुर्गी दाल बराबर "
एक ऐसी मुर्गी जिसकी कोई अहमियत ही नहीं जिसे जब चाहे आप अपनी सुविधा और इच्छा होने पर उपयोग में ले आये
घर की दाल को भी सहेजना संभालना होता है वरना उसमे भी घुन लग जाते है फिर तो ये रिश्ते हैं
इनके प्रति लापरवाह होना कौनसी समझदारी है
जो लोग हमेशा आपके सुख दुःख में आपके साथ खड़े रहते हैं , जो हमेशा खामोशी से आपके लिए मन्नते मंगाते हैं ., दुआओं में हाथ उठाते है तो आपकी खेरीयत के वास्ते ही | क्या कभी उनकी भावना , उनकी इच्छा उनकी जरुरत (चाहे  वो खुद से न कहे ) के बारे में आपने सोचा है ? उनके पास भी मन है जो संवेदना से भरता होगा , टूटता भी होगा , वो तब किसके पास जाते होंगे ? उन्हें कौन संभालता होगा ? समंदर में समन्दर को सहारा कौन देता होगा उनके अकेलेपन में कौन साथ होता होगा उनके ? याद रखिये जो कभी अपने दर्द किसी को नहीं दिखाते दर्द तो उनको भी उतना ही होता है जितना शोर मचाकर दर्द का बखान करने वाले को होता है | ख़ामोशी से मन ही मन खुद से बातें करने वाले , दर्द सहने वाले रिश्तों को तो सर आखों पे बिठाना चाहिए ना कि उन्हें महत्वहीन समझ कर उपेक्षित कर दिया जाए | उन्हें “मुफ्त में मिली सौगात “ समझने की भूल की जाए |
जब आप किसी रिश्ते को घर कि मुर्गी समझते हैं या किसी व्यक्ति को तो उसकी अहमियत तो आपके सामने खतम हो जाती है |
आप सारी दुनिया को प्रभावित करने में, उन्हें अपने पक्ष में करने में , उनकी तारीफ पाने में जितना समय नष्ट करते हैं क्या उससे आधा वक्त भी आप इन रिश्तों पे खर्च करते हैं ?कभी सोचा है ?  घर की  मुर्गियों के भी जन्मदिन होते हैं , क्या आप उन्हें याद रखते हैं ? इनकी भी छोटी -छोटी खुशियाँ होती हैं क्या आप उनमे शरीक होते हैं ? उनके लिए कभी ख़ुशी की  वजह बनते है या उन्हें " प्रेम कभी प्रतिदान  नहीं मांगता " जैसे दलीले देकर चुप करा देते हैं
क्या आप इन टेकन फॉर ग्रांटेड रिश्तों के खतों के जवाब देते हैं
क्या कभी उनसे पूछा है " बताओ आज तुम्हारे लिए या तुम्हारी ख़ुशी के लिए क्या किया जाये
ये जो रिश्ते हमारे आसपास हैं जो हमारी  परवाह करते हैं,  हम उनके प्रति इतने गैर जिम्मेदार कैसे हो जाते हैं  
ये स्वार्थ नहीं तो क्या है ? क्या कभी देखा की इस घर की दाल में घुन तो नहीं लग गया | घर की दाल को भी संभालना सहेजना पड़ता है फिर तो ये रिश्ते हैं | हम जिन पर निर्भर हैं उनकी ही अनदेखी करने के पीछे क्या तर्क है ? अक्सर लोग इस तरह के दलीलें देते है देखिये -- 
"प्रेम तो भीतर भीतर होता है उसे दिखावे की जरुरत नहीं " 
" माँ को मैं  बहुत प्यार करता हूँ बस दिखलाता नहीं " 
"मेरी  दीदी दुनिया की  सबसे प्यारी दीदी हैं जो कभी नाराज नहीं होती " 
"तुम मेरी सबसे खास दोस्त हो, और सबसे करीब भी और जो मेरे करीब है मैं उनसे सबसे ज्यादा दूर रहता हूँ " 
" मैं तुम्हे सबसे  ज्यादा प्रेम करता हूँ बस तुमसे मिलने का समय नहीं मेरे पास, बात करने का भी , क्योकिं बात करना , प्रेम करना नहीं है " 
