अफ़सोस

इसलिए पहले पूरा मेला घूमा जाए और फिर खूब सोच
विचार कर इन थोड़े से पैसों को समझदारी से खर्च किया जाये |
ऐसे
मौकों पे अक्सर उसके दिल और दिमाग आपस में झगड़ पड़ते थे उसका दिल उसे अक्सर
परेशानी में डालता था और दिमाग उसे हमेशा उन परेशानियों से निकाल लेता था |
आज जब
वो मेले में आया तो दिल और दिमाग दोनों को उसने चुप करा दिया था बस आज वो अपनी आखों
को खुला रखे हुआ था |
सभी सजी -धजी दुकानों में रखी हुई चीजे
उसे आकर्षित कर रही थी| वो मन्त्र -मुग्ध सा उन्हें देखे जाता और
मुस्काते हुए आगे बढ़ जाता | अभी दो कदम चला ही था कि उसे
रंगबिरंगी
सजी- धजी दुकानों के बीच में सड़क पे एक खिलौने बेचने वाली स्त्री दिखाई दी | जो
अपनी बांस की टोकरी में कुछ मिट्टी के खिलौने बेच रही थी |
उन
खिलौनो के बीच उसे एक बहुत ही सुन्दर गुड़ियाँ दिखाई दी | उसकी
बनावट और रंग इतने सुन्दर थे की वो रुक गया बहुत देर तक उस मिट्टी की गुड़ियाँ को
निहारते रहा | उस मिट्टी की गुड़ियाँ के होठों पे अजीब सी रहस्यमयी मुस्कान थी और
आखों में एक विशेष आकर्षण सा,उसकी आखें बोलती थी या लब ये समझ नहीं आ रहा था लेकिन उसे न जाने
क्यों ऐसा लगा उसे अभी उस गुड़ियाँ ने उसे एक आवाज दी हो | और वो रुक गया था ख़ामोशी
से ..|
उसे
वहां रुका देख खिलौने वाली मुस्काई और बोली
“कुछ
खरीदना है बाबू ? "
“मैंने
अपनी जिन्दगी में ऐसी सुन्दर गुड़ियां कभी नहीं देखी | ये मुझे चाहिए ही चाहिए “
(उसके
दिल ने पहली बार उसे सलाह दी , हाँ तुम इसे ले लो अभी के अभी )
तभी
दिमाग ने उसे चेताया सुनो ..”पागल मत बनो”, अभी
तो मेला शुरू हुआ है ,अभी से पैसे खर्च कर दोगे ? आगे इससे बेहतर दुकाने होगीं और इससे लाख दर्ज
बेहतर खिलौने भी अभी इसे खरीद कर कहाँ बोझ लिए फिरते रहोगे ? मेले
का मजा भी नहीं ले सकोगे | न झूलों का न खाने पीने का “...दिमाग ने अपने तर्क दिए ) '
दिल
ने आखरी बार बोला “और अगर पूरा मेला घूमने के बाद भी ऐसी गुड़ियाँ नहीं मिली तो ? और
ऐसा भी हो सकता है इसे कोई और खरीद ले जाये "
उसने
दिल-दिमाग दोनों को चुप कराया और उस खिलौने वाली से बोला
“हाँ , मुझे ये गुड़िया चाहिए उसने उंगली से छूकर उस गुडिया पे अपना
हक़ जताया लेकिन मैं अभी इसे नहीं ले जा सकता लौट कर आकर इसे ले जाउंगा | मैं
पहले मेला घूमना चाहता हूँ” लडके ने अपनी बात स्पष्ट की | और वो
आगे बढ़ गया लेकिन चार कदम चलकर वो फिर वापस आया और सशंकित होते हुए बोला |
“तुम इसे किसी को मत बेचना मैं वापस आकर इसे ले
जाउंगा| और फिर उस गुड़ियां को निहारने लगा ..अब उस
स्त्री ने मुस्कुरा कर कहा “बाबू, इतनी
पसंद है तो अभी ले जाओ ,क्या पता वापस आओ तब तक मैं न मिलूं तुम्हे या ये गुड़ियाँ
...और बहुत से ग्राहक ऐसा बोल कर जाते है फिर आते भी नहीं” (खिलोने वाली ने
अपना अनुभव बताया ) .
“मैं आउंगा”
उसने कुछ् ऐसी सच्चाई के साथ कहा
की वो खिलौने वाली उसे बड़ी देर तक देखती रही| लड़का चला गया ..
शाम
हो गयी, मेला टूटने का समय आ गया बहुत से छोटे दुकानदार
अपनी दुकान समेट कर घर चल दिए थे और कई बड़े दुकानदार अपनी दुकान समेटने की
तैयारी करने लगे थे |
वो खिलौने वाली के अब तक सभी खिलोने बिक चुके थे | बस उसने वो गुड़ियां को बचाकर रखा था उस लडके के
वास्ते उस लड़के की आखों की सच्चाई उसे मेला छोड़कर जाने नहीं दे रही थी| और उसने
कुछ् देर ठहर कर उसका इंतजार करने के सोची |
उसे लग रहा था वो बाद में आया तो कितना दुखी
होगा और मैंने उसकी गुड़ियां किसी अन्य ग्राहक को बेचीं भी नहीं ..लेकिन कब तक
इन्तजार करूँ उसका? उसे अब तक आ जाना था | मैं
भी क्यों उस बे-परवाह लड़के की बात में लग गयी |उसकी बात का क्या , भूल भी
गया होगा वो इस गुड़ियां को, उसने जरुर झूले में या खाने पीने में या नौटंकी
देखने में पैसे उड़ा दिए होंगे|” (खिलोने वाली खुद से बात किये जा रही थी )
बहुत
देर होने पर खिलौने वाली के सब्र का बाँध टूटने लगा था उसने भारी मन से टोकरी उठाई
उसकी खाली टोकरी में अब भी वो सुन्दर गुड़ियां मुस्काती थी | उसने
उस मिट्टी की गुड़ियां से मन ही मन कहा “कैसी अभागी हो तुम ..तुम्हे किसी ने नहीं
खरीदा फिर भी मुस्काती हो ?"
“इससे बेहतर होता मैं तुम्हे किसी और को दे देती चार
पैसे भी मिल जाते (उसने अफ़सोस जताया )
तभी
मेले में अचानक से भगदड़ मच गयी और दौड़ती आती भीड़ में से आते एक व्यक्ति ने
उस खिलौने वाली को ऐसा धक्का मारा कि उसकी टोकरी हाथ से छूट गयी और वो गुड़ियाँ
जमीन पे गिरकर टुकड़े -टुकड़े हो गयी |
ओह
...ये क्या हो गया " (वो मन ही मन बडबड़ाई )
उसने
गुड़ियाँ हाथ में उठाई उसका सर अलग और धड़ अलग हो गए थे “ ओह, ..कम्बखत टूटी भी तो कितनी खूबसूरती से कि अब भी मुस्काती है |"
उसे ये मिट्टी की गुड़ियां आज पहली बार सच
में सुन्दर लगी | उसे अब कुछ –कुछ समझ आने लगा कि
क्यों इतने सारे खिलौने में से उस लड़के की नज़र इस गुड़ियाँ पे ठहर गयी थी| वास्तव में ये गुड़ियाँ बहुत सुन्दर थी लेकिन उस
लडके की किस्मत सुन्दर नहीं थी और इस गुड़ियाँ की भी” ( देखो वो अब तक नहीं आया
खिलोने वाली गुस्से से भर उठी )
" आ गया मैं " (अचानक आवाज आई )
" कहाँ है मेरी गुड़ियां " ?
" टूट गयी तुम्हारी गुड़ियाँ "
“मैंने
बहुत देर तक तुम्हारार इंतजार किया| कितने बेपरवाह हो तुम, मैंने पहले ही कहा था, तुमने
मेरी एक बात नहीं सुनी| लेकिन अब सुनो
मेरी बात ..जिन चीजों पे हम अधिकार समझते हैं उन्हें कभी छोड़कर नहीं जाते | अपनी
प्रिय चीजों को कभी दूसरों के भरोसे नहीं छोड़ा जाता और जब दिमाग और दिल एक साथ
बोलते हों तो सिर्फ दिल की सुनी जाती है तुमने अपना ही नहीं मेरा भी नुकसान किया
है” ...(खिलौने वाली अब गुस्से और दुःख से भरकर आगे बढ़ गयी थी )
लड़का
आज बेहद उदास था |
आज
पहली बार उसके दिमाग ने उसे दुःख में डाला था| और इस दुःख, इस पीड़ा और इस अफ़सोस से उसका
दिल उसे निकाल पाने में असमर्थ था |
वो
भारी कदमों से चल दिया उसके हाथ में अब भी चंद सिक्के थे जिन्हें उसने चाहते हुए
भी मेले में खर्च नहीं किया था |
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