" मेरी पत्नी को घर से बहुत मोह है वो कभी कहीं जा हीं नहीं सकती मेरा  घर छोड़ कर "  
" तुम मेरे बचपन के यार हो मेरी हर गलती को माफ़ कर दोगे " 
" मुझे यकीन है वो मुझे छोड़ कर कभी नहीं जायेगा या जाएगी " 
ऐसे हजारों तर्क गढ़ेजाते हैं और जिम्मेदारी से बचा जाता है | क्यों करते है लोग रिश्तों में ऐसा ? क्या कोई इसका मनोवैज्ञानिक कारन भी है

दरअसल ,हमें जो  चीज आसानी से मिलजाती है हम उसके प्रति लापरवाह हो जाते हैं | जैसे मिट्टी, पानी हवा को ही ले लीजिये | मिट्टी अनमोल है लेकिन वो आसपास है इसलिए उसकी कदर नहीं , और सोने को हमने कीमती बना दिया | यानि मिल जाये तो मिट्टी है , खो जाए तो सोना है
इसी प्रकार जो व्यक्ति हमें यूँ ही उपलब्ध हो गया तो हमने उसकी इमेज एक छवि गढ़ ली कि ये तो ऐसा ही है | इसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा , उसे सब चलता है | अरे ..वो तो माँ है न इक मिनिट में मान जाएगी , अरे वो दीदी ..बस यूँ पट जायेगीं या वो  कोई अपना दोस्त , उसे तो चुटकी में मना लेंगे
कहाँ जाएगा /जाएगी हमारे सिवा , और आपकी अदा के भोलेपन पे कोई लुटता रहता है | ताउम्र है न
आपने  उसकी ऐसी ही इमेज बनायीं है अपने मन में , और अब आपको उसकी और देखने की जहमत नहीं उठानी है| आपने सौ तर्क बनाये है खुद को अपराध बोध से बचाने के लिए | लेकिन याद रहे , ये खामोश रहने वाली दीवारे धीरे -धीरे धंसती जाती है और आपको खबर भी नहीं होती
रिश्ते धीरे धीरे दरकते रहते हैं , टूटते रहते हैं और हम कभी भी उनकी दरारों की मरम्मत नहीं करते | नहीं देख पाते दरारों से रिसते जख्म , डबडबाई आखों को और कांपते होठों को
हम सिर्फ शब्दों के और छवियों के गुलाम हो गए हैं | हम शब्दों के जाल फेंकते हैं खुद को भी बहलाते हैं और दूसरों को भी उलझाते हैं


रिश्तों को सम्बन्धों को सहेजना होगा उन्हें लम्बे समय तक बनाये रखने के लिए उन्हें लाकर में पड़े गहनों की  तरह छोड़ देना नहीं होता उन्हें पौधों कि तरह रोज सींचना होता है
आपके जीवन में जो व्यक्ति ( वो कोई भी हो ,माँ पिता , बहन भाई या दोस्त साथी ..) सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है | आपने उसके लिए अभी तक क्या -क्या किया
उस रिश्ते को बचाए रखने के लिए क्या किया
याद रहे , तोड़ तोड़ कर बार बार जोड़ना और टूटने से बचाना  दोनों में गहरा भेद है
जो सहज ही मिल गया उसे मिट्टी समझ लिया और जो वो कभी खो गया तो सोना हो गया है, न ?
याद रहे ,  मिट्टी सहज मिल गयी इसलिए उसमे सहजता की सौंधी महक  है वो आपको तृप्त करती है | और इस मिट्टी को संभालना आपकी जिम्मेदारी है मीठी सी जिम्मेदारी |इससे पहले की वो खो जाये उन्हें संभाल लीजिये | उन्हें टेकन फॉर ग्रांटेड समझ कर छोड़ देना नहीं होता|  इश्वर की  अनमोल सौगात मानकर सहेजना होता है | ये रिश्ते जादू का खिलौना हैं , मिलजाए तो मिट्टी है खो जाये तो सोना है
